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राजस्थान के संत एवं सम्प्रदाय | Saints and Sects of Rajasthan

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Saints and Sects of Rajasthan

राजस्थान के संत एवं सम्प्रदाय | Saints and Sects of Rajasthan

भक्ति के प्रकार –

1. सगुण भक्ति :- भगवान की मूर्ति की पूजा करना। इसमे भगवान की साकार रूप में पूजा होती है। जैसे – रामानुज, वल्लभ सम्प्रदाय, निम्बार्क सम्प्रदाय, नाथ सम्प्रदाय, गौड़ीय सम्प्रदाय, पाशुपत सम्प्रदाय, निष्कलंक सम्प्रदाय, चरणदासी सम्प्रदाय, मीरादासी सम्प्रदाय

2. निर्गुण भक्ति :- ये मूर्ति पूजा के विरोधी होते है। इसमे भगवान के निराकार रूप की पूजा की जाती है। जैसे – विश्नोई सम्प्रदाय, जसनाथी सम्प्रदाय, दादू सम्प्रदाय, रामस्नेही सम्प्रदाय, परनामी सम्प्रदाय, निरंजनी सम्प्रदाय, कबीर पंथी सम्प्रदाय, लालदासी सम्प्रदाय।

1. जसनाथी सम्प्रदाय

◆ संस्थापक – जसनाथ जी जाट, गुरु – गोरखनाथ
● जसनाथ जी का जन्म 1482 ई. में (कार्तिक शुक्ल एकादशी) को (बीकानेर) में हुआ।
● प्रधान पीठ – कतरियासर (बीकानेर) में है।
● यह सम्प्रदाय 36 नियमों का पालन करता है।
● पवित्र ग्रन्थ, सिद्ध जी रो सिरलोको, जसनाथी पुराण और कोडाग्रन्थ है।

● इस सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार ” परमहंस मण्डली” द्वारा किया जाता है।
● इस सम्प्रदाय के लोग अग्नि नृत्यय में सिद्धहस्त है।, जिसके दौरान सिर पर मतीरा फोडने की कला का प्रदर्शन किया जाता है।
● दिल्ली के सुलतान सिकंदर लोदी न जसनाथ जी को प्रधान पीठ स्थापित करने के लिए भूमि दान में दी थी।
● जसनाथ जी को ज्ञान की प्राप्ति ” गोरखमालिया (बीकानेर)” नामक स्थान पर हुई।
● सम्प्रदाय की उप-पीठे :-
इस सम्प्रदाय की पांच उप-पीठे है।
1. बम्मल (बीकानेर) 2. लिखमादेसर (बीकानेर)
3. पुरनासर (बीकानेर) 4. मालासर (बीकानेर) 5.पांचला (नागौर)

2. दादू सम्प्रदाय

● संस्थापक – दादू दयाल जी
● दादूदयाल जी का जन्म 1544 ई. में अहमदाबाद (गुजरात) में हुआ।
● दादूदयाल जी के गुरू वृद्धानंद जी (कबीरदास जी के शिष्य) थे।
● ग्रन्थ – दादू वाणी, दादू जी रा दोहा
● ग्रन्थ की भाषा सधुकड़ी (ढुढाडी व हिन्दी का मिश्रण) है।
● प्रधान पीठ नरेना/नारायण (जयपुर) में है।
● दादू जी के 52 शिष्य थे, जो 52 स्तम्भ कहलाते है।
52 शिष्यों में इनके दो पुत्र गरीब दास जी व मिस्किन दास जी भी थे।
● शाखांए :-  1.खालसा 2. विरक्त  3. नागा 4. खाकी 5. स्थानधारी
● दादू पंथ के अन्तर्गत नागा शाखा का प्रारम्भ दादू जी के शिष्य सुन्दर जी ने किया ।
● इस सम्प्रदाय में मृतक व्यक्ति का अन्तिम संस्कार विशेष प्रकार से किया जाता है। जिसके अन्तर्गत उसे न तो जलाया जाता है और नाही दफनाया जाता है। बल्कि उसे जंगल में जानवरों के खाने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है।
● दादू पंथी सम्प्रदाय के सतसंग स्थल अलख-दरीबा कहलाते है।
◆ रज्जब जी – दादूजी के शिष्य थे।
जन्म व प्रधानपीठ – सांगानेर (जयपुर)
रज्जब जी आजीवन दूल्हे के वेश में रहे।
रचनाऐं- रज्जव वाणी, सर्वगी

● दादू पंथ के पंचतीर्थ :- कल्याणपुर (जयपुर), नारायणा (जयपुर), भराना (जयपुर), साम्भर (जयपुर), आमेर (जयपुर) (Saints and Sects of Rajasthan)

3. विश्नोई सम्प्रदाय

● सस्थापक – जाम्भोजी
● जाम्भोजी का जनम 1451 ई. में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर पीपासर (नागौर) में हुआ।
● ये पंवार वंशीय राजपूत थे।
● प्रमुख ग्रन्थ – जम्भ सागर, जम्भवाणी, विश्नोई धर्म प्रकाश
● नियम – 29 नियम दिए।
● इस सम्प्रदाय के लोग विष्णु भक्ति पर बल देते है।
● यह सम्प्रदाय वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा में अग्रणी है।
● प्रमुख स्थल –
1. मुकाम – मुकाम – नौखा तहसील बीकानेर में है। यह स्थल जाम्भों जी का समाधि स्थल है।
2. लालासर – लालासर (बीकानेर) में जाम्भोजी को निर्वाण की प्राप्ति हुई।
3. रामडावास (जोधपुर) में जाम्भों जी ने अपने शिष्यों को उपदेश दिए।
4. जाम्भोलाव – जाम्भोलाव (जोधपुर), पुष्कर (अजमेर) के समान एक पवित्र तालाब है, जिसका निर्माण जैसलमेर के शासक जैत्रसिंह ने करवाया था।
5. जांगलू (बीकानेर), रोटू गांव (नागौर) विश्नोई सम्प्रदाय के प्रमुख गांव है।
6. समराथल – 1485 ई. में जाम्भो ने बीकानेर के समराथल धोरा (धोक धोरा) नामक स्थान पर विश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया।
● जाम्भों जी को पर्यावरण वैज्ञानिक /पर्यावरण संत भी कहते है।
● जाम्भों जी ने जिन स्थानों पर उपदेश दिए वो स्थान सांथरी कहलाये।

4. लाल दासी सम्प्रदाय

● संस्थापक -लाल दास जी।
● समाधि – शेरपुर (अलवर)
● लालदास जी का जन्म धोली धूव गांव (अलवर में हुआ)
● लाल दास जी को ज्ञान की प्राप्ति तिजारा (अलवर)
● प्रधान पीठ – नगला जहाज (भरतपुर) में है।
● मेवात क्षेत्र का लोकप्रिय सम्प्रदाय है।
● मेला – आश्विन शुक्ल एकादशी व माघ पूर्णिमा को

5. चरणदासी सम्प्रदाय

◆ जन्म – डेहरा (अलवर) में 1703 ई. को
◆ बचपन का नाम – रणजीत
◆ इनके अनुयायी पीले रंग के कपड़े पहनते थे।
◆ मुख्य पीठ – दिल्ली
◆ इन्होंने अपने अनुयायियों को 42 उपदेश दिए।
◆ इन्होंने नादिर शाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी। (1739 ई. में ईरान राजा का भारत पर आक्रमण)
◆ इनके प्रमुख शिष्यों की संख्या 52 मानी जाती है।
◆ इन्होंने चरणदासी सम्प्रदाय की स्थापना की थी।
◆ चरणदासी सम्प्रदाय के लोग “सखी भाव” से श्रीकृष्ण भगवान की पूजा करते है।
◆ इस सम्प्रदाय में सगुण भक्ति तथा निर्गुण भक्ति दोनों का मिश्रण देखने को मिलता है।
◆ चरणदास जी ने अपने उपदेश मेवाती भाषा में दिए थे।
◆ 1782 ई. में जयपुर आगमन पर इनको सवाई प्रताप सिंह ने एक ग्राम दान में दिया था।
◆ 1782 ई. में दिल्ली में इनकी मृत्यु हुई थी। यहाँ इनकी समाधि पर बंसत पंचमी को मेला भरता है।
◆ इनकी शिष्या दयाबाई ने ‘दयाबोध’ व ‘विनय मलिका’ तथा सहजाबाई ने ‘सहज प्रकाश’ नामक पुस्तक की रचना की थी।

6. प्राणनाथी सम्प्रदाय

● संस्थापक – प्राणनाथ जी
● प्राणनाथ जी का जन्म जामनगर (गुजरात) में हुआ।
● राज्य में पीठ – जयपुर मे।
● प्रधान पीठ पन्ना (मध्यप्रदेश) में है।
● पवित्र ग्रन्थ – कुलजम स्वरूप है, जो गुजराती भाषा में लिखा गया है।

7. वल्लभ सम्प्रदाय /पुष्ठी मार्ग सम्प्रदाय

● संस्थापक – आचार्य वल्लभ जी
● अष्ट छाप मण्डली – यह मण्डली वल्लभ जी के पुत्र विठ्ठल नाथ जी ने स्थापित की थी, जो इस सम्प्रदाय के प्रचार-प्रसार का कार्य करती थी।
● प्रधान पीठ – श्री नाथ मंदिर (नाथद्वारा-राजसमंद)
● नाथद्वारा का प्राचीन नाम “सिहाड़” था।
● 1669 ई. में मुगल सम्राट औरंगजेब ने हिन्दू मंदिरों तथा मूर्तियों को तोडने का आदेश जारी किया । फलस्वरूप वृंदावन से श्री नाथ जी की मूर्ति को मेवाड़ लाया गया । यहां के शासक राजसिंह न 1672 ई. में नाथद्वारा में श्री नाथ जी की मूर्ति को स्थापित करवाया।
● यह बनास नदी के किनारे स्थित है।
● वल्लभ सम्प्रदाय दिन में आठ बार कृष्ण जी की पूजा- अर्चना करता है।
● वल्लभ सम्प्रदाय श्री कृष्ण के बालरूप की पूजा-अर्चना करता है।
● इस सम्प्रदाय की 7 अतिरिक्त पीठें कार्यरत है।
1. बिठ्ठल नाथ जी – नाथद्वारा (राजसमंद)
2. द्वारिकाधीश जी – कांकरोली (राजसमंद)
3. गोकुलचन्द्र जी – कामा (भरतपुर)
4. मदनमोहन जी – कामा (भरतपुर)
5. मथुरेश जी – कोटा
6. बालकृष्ण जी – सूरत (गुजरात)
7. गोकुल नाथ जी – गोकुल (उत्तर -प्रदेश)

●  मूल मंत्र – श्री कृष्णम् शरणम् मम्।
● पिछवाई कला का विकास वल्लभ सम्प्रदाय के द्वारा

8. निम्बार्क सम्प्रदाय/हंस/सनक/सनकादी सम्प्रदाय

● संस्थापक – आचार्य निम्बार्क
● जन्म – 1165 में वैलारी मद्रास में
● भारत मे प्रधान पीठ – वृंदावन (मथुरा, उत्तरप्रदेश)
● राज्य में प्रमुख पीठ:- सलेमाबाद (अजमेर) है।
● राज्य की इस पीठ की स्थापना 17 वीं शताब्दी में पुशराम देवता ने की थी, इसलिए इसको “परशुरामपुरी” भी कहा जाता है।
● सलेमाबाद (अजमेर में) रूपनगढ़ नदी के किनारे स्थित है।
● परशुराम जी का ग्रन्थ – परशुराम सागर ग्रन्थ।
● निम्बार्क सम्प्रदाय कृष्ण-राधा के युगल रूप की पूजा-अर्चना करता है।
● दर्शन – द्वैता द्वैत

9. रसिक/रामावत/रामानंदी सम्प्रदाय

● संस्थापक – रामानंद
● रामानंदी सम्प्रदाय की शुरूआत दक्षिण भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत आचार्य रामानुज द्वारा की गई।
● उत्तर भारत में इस सम्प्रदाय की शुरूआत रामानुज के परम शिष्य रामानंद जी द्वारा की गई और यह सम्प्रदाय, रामानंदी सम्प्रदाय कहलाया।
● कबीर जी, रैदास जी, संत धन्ना, संत पीपा आदि रामानंद जी के शिष्य रहे है।
● राज्य में रामानंदी सम्प्रदाय के संस्थापक कृष्णदास जी पयहारी को माना जाता है।
● “कृष्णदास जी पयहारी” ने गलता (जयपुर) में रामानंदी सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ स्थापित की। “कृष्णदास जी पयहारी” के ही शिष्य “अग्रदास जी” ने रेवासा ग्राम (सीकार) में अलग पीठ स्थापित की तथा “रसिक” सम्प्रदाय के नाम से अलग और नए सम्प्रदाय की शुरूआत की।
● राजानुज/रामावत/रामानदी सम्प्रदाय राम और सीता के युगल रूप की पूजा करता है।
● दर्शन:- विशिष्टा द्वैत
● सवाई जयसिंह के समय रामानुज सम्प्रदाय का जयपुर रियासत में सर्वाधिक विकास हुआ।

10. गौड़ीय सम्प्रदाय

● संस्थापक – गौरांग महाप्रभु चैतन्य
◆ भारत में इस सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार मुगल सम्राट अकबर के काल में हुआ।
● राज्य में इस सम्प्रदाय का सर्वाधिक प्रचार जयपुर के शासक मानसिंह -प्रथम के काल में हुआ।
● मानसिंह प्रथम ने वृन्दावन में इस सम्प्रदाय का गोविन्द देव जी का मंदिर निर्मित करवाया
● प्रधान पीठ:- गोविन्द देव जी मंदिर जयपुर में है। इस मंदिर का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया।
● अन्य पीठ :-

  1.  मदनमोहन जी – करौली
  2. गोपीनाथ जी – जयपुर
  3. राधा विनोद – जयपुर
  4. राधा दामोदर – जयपुर

11.  पाशुपत सम्प्रदाय :-

● प्रवर्तक:- लकुलिश (मेवाड़ से जुडे हुए थे)
● यह सम्प्रदाय दिन में अनेक बार भगवान शिव की पूजा -अर्जना करता है।
● इस सम्प्रदाय की राजस्थान में एकमात्र पीठ कैलाशपुरी (उदयपुर) एकलिंगजी मन्दिर है।

12. नाथ सम्प्रदाय

● यह शैवमत की ही एक शाखा है जिसका संस्थापक – नाथ मुनी को माना जाता है।
● प्रमुख साधु:- गोरख नाथ, गोपीचन्द्र, मत्स्येन्द्र नाथ, आयस देव नाथ, चिडिया नाथ, जालन्धर नाथ आदि।
● जोधपुर के शासक मानसिंह नाथ सम्प्रदाय से प्रभावित थे।
● मानसिंह ने नाथ सम्प्रदाय के आयस देव नाथ को अपना गुरू माना और जोधपुर में इस सम्प्रदाय का मुख्य मंदिर महामंदिर स्थापित करवाया। (Saints and Sects of Rajasthan)

13. रामस्नेही सम्प्रदाय

● यह वैष्णव मत की निर्गणु भक्ति उपसक विचारधारा का मत रखने वाली शाखा है।
● इस सम्प्रदाय की स्थापना रामचरण जी के ही शिष्यों ने राजस्थान में अलग-अलग क्षेत्रों में क्षेत्रिय शाखाओं द्वारा की।

● इस सम्प्रदाय के साधु गुलाबी वस्त्र धारण करते है तथा दाडी-मूंछ नही रखते है।
● प्रधान पीठ :- शाहपुरा (भीलवाडा) प्राचीन पीठ- बांसवाडा में थी।
● इस सम्प्रदाय की चार शाखाऐं है।
1. शाहपुरा (भीलवाडा) – संस्थापक – रामचरणदास जी- काव्यसंग्रह – अनभैवाणी
2. रैण (नागौर) – दरियाव जी
3. सिंहथल (बीकानेर) हरिराम दास जी, रचना – निसानी
4. खैडापा (जोधपुर) – रामदास जी

14. रामानुज/श्रीसम्प्रदाय :-

● संस्थापक – रामानुजाचार्य
● इन्होंने विशिष्टता द्वेतवाद मत का प्रतिपादन किया।
● ग्रन्थ – श्री भाष्य की रचना की।
● इन्हें दक्षिणी भारत मे मध्यकाल में भक्ति का जनक कहा जाता है। (Saints and Sects of Rajasthan)

15. निष्कंलक सम्प्रदाय

◆ जन्म – साबला (डूंगरपुर) में 1741 ई. में
◆ इन्होंने निष्कलंकी सम्प्रदाय चलाया था।
◆ इन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की पूजा ‘निष्कलंक अवतार’ के रूप में की थी।
◆ इन्होंने कृष्ण लीला की रचना वागड़ी भाषा में की थी।
◆ माव जी को ज्ञान की प्राप्ति बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) में हुई
◆ इन्होंने बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) की स्थापना की थी। (संवत 1784 माघ शुक्ला एकादशी)
◆ बेणेश्वर आदिवासियों का तीर्थ स्थान है।
◆ प्रमुख ग्रंथ – चौपड़ा, यह बागड़ी भाषा में लिखा गया है। (इस ग्रंथ में तीसरे विश्व युद्ध की भविष्यवाणी है)
◆ मावजी ने अछूतों के लिए लसोड़ीया आंदोलन चलाया।
◆ मावजी के अनुयायी इन्हें हिन्दू धर्म का दसवां अवतार ‘कल्कि अवतार’ मानते है।
◆ मावजी का मुख्य मंदिर – सबला
◆ बेणेश्वर धाम पर माघ शुक्ला पूर्णिमा को सोम, माही और जाखम नदियों के त्रिवेणी संगम पर मेला लगता है। (आदिवासियों का कुम्भ)

16. निरजंनी सम्प्रदाय

◆ जन्म – कापरोड़ गाँव (डिडवाना) में 1455 ई. में
◆ निरंजनी सम्प्रदाय की स्थापना की।
◆ दादूदयाल के शिष्य थे।
◆ मूल नाम – हरिसिंह सांखला
◆ पहले ये डाकू थे बाद में संत बन गए।
◆ इन्होंने निर्गुण भक्ति पर जोर दिया था।
◆ निरंजनी सम्प्रदाय में परमात्मा को ‘अलख निरंजन’ या ‘हरि निरंजन’ कहा जाता है।
◆ संत हरीदास के आध्यात्मिक विचार ‘मंत्र राजप्रकाश’ व ‘हरिपुरुष की वाणी’ ग्रंथों में संकलित है।
◆ हरिदासजी को कलयुग का वाल्मीकि कहते है।
◆ मुख्य केन्द्र – गाढ़ा (डिडवाना)
◆ दो शाखाऐं है – 1. निहंग, 2. घरबारी (Saints and Sects of Rajasthan)

17. मीरा बाई / दासी सम्प्रदाय  

● संस्थापक – मीरा बाई
● मीरा बाई को राजस्थान की राधा कहते है।
● जन्म – कुडकी ग्राम (नागौर) में हुआ। 1498 ई.
● पिता – रत्न सिंह राठौड़
● दादा – रावदूदा
● राणा सांगा के बडे़ पुत्र भोजराज से मीरा बाई का विवाह हुआ और 7 वर्ष बाद उनके पति की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु के पश्चात् मीराबाई ने श्री कृष्ण को अपना पति मानकर दासभाव से पूजा-अर्जना की।
● मीरा बाई ने अपना अन्तिम समय गुजरात के राणछौड़ मंदिर में व्यतीत किया और यहीं श्री कृष्ण जी की मूर्ति में विलीन हो गई।
● प्रधान पीठ- मेड़ता सिटी (नागौर)
● मीरा बाई के दादा रावदूदा ने मीरा के लिए मेड़ता सिटी में चार भुजा नाथ मंदिर (मीरा बाई का मंदिर) का निर्माण किया।
● मीरा बाई का मंदिर – चित्तौड़ गढ़ दुर्ग में।

◆ मीरां बाई श्रीकृष्ण को अपना पति मानकर ‘सगुण रूप’ में पूजा करती थी।
◆ मीरां बाई की भक्ति भाव माधुर्य भाव की थी। इन्होंने ज्ञान से अधिक भावना व श्रद्धा को महत्व दिया।
◆ मीरां की प्रमुख रचनाएं – सत्याभामा जी नू रुसणो, गीत गोविन्द की टीका, राग गोविन्द, मीरां री गरीबी, रुकमणी मंगल, नरसी जी रो मायरो (यह रतना खाती के सहयोग से लिखी गई थी)
◆ मीरां ने वृन्दावन में चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रूपगोस्वामी से दीक्षा ली।
◆ महात्मा गांधी मीरां बाई को अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने वाली ‘सत्याग्रही महिला’ मानते थे।
● डाॅ गोपीनाथ शर्मा के अनुसार मीरा बाई का जन्म कुडकी ग्राम में हुआ जो वर्तमान में जैतरण तहसील (पाली) में स्थित है।
● कुछ इतिहासकार मीरा बाई का जन्म बिजौली ग्राम (नागौर) में मानते है। उनके अुनसार मीर बाई का बचपन कुडकी ग्राम में बीता।

18. संत रैदास

◆ इनका जन्म 1445 में बनारस में हुआ। ,
◆ बचपन का नाम – रविदास
● मीरा बाई के गुरू थे।
● रामानंद जी के शिष्य थे।
● मेघवाल जाति के थे।
● इनकी छत्तरी चित्तौड़गढ दुर्ग में स्थित है।
● कबीर ने इन्हें सन्तों का सन्त कहा है।

19. संत धन्ना (जाट)

◆ जन्म – धुवन गांव (टोंक) में 1415 में वैशाख कृष्ण अष्ठमी को
◆ ये रामानन्द जी के शिष्य थे।
◆ राजस्थान में धार्मिक / भक्ति आन्दोलन का श्रीगणेश करने का श्रेय संत धन्ना को जाता है।
◆ इन्हें राजस्थान में धार्मिक आंदोलन का जनक कहा जाता है।
◆ इन्होंने रामानन्द की प्रेरणा से गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए घर पर ही ईश्वर भक्ति करने, साधु संतों की सेवा करना जीवन का लक्ष्य बना लिया।
◆ बोरानाडा (जोधपुर) में इनका मंदिर बना हुआ है। (Saints and Sects of Rajasthan)

20. सन्त कबीर

◆ जन्म – 1398 में काशी में
◆ सन्त कबीर रामानन्द के शिष्य थे।
◆ ग्रन्थ – बीजक, खासनामा, साक्षी, सबद

21. संत पीपा

◆ जन्म – गागरोन (झालावाड़) में 1425 ई.
◆ गागरोन (झालावाड़) के खींची राजपूत शासक थे।
◆ रामानन्द जी के शिष्य थे।
◆ संत पीपा दर्जी समाज के प्रमुख देवता है।
◆ इन्होंने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था।
◆ समदड़ी (बाड़मेर) में संत पीपा का मुख्य मंदिर तथा गागरोन में छतरी बनी हुई है।
◆ टोडा (टोंक) में संत पीपा की गुफा बनी हुई है।
◆ संत पीपा का वास्तविक नाम – प्रताप सिंह खींची

22. भक्त कवि दुर्लभ

● ये कृष्ण भक्त थे।
● इन्हे राजस्थान का नृसिंह कहते है।
● ये बागड़ क्षेत्र के प्रमुख संत है। यह इनका कार्य क्षेत्र रहा है।

23. गवरी बाई

◆ बांगड की मीरा कहा जाता है ।
◆ डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने बाल-मुकुन्द मंदिर बनवाया थे, जिसे गवरी बाई का मंदिर भी कहा जाता है।

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