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मौर्य वंश, Maurya Vansh –
मौर्य साम्राज्य (Maurya Vansh) (323 ई. पू. – 184 ई. पू.) में चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार एवं अशोक तीन प्रसिद्ध शासक हुए। सिकन्दर के आक्रमण और नन्द वंश के पतन के बाद मगध में मौर्य वंश ने अपना राज्य स्थापित किया। सिकन्दर के आक्रमण के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से नन्द वंश को हरा दिया और मगध में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
मौर्य साम्राज्य की जानकारी के स्रोत :-
- अशोक के अभिलेख
- रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख
- कौटिल्य का अर्थशास्त्र
- मेगस्थनीज की इंडिका
- विशाखदत्त की मुद्राराक्षस
- सोमदेव का कथासरित्सागर
- क्षोमेन्द्र की वृहत् कथा मंजरी
- कल्हण की राजतरंगिणी
1. अशोक के अभिलेख :-
● अशोक के अभिलेखों से उसके प्रशासन, धम्म व उसके निजी जीवन की जानकारी मिलती है।
● 1750 में टिफेंथेलर के द्वारा अशोक के दिल्ली मेरठ स्तम्भलेख को सर्वप्रथम खोजा गया। जबकि 1837 में जेम्स प्रिंसेप के द्वारा अशोक के दिल्ली टोपरा स्तम्भलेख को पढ़ा गया।
● अशोक के अभिलेखों की भाषा प्राकृत है। लिपि ब्राह्मी, खरोष्टि, ग्रीक, आरेमाइक है।
● लघु शिलालेख, वृहद् स्तम्भलेख, लघु स्तम्भलेख तथा गुहालेख की लिपि ब्राह्मी है।
● शाहबाजगढ़ी व मनसेहरा से प्राप्त अभिलेखों की लिपि खरोष्टि है।
■ शिलालेख :-
- वृहद् शिलालेख :- 8 स्थानों से प्राप्त (शाहबाजगढ़ी, मनसेहरा, धौली, जोगढ़, एर्रागुड्डी, सोपारा, गिरनार, काल्सी)
- लघु शिलालेख :- गुर्जरा, मास्की, नेतुर, उदेगोलेम, भाब्रू
★ वृहद् शिलालेख :-
- इन्हें चतुर्दश शिलालेख कहा जाता है।
- अशोक के तीसरे लेख में प्रादेशिक, रज्जुक व युक्त नामक अधिकारियों का उल्लेख मिलता है।
- अशोक के पांचवे लेख में धम्म महमात्रो की नियुक्ति का उल्लेख मिलता है।
- अशोक के 13वें अभिलेख से कलिंग आक्रमण की जानकारी मिलती है।
★ लघु शिलालेख :-
- इनसे अशोक के व्यक्तिगत जीवन की जानकारी मिलती है।
- मास्की लघु शिलालेख में अशोक को बुद्ध शाक्य कहा गया है।
- भाब्रू लघु शिलालेख को त्रिरत्न शिलालेख कहते है क्योंकि अशोक इसमें बौद्ध धर्म के त्रिरत्न बुद्ध, धम्म व संघ के प्रति आस्था प्रकट करता है।
■ स्तम्भ लेख :-
- वृहद् स्तम्भलेख :- दिल्ली-टोपरा, दिल्ली-मेरठ, लोरिया-अरराज, लोरिया-नन्दनगढ़, रामपुरवा, प्रयाग।
- लघु स्तम्भलेख :- सांची, सारनाथ
★ वृहद् स्तम्भलेख :-
- इनकी संख्या 7 है जो 6 स्थानों से प्राप्त हुए।
- दूसरे व सातवें स्तम्भलेख से धम्म की जानकारी मिलती है।
- दिल्ली-टोपरा स्तम्भलेख को सुनहरी लाट, भीम लाट, शिवालिक लाट भी कहा जाता है।
★ लघु स्तम्भलेख :-
- सारनाथ लघु स्तम्भलेख से चार सिंह के नीचे चार पशु आकृति प्राप्त हुई – हाथी, घोड़ा, वृषभ, सिंह।
- सांची स्तम्भ लेख में चार सिंह के नीचे दाना चुगते हुए हँस की आकृति है।
■ गुहालेख :-
- अशोक ने बिहार स्थित बराबर की पहाड़ियों में आजीवक सम्प्रदाय क् लिए सुदामा, कर्ण-चौपार, विश्व झोपड़ी नामक गुफाओं का निर्माण करवाया।
- अशोक के पौत्र दशरथ ने बिहार स्थित नागार्जुन की पहाड़ियों में आजीवक सम्प्रदाय के लिए गोपी, लोमर्षि, वडथिका गुफाओं का निर्माण करवाया।
रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख :-
- सुरदर्शन झील की जानकारी
- जूनागढ़ अभिलेख में दो मौर्य शासकों चन्द्रगुप्त मौर्य व अशोक का उल्लेख मिलता है।
■ मेगस्थनीज :-
- चन्द्रगुप्त मौर्य के समय भारत आया।
- सेल्युकस निकेटर का राजदूत था।
- पुस्तक -इंडिका (1891 में मैक्रिण्डल ने इंडिका का अंग्रेजी में अनुवाद किया)
- जानकारी – मौर्यकालीन (Maurya Vansh) नगर प्रशासन, मौर्यकालीन सैन्य प्रशासन, भूराजस्व 1/4 लिया जाता था।
- मेगस्थनीज ने उत्तरापथ का भी उल्लेख किया है।
■ कौटिल्य की अर्थशास्त्र :-
- भाषा – संस्कृत
- भाग – 15 (अधिकरण)
- उपभाग – 180 (प्रकरण)
- श्लोक – 6000
- 1909 में शाम शास्त्री ने इसका प्रकाशन किया।
- प्रथम अधिकरण :- विनियाधिकारिक – राजा के व्यवहार का वर्णन
- द्वितीय अधिकरण :- अध्यक्ष प्रचार – अध्यक्षों के कार्य व उनके विभागों का वर्णन
- तृतीय अधिकरण :- धर्मस्थीय – दीवानी न्यायालयों से सम्बंधित
- चौथा अधिकरण :- कंटक शोधन – फौजदारी न्यायालयों से सम्बंधित
- पांचवाँ अधिकरण :- योगवृत – प्रशासनिक अधिकारियों के कर्तव्यों का उल्लेख
- छठा अधिकरण :- मण्डल योनि – राज्य के सप्तांग का वर्णन (राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, मित्र, सेना, कोष)
● अर्थशास्त्र में किसी भी मौर्य शासक के नाम व उनकी राजधानी का उल्लेख नही है।
● कौटिल्य के अनुसार 9 प्रकार के दास थे।
● अर्थशास्त्र के अनुसार भू-राजस्व 1/6 लिया जाना चाहिए।
■ चन्द्रगुप्त मौर्य :- 323 – 298 ई.पू.
● अन्य नाम – एंड्रोकोट्स, सेन्ड्रोकोट्स (विलियम जोन्स ने)
● मुद्राराक्षस में चन्द्रगुप्त मौर्य को वृषल (निम्न कुल) का कहा है।
● चन्द्रगुप्त की शिक्षा तक्षशिला में हुई। चन्द्रगुप्त ने यूनान के शासक सेल्युकस निकेटर को पराजित किया और सेल्युकस की पुत्री हेलेना से विवाह किया जिसकी जानकारी एप्पियानस के द्वारा दी गयी।
● सेल्युकस ने चन्द्रगुप्त मौर्य को 4 प्रान्त प्रदान किये –
- एरिया (हेरात)
- अराकोसिया (कांधार)
- जेड्रोसिया (मकरान तट)
- पेरोपेनिसडाई (काबुल)
● चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस को 500 हाथी प्रदान किये।
● चन्द्रगुप्त मौर्य जैन धर्म का अनुयायी था।
● चन्द्रगुप्त मौर्य के काल मे 300 ई.पू. में स्थूलभद्र के नेतृत्व में पाटलिपुत्र में पहली जैन संगीति का आयोजन किया गया। इसमें जैन धर्म दो भागों में बंट गया – श्वेताम्बर व दिगम्बर
● जैन ग्रंथ राजावली के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने कर्नाटक के चन्द्रगिरि पर्वत के पास श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर सल्लेखना पद्धति के द्वारा अपने प्राणों का त्याग कर दिया।
■ बिन्दुसार :- 298 – 273 ई.पू.
● अन्य नाम – अमित्रोचेट्स (शत्रुओं का नाश करने वाला), अमित्रघात, सिंहसेन (जैन साहित्यों में)
● बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान के अनुसार बिन्दुसार के काल मे तक्षशिला में विद्रोह हुआ जिसे दबाने के लिए उज्जैन के राज्यपाल अशोक को भेजा गया।
● बिन्दुसार के काल मे सीरिया का शासक एंटियोकस प्रथम था बिन्दुसार ने एंटीयोकस प्रथम से तीन वस्तुओं की मांग की थी। (Maurya Vansh)
- दार्शनिक
- सुखी अंजीर
- मीठी मदिरा
● एंटीयोकस प्रथम ने दार्शनिक देने से इनकार कर दिया।
● बिन्दुसार के काल मे सीरिया के शासक एंटीयोकस प्रथम का राजदूत डाइमेकस भारत आया।
● मिश्र के शासक टॉलमी फिलाडेल्फस – II का राजदूत डायनोसियस भी बिन्दुसार के काल मे भारत आया था।
● बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था।
● आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना मक्खलिपुत्रगौशाल के द्वारा की गई थी।
■ अशोक :- 273 – 232 ई.पू.
● अन्य नाम – अशोक वर्द्धन (पुराणों में), बुद्ध शाक्य (मास्की शिलालेख मे
● माता :-
- धम्मा (महाबोधिवंश के अनुसार)
- पासादिका (दिव्यावदान के अनुसार)
- सुभृदांगी (अशोक अवदानमाला के अनुसार)
● पत्नी :- असंधिमित्रा, महादेवी, कारूवाकी, तिष्यरक्षिता
● पुत्री :- संघमित्रा, चारुमती
● पुत्र :-
- महेन्द्र (बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार)
- कुणाल (बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार)
- तीवर
- जालौक (कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी के अनुसार)
◆ तीसरी बौद्ध संगीति :- समय – 251 BC
● स्थान – पाटलिपुत्र, शासक – अशोक
● अध्यक्ष – मोगलीपुत्त तिस्स
● इस संगीति में अभिधम्म पिटक (त्रिपिटक का एक ग्रन्थ) की रचना हुई।
● बौद्ध धर्म के अनुयायी उपगुप्त ने अशोक को बौद्ध धर्म मे दीक्षित किया।
● अशोक के काल मे कश्मीर में श्रीनगर व नेपाल में देवपतन नामक नगर की स्थापना हुई।
★ अशोक का धम्म :-
● धम्म की परिभाषा – राहुलोवादसुत्त
● फ्लीट महोदय धम्म को राजधर्म मानते है। रोमिला थापर ने धम्म को अशोक की निजी कल्पना माना है।
● डी.आर.भण्डारकर के अनुसार अशोक के धम्म का मूल स्रोत बौद्ध धर्म है।
■ मौर्यकालीन प्रशासन :-
● अर्थशास्त्र में मंत्रिणः शब्द का प्रयोग मिलता है। मौर्यकाल में प्रशासन चलाने के लिए तीर्थ व अध्यक्ष नियुक्त किये गए। इन अधिकारियों की नियुक्ति उपधा परीक्षण के बाद कि जाति थी।
● उपधा परीक्षण का अर्थ है – नैतिकता की जाँच करना।
● मंत्रिणः में पुरोहित, प्रधानमंत्री, समाहर्त्ता, सन्निधाता व युवराज की शामिल किया जाता था।
★ तीर्थ :- संख्या – 18
- पुरोहित –
- प्रधानमंत्री – मौर्यकाल में पुरोहित व प्रधानमंत्री दोनों पदों पर एक ही व्यक्ति को नियुक्त किया जाता था। चन्द्रगुप्त के काल मे चाणक्य, बिन्दुसार के काल मे चाणक्य व खल्लाटक तथा अशोक के काल मे राधागुप इस पद पर था।
- समाहर्त्ता – राजस्व विभाग का प्रधान अधिकारी
- सन्निधाता – राजकीय कोषाध्यक्ष
- युवराज – उत्तराधिकारी
- प्रदेष्ठा – फौजदारी न्यायालयों का न्यायाधीश
- कर्मान्तिक – उद्योग धंधों का प्रमुख अधिकारी
- व्यवहारिक – दीवानी न्यायालयों का न्यायाधीश
★ अध्यक्ष :- संख्या – 26
● मेगस्थनीज ने अध्यक्ष के लिए मजिस्ट्रेट शब्द का प्रयोग किया है।
- मुद्राध्यक्ष – पासपोर्ट अधिकारी
- अकराध्यक्ष – खान विभाग से सम्बंधित अधिकारी
- सिताध्यक्ष – राजकीय कृषि विभाग का अधिकारी
- विविताध्यक्ष – चारागाह का अधिकारी
- पोतवाध्य्क्ष – माप-तोल से सम्बंधित अधिकारी
- सुनाध्यक्ष – बूचड़खाने से सम्बंधित अधिकारी
- पण्याध्य्क्ष – व्यापार-वाणिज्य से सम्बंधित अधिकारी
- मानाध्यक्ष – दूरी व समय से सम्बंधित साधनों को नियंत्रित करने वाला अधिकारी
- गणिकाध्यक्ष – गणिकाओं से सम्बंधित अधिकारी
- नवाध्यक्ष – जहाजरानी विभाग का अध्यक्ष
- अक्षपटलाध्यक्ष – महालेखाकार
मौर्यकालीन प्रशासनिक इकाई :-
- केंद्र – राजा
- प्रांत / चक्र – कुमार / आर्यपुत्र
- मण्डल – प्रदेष्ठा
- आहार/विषय/जिला – विषयपति
- स्थानीय – 800 गाँवों का समूह
- द्रोणमुख – 400 गाँवों का समूह
- खर्वाटिक – 200 गाँवों का समूह
- संग्रहण – 10 गाँवों का समूह
- गांव
● प्रान्त –
- उत्तरापथ – तक्षशिला
- दक्षिणापथ – सुवर्णगिरि
- प्राची – पाटलिपुत्र
- अवंति – उज्जैयिनी
- कलिंग – तोसली
चन्द्रगुप्त मौर्य के समय 4 प्रांत थे (उत्तरापथ, दक्षिणापथ, प्राची, अवंति) जबकि अशोक के समय पांच प्रांत (उत्तरापथ, दक्षिणापथ, प्राची, अवंति, कलिंग) थे।
★ नगर प्रशासन :- मेगस्थनीज के अनुसार मौर्यकालीन नगर प्रशासन 6 समितियों में विभक्त था प्रत्येक समिति में 5 सदस्य थे।
- शिल्पकला समिति
- विदेश समिति
- जनसंख्या समिति
- उद्योग-व्यापार समिति
- वस्तु निरीक्षक समिति
- कर निरीक्षक समिति
● जिले के अधिकारी :-
- एग्रोनोमोई :- यह जिले का अधिकारी होता था। यह सड़क निर्माण से सम्बंधित अधिकारी होता था।
- एस्ट्रोनोमोई :- यह नगर का प्रमुख अधिकारी होता था।
- रूपदर्शक :- सिक्को की जांच करने वाला अधिकारी
अन्य अधिकारी –
- प्रादेशिक :- प्रदेश का प्रमुख अधिकारी
- रज्जुक :- जनपद का प्रमुख अधिकारी
- युक्त :- रज्जुक के अधीन अधिकारी
■ गुप्तचर विभाग :-
● कौटिल्य ने गुप्तचरों के लिए गूढ़ पुरुष शब्द का प्रयोग किया है। और गुप्तचर विभाग के लिए महामात्यपर्सप शब्द का प्रयोग किया है।
● गुप्तचरों के प्रकार :-
- संस्था :- एक स्थान पर रहकर गुप्तचर का कार्य करने वाले
- संचार :- घूम – घूम कर गुप्तचर का कार्य करने वाले
● मौर्यकाल (Maurya Vansh) में महिलाएँ भी गुप्तचर का कार्य किया करती थी।
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■ राजस्व प्रशासन :-
● राजस्व के प्रमुख स्रोत –
- दुर्ग – नगरों से प्राप्त आय
- राष्ट्र – जनपद से प्राप्त आय
- खनि – खानों से प्राप्त आय
- सेतु – फल-फूल व सब्जियों से प्राप्त आय
- वन – जंगल से प्राप्त आय
- ब्रज – पशुओं से प्राप्त आय
- वणिक पथ – स्थल व जल मार्ग से होने वाली आय
आय के अन्य स्रोत :-
- सीता – राजकीय भूमि पर खेती से प्राप्त आय
- भाग – किसानों से प्राप्त आय
- प्रणय – संकटकाल में प्रजा से लिया जाने वाला कर
- विष्टि – निःशुल्क श्रम या बेगार
- बलि – यह एक प्रकार का धार्मिक कर था।
- हिरण्य – यह कर अनाज के रूप में न लेकर नगद लिया जाता था।
- रज्जू – भूमि की माप हेतु जो कर लिया जाता था उसे रज्जू कहा जाता था।
- वर्तनी – सीमा पार करने पर लिया जाने वाला कर
● अर्थशास्त्र में बीमा की जानकारी मिलती है बीमा के लिए “भय प्रतिकार व्यय” शब्द का प्रयोग किया गया।
◆ राज्य के द्वारा नियंत्रित उद्योग :- हथियार उद्योग, जहाजरानी उद्योग, खान उद्योग, नमक उद्योग, शराब उद्योग
■ सैन्य प्रशासन :-
● प्लिनी के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के पास 6 लाख की सेना थी।
● जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना को डाकुओं की सेना है।
● मेगस्थनीज के अनुसार सेना में 6 समितियां थी प्रत्येक समिति में 5 सदस्य थे।
- पैदल समिति
- रथ समिति
- अश्व समिति
- गज समिति
- नौ-सेना समिति
- रसद समिति
■ मौर्यकालीन सिक्के :-
1. सोने के सिक्के – निष्क व सुवर्ण
2. चाँदी के सिक्के – पण, कार्षापण, धरण व शतमान
3. ताम्बे के सिक्के – माषक व काकणी
● मौर्यकालीन राजकीय मुद्रा पण थी, पण का प्रयोग वेतन देने में किया जाता था। इस पर सूर्य, चन्द्र, मयूर, पीपल, बैल व सर्प की आकृति बनी होती थी। इन्हें पंचमार्क या आहत मुद्रा कहा जाता था।
■ सामाजिक जीवन :-
● समाज मे वर्ण व्यवस्था मौजूद थी – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र चार वर्ण थे।
● कौटिल्य ने शुद्र को आर्य के समान माना और शूद्रों को सेना में भर्ती होने योग्य भी माना था।
● मौर्यकाल (Maurya Vansh) में कार्य के आधार पर भी सामाजिक विभाजन दिखाई पड़ता है जैसे –
- तन्तुवाय – जुलाहा
- रजक – धोबी
- प्लवक – रस्सी पर चलने वाला
- कुशिलव – तमाशा दिखाने वाला
- सौभिक – मदारी
- कुहक – जादूगर
● मेगस्थनीज के अनुसार मौर्यकालीन समाज सात जातियों में विभक्त था – दार्शनिक, किसान, अहीर (ग्वाले), कारीगर, सैनिक, निरीक्षक, सभासद (शासक वर्ग)
● अनिष्कासिनी :- ऐसी महिलाएं जो घरों से बाहर नही निकलती थी।
● रूपाजीवा :- संगीत व नृत्य के माध्यम से अपना जीवन-यापन करने वाली महिलाएं।
● प्रवहण :- यह एक प्रकार का सामूहिक उत्सव था।
■ अर्थव्यवस्था :-
● कृषि, पशुपालन, व्यापार-वाणिज्य पर आधारित
● वार्त्ता – वृति (आजीविका) का साधन
● फसल :- 3 प्रकार की –
- हैमन – रबी की फसल
- ग्रेष्मीक – खरीफ की फसल
- केदार – जायद की फसल
● सबसे उत्तम फसल – धान
● सबसे निकृष्ट फसल – गन्ना
Maurya Vansh
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