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जोधपुर के राठौड़ | Jodhpur ka Rathore Vansh

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● मारवाड़ रियासत में जोधपुर, बीकानेर, नागौर, पाली, जैसलमेर, बाड़मेर आदि जिले आते हैं।
● राजस्थान में राठौड़ों की मुख्यतः तीन रियासतें थी। –

1.मारवाड़ (जोधपुर) – स्थापना 1459 में, संस्थापक – राव सीहा
2.बीकानेर – स्थापना 1488 में, संस्वसंस्थापक – राव बीका
3.किशनगढ़ – स्थापना 1609 में, संस्थापक – किशन सिंह

उत्पत्ति :-

● राठौड़ शब्द की व्युत्पत्ति राष्ट्रकूट शब्द से मानी जाती है।
● पृथ्वीराजरासो, नैणसी, दयालदास और कर्नल जेम्स टॉड राठौड़ों को कन्नौज के जयचंद गढ़वाल का वंशज मानते हैं।
● डॉ. ओझा ने मारवाड़ के राठौड़ों को बदायूं के राठौड़ों का वंशज माना है।

मारवाड़ (जोधपुर) के राठौड़ | Jodhpur ka Rathore Vansh

संस्थापक – राव सीहा (1240 – 1273 ई.)

● जयचंद गढ़वाल का पौत्र
● 1212 ई. के आसपास मारवाड़ में प्रवेश किया। सिहा राठौड़ वंश का संस्थापक / आदि पुरुष / मूल पुरुष है।
● पाली के समीप बिठु गांव के देवल के लेख से सिहा की मृत्यु की तिथि 1273 ई. निश्चित होती है

राव चुंडा (1383 – 1423 ई.)

● राठौड़ वंश का वास्तविक संस्थापक
● चूंडा ने मारवाड़ में सामंत प्रथा की शुरुआत की जबकि ओझा के अनुसार सामंत प्रथा का वास्तविक संस्थापक राव जोधा है।
● चूंडा ने इन्दा परिहारों के साथ मिलकर मण्डोर को मालवा के सूबेदार से छीन लिया तथा मण्डोर को अपनी राजधानी बनाया। इस प्रकार इन्दा परिहारों को अपना सहयोगी बनाकर राव चूंडा ने मारवाड़ में सामन्त प्रथा की स्थापना की।
● राठोड़ों की प्रारम्भिक राजधानी मण्डोर है।

कान्हा (1423 – 1427)

● चूंडा ने अपनी मोहिलाणी रानी के प्रभाव में आकर उसके पुत्र कान्हा को उत्तराधिकारी बनाया जबकि रणमल चुंडा का जेष्ठ पुत्र था।
● रणमल मेवाड़ के राणा लाखा की शरण में चला गया तथा अपनी बहन हंसाबाई का विवाह लाखा से कर दिया। राणा ने उसे धणला गांव जागीर में दिया।
● 1427 ई. में रणमल ने राणा मोकल की सहायता से मंडोर पर अधिकार कर लिया।

राव रणमल (1427 – 1438)

● इसकी पत्नी कोडमदे ने बीकानेर में कोडमदेसर बावड़ी बनवाई।
● रणमल ने अपने समय में मारवाड़ और मेवाड़ रियासतों पर प्रभाव बना रखा था।
● मेवाड़ी सरदारों ने 1438 ई. में उसकी प्रेयसी भारमली की सहायता से चित्तौड़ में रणमल की हत्या कर दी।

राव जोधा (1438 – 1489)

● सामंत प्रथा का वास्तविक संस्थापक है।
● ओझा व टॉड राठौड़ों का प्रथम शक्तिशाली राजा राव जोधा को मानते हैं।
● जोधा ने 1453 में मंडोर पर अधिकार किया।
● पिता रणमल की हत्या के बाद जोधा ने चित्तौड़ से भागकर बीकानेर के समीप काहुनी गांव में शरण ली।
● चुंडा के नेतृत्व में मेवाड़ की सेना ने राठौड़ों की राजधानी मंडोर पर अधिकार कर लिया। 15 वर्ष बाद राव जोधा मण्डोर पर पुनः अधिकार कर सका। ।
◆ आंवल – बांवल की सन्धि (1453) :- राणा कुम्भा ओर राव जोधा के मध्य आंवल-बांवल की सन्धि हुई। जोधा ने अपनी पुत्री श्रंगार देवी का विवाह कुम्भा के पुत्र रायमल से कर दिया।
● राव जोधा द्वारा अपने पुत्रों और सरदारों में राज्य बांटने के कारण राधा जोधा को मारवाड़ रियासत में सामंत प्रथा का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इसी नीति का परिणाम था राव जोधा के पुत्र बीका द्वारा बीकानेर राज्य की स्थापना।

◆ जोधपुर नगर की स्थापना (1459 ई.) :- राव जोधा ने 1459 इसमें जोधपुर नगर की स्थापना कर चिड़ियाटूक पहाड़ी पर मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया तथा इसे अपनी राजधानी बनाया।
● मेहरानगढ़ किले में चामुंडा माता के मंदिर और राठौड़ों की कुलदेवी नागणेची माता के मंदिर का निर्माण राव जोधा ने करवाया था।
● जोधा की हाडी रानी जसमादे ने जोधपुर में रानीसर तालाब बनवाया था।

राव सातल देव (1489 – 1492)

● जोधा के पुत्र राव सातल ने सातलमेर कस्बा बसाया था। उसकी भटियाणी रानी फुलां ने जोधपुर में फुलेलाव तालाब बनवाया।
● घुड़ला नृत्य :- सातलदेव के समय अजमेर सूबेदार मल्लू खाँ का सेनापति घुड़ला ने पीपाड़ (जोधपुर) से कुछ कन्याओं का अपहरण कर लिया, सातलदेव इन्हें छुड़वाकर लाया।
● इसकी याद में चैत्र कृष्णाष्टमी को घुड़ला नृत्य किया जाता है।
● घुड़ला नृत्य घुड़ला की पुत्री गिन्दोली ने प्रारंभ किया।

राव गांगा (1515 – 1532)

● गंगलाव तालाब व गंग श्याम मंदिर बनवाया।
● खानवा युद्ध में पुत्र मालदेव व रतनसिंह व वीरमदेव को मेड़ता से भेजा।
● गांगा की हत्या इसके पुत्र मालदेव ने की थी।

राव मालदेव (1532 – 1562)

● उत्तराधिकारी – राव गांगा
● राज्याभिषेक – सोजत का किला, जैतारण (पाली) में
● चर्चित – पुत्रहंता शासक, 52 युद्धों का विजेता, हसमत वाला बादशाह
● राव गांगा के काल में मारवाड़ का सर्वाधिक पतन हुआ था, तथा मारवाड़ पाली व जोधपुर तक ही सिमटकर रह गया था।
● राव मालदेव साम्राज्य विस्तार करता हुआ मारवाड़ की उत्तरी सीमाएं सिरसा हरियाणा तक पहुंचा देता है।

● हीरा बाड़ी का युद्ध – 1536 – नागौर के दौलत खां को पराजित किया
● 1538 में मेड़ता के वीरमदेव मेड़तिया को पराजित किया।
● 1539 में सिवाणा पर अधिकार करते हुए 1540 में गंगानगर हनुमानगढ़ वाले क्षेत्र पर भी अधिकार करते हुए सिरसा तक सीमाएं पहुंचा देता है।

● पाहेबा / साहेबा का युद्ध – 1541-42 – राव जैतसी/लूणकरण भाटी व राव मालदेव के मध्य
● राव जैतसी के दरबारी विद्वान बिठू सूजा द्वारा रचित रचना “राव जैतसी रो छंद” में पाहेबा का युद्ध और इस युद्ध में जेतसी की वीरता का उल्लेख मिलता है।
● राव जैतसी की छतरी ‘पाहेबा’ हनुमानगढ़ में बनी हुई है।

● रानी उमादे :- यह जैसलमेर के शासक राव लूणकरण भाटी की पुत्री थी, पाहेबा के युद्ध के उपरांत हुए समझौते से इसका विवाह राव मालदेव के साथ हुआ था। विवाह के कुछ समय पश्चात यह मालदेव से रूठ कर अजमेर चली जाती है तथा आजीवन अपने दत्तक पुत्र राम के साथ अजमेर के गुरोंज नामक स्थान पर रहती है। रानी उमादे अपने स्वभाव के कारण रूठी रानी के नाम से जानी जाती है। 1562 में राव मालदेव की मृत्यु के पश्चात उसकी पगड़ी के साथ सती हो गई थी।

शेरशाह सूरी और मालदेव :-

● 1540 में शेरशाह सूरी मुगल शासक हुमायूं को हटाकर भारत की केंद्रीय सत्ता प्राप्त करता है। इस समय मालदेव हुमांयू की सहायता करता है जिसके कारण शेरशाह सूरी मारवाड़ पर आक्रमण करता है।

◆ गिरीसुमेल / जैतारण-पाली का युद्ध – 5 जून 1544 को शेरशाह सूरी तथा मालदेव, जेता व कुंपा के मध्य हुआ जिसमें शेरशाह की विजय हुई।
● इस युद्ध मे शेरशाह सूरी जैता व कूपा पर विश्वासघात के झूठे आरोप लगाता है जिसके कारण मालदेव युद्ध मैदान छोड़कर सिवाणा चला जाता है।
● युद्ध में विजय के उपरांत शेरशाह सूरी ने कहा था – “मैं मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिंदुस्तान की बादशाहत खो देता।”
● शेरशाह सूरी विजय के उपरांत जोधपुर पर अधिकार करते हुए ख्वास खां को जोधपुर का प्रशासक नियुक्त करता है तथा इस दुर्ग में एक मस्जिद का निर्माण करता है जिसे ओलाई मस्जिद कहा जाता है। (Jodhpur ka Rathore Vansh)
● युद्ध के उपरांत मालदेव शेरशाह सूरी के साथ समझौता करते हुए अपनी बहन भाई कनका बाई का विवाह शेरशाह के पुत्र इस्माइल खां सूरी के साथ करता है यह प्रथम राजपूत अफगान विवाह समझौता है।

● मालदेव की मृत्यु :- 1562 में अकबर के मालवा अभियान के समय मालवा के शासक रायबहादुर की सहायता करते हुए मालदेव की मृत्यु हो जाती है

राव चंद्रसेन (1562 – 1581)

● उत्तराधिकारी – मालदेव का
● राज्याभिषेक – सोजत का किला जैतारण पाली में
● चर्चित – भुला बिसरा / विस्मित शासक, मारवाड़ का प्रताप, प्रताप का पथ प्रदर्शक/अग्रगामी
● चंद्रसेन मालदेव का तीसरी संतान था जिसके कारण उसके दोनों बड़े भाई और छोटा उदयसिंह उसके राज्य अभिषेक का विरोध करते है।

◆ लोहावत का युद्ध – 1563 :- यह युद्ध 1563 में उत्तराधिकार के लिए चंद्रसेन व उदय सिंह के मध्य हुआ इस युद्ध में उदय सिंह परास्त होकर अकबर की शरण में चला जाता है। अकबर उदय सिंह की सहायता हेतु अपने सेनापति हुसैन कुली खां को सेनाएँ लेकर जोधपुर भेजता है जिसके कारण चंद्रसेन जोधपुर छोड़कर भाद्राजूण को अपना केंद्र बनाता है तथा यहीं से मुगल सेना के विरुद्ध संघर्ष जारी रखता है।

◆ नागौर दरबार – 1570 :-
● अकबर के नागौर में इस दरबार का आयोजन राजपूत शासकों को अधीनता स्वीकार कराने के उद्देश्य से किया था, इस दरबार में अकबर ने चंद्रसेन व उसके भाइयों को भी आमंत्रित किया था दरबार में अकबर पक्षपात पूर्ण व्यवहार करते हुए चंद्रसेन और उसके भाइयों के बीच लड़ाई को सुलझाने की जगह बढ़ाने का कार्य करता है इस कारण चंद्रसेन दरबार छोड़ कर सिवाणा चला जाता है।
● नागौर दरबार में बीकानेर शासक कल्याणमल तथा जैसलमेर के शासक हरराय भाटी ने अकबर की अधीनता स्वीकार की थी। कल्याणमल ने अपने दोनों पुत्रों रायसिंह व पृथ्वीसिंह को अकबर की सेवा में नियुक्त कर देता है।
● अकबर रायसिंह को जोधपुर का प्रशासक नियुक्त करते हुए चंद्रसेन के विरुद्ध अभियान चलाने का आदेश देता है।
● नागौर दरबार के समय अकबर ने नागौर में शुक्र तालाब का निर्माण करवाया था।

रायसिंह और चंद्रसैन :-

● रायसिंह चंद्रसेन के विरुद्ध सिवाणा पर निरंतर सैन्य अभियानों का संचालन करता है जिसके कारण चंद्रसेन सिवाणा छोड़कर भाद्राजूण चला जाता है परंतु भाद्राजूण पर भी रायसिंह के निरंतर अभियानों के कारण काफी वर्षो तक सिरोही, डूंगरपुर व बांसवाड़ा में भटकता रहता है। तथा उसके पश्चात सच्चियाप पहाड़ियों को अपना केंद्र बनाता है। और यही से आजीवन मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखता है।
● चन्द्रसेन राजपुताना का पहला शासक था जिसने स्वतन्त्रता के लिए आजीवन मुगलों के साथ संघर्ष किया था।
● चंद्रसेन की मृत्यु – 11 जनवरी 1581 सच्चियाप, पाली
● चंद्रसेन की छतरी – सिवाणा, बाड़मेर
● चंद्रसेन का स्मारक – सारण गांव सच्चियाप पहाड़ी, पाली
● चंद्रसेन की मृत्यु के पश्चात अकबर जोधपुर को खालसा घोषित कर देता है तथा इसे 1581 से 1583 तक 3 वर्ष के लिए खालसा रखता है।
● 1583 में चंद्रसेन का छोटा भाई उदय सिंह अकबर की अधीनता स्वीकार करता है तो अकबर उसे मोटा राजा की उपाधि प्रदान करते हुए जोधपुर की प्रशासनिक जिम्मेदारी सौंपता है।
● मोटा राजा उदयसिंह 1587 में अपनी पुत्री जोधा दे का विवाह अकबर के पुत्र जहांगीर के साथ करवाता है यह पहला राठौड़ मुगल विवाह समझौता था। जोधा दे मुगल दरबार में जगत गोसाई के नाम से जानी जाती थी। शाहजहां इसी का पुत्र था।
● अकबर ने मारवाड़ के शासक सूरसिंह को सवाईराजा की उपाधि प्रदान की थी। जहांगीर ने मारवाड़ के शासक गजसिंह को दलथम्बन की उपाधि प्रदान की थी।

महाराजा जसवंत सिंह (1638 – 1678)

● उत्तराधिकारी – गज सिंह
● मुगल सेवा – शाहजहां और औरंगजेब
● 1658 में शाहजहां के पुत्रों में जब उत्तराधिकार संघर्ष होता है तो जसवंत सिंह दारा शिकोह का पक्ष लेते हुए औरंगजेब के विरुद्ध 15 अप्रैल 1658 को धर्मत का युद्ध तथा मार्च 1659 में दौराई का युद्ध लड़ता है.
● औरंगजेब और जसवंत सिंह के मध्य 1659 में आमेर के मिर्जा जयसिंह प्रथम ने समझौता करवाया था।
● औरंगजेब के मंदिर व मूर्ति तोड़ो अभियान के समय जसवंत सिंह ने कहा था – “अगर औरंगजेब मारवाड़ के क्षेत्र में एक भी मंदिर तुड़वाता है तो मैं पूरे हिंदुस्तान की मस्जिदें तूड़वा दूंगा” (Jodhpur ka Rathore Vansh)

प्रमुख अभियान :-

(i) काबुल अभियान :- 1660
● नेतृत्व – जसवंत सिंह
● रानियां – श्रंगार दे (महामाया), अपूर्व दे (जसवंत दे)
● विजय – जसवंत सिंह
● काबुल अभियान के समय अपूर्वदे काबुली अनार के पौधे लाती है जिन्हें क्रमशः कागा उद्यान मण्डोर व राई का बाग जोधपुर में लगवाए थे।

(ii) दक्षिण भारत अभियान :- औरंगजेब 1663 में जसवंत सिंह को मराठों के विरुद्ध दक्षिण भारत अभियान पर भेजता है इन अभियानों का सफलतापूर्वक नेतृत्व करते हुए जसवंत सिंह ने आगरा के निकट एक कचहरी का निर्माण करवाया था, तथा दक्षिण भारत में जसवंतपुर नामक नगर बसाया था।

(iii) जामरूद अभियान – 1678 :-
● नेतृत्व – जसवंत सिंह
● विजय – जसवंत सिंह I
● वीरगति – जसवंत सिंह
● जसवंत सिंह की मृत्यु पर औरंगजेब ने कहा था कि – “आज कुफ्र (धर्म विरोधी) का दरवाजा टूट गया है।”
● औरंगजेब ने इसके शव को जोधपुर में दफनाकर उसका मकबरा बनवा दिया था।
● जसवंत सिंह की मृत्यु पर औरंगजेब जोधपुर को खालसा घोषित कर देता है औरंगजेब जसवंत सिंह की दोनों रानियों को सरंक्षण के बहाने कैद कर लेता है।

प्रमुख दरबारी :-

1.मुहणोत नैणसी – पाली (नैणसी री ख्यात, मारवाड़ रा परगना री विगत) – राजस्थान का अबुल फजल
2.रूपा बाई – कालिंदी (सिरोही) – गोरा धाय, मारवाड़ की पन्ना धाय
3.दुर्गादास राठौड़ – बाड़मेर – राठौड़ों का युलिसिज, राठौड़ो का उद्धारक

● दुर्गादास राठौड़ औरंगजेब की कैद से जसवंतसिंह की दोनों रानियों और उसके पुत्र अजीत सिंह को छुड़वाकर केलवा (राजसमंद) में शरण प्राप्त करते हुए 30 वर्ष तक मुगलों के साथ संघर्ष करता है।
● 1709 में मुगल शासक बहादुर शाह प्रथम के साथ समझौता करते हुए दुर्गादास अजीत सिंह का राज्याभिषेक करवाता है।
● अजीत सिंह ने जसवंत थड़ा को मंदिर जैसी आभा देने के लिए अपनी पुत्री इंद्रकुमारी का विवाह तात्कालिक मुगल शासक फर्रूखसियर के साथ करता है इंद्र कुंवर फर्रूखसियर की हत्या करते हुए वापस मारवाड़ आ जाती है। यह अंतिम राजपूत मुगल विवाह संबंध था

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Jodhpur ka Rathore Vansh

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