Indian Constitutional History, Indian Constitutional History Notes In hindi pdf, Political Science notes in Hindi PDF, भारतीय संविधान का इतिहास
ब्रिटिश शासन दो वर्गों में विभाजित किया जाता है –
1. कम्पनी का शासन – 1765 से 1858 तक
( क ) देश में सत्ता का स्त्रोत मुगल सम्राट था ।
( ख ) ईस्ट इण्डिया कम्पनी मुगल सम्राट के सूबेदार की हैसियत से देश में शासन करती थी ।
( ग ) ब्रिटिश संसद ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की भारत में गतिविधियों को नियंत्रित करने हेतु रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 व 20 वर्षों के अन्तराल पर अनेक चार्टर एक्ट पारित किये ।
2 . ताज का शासन – 1858 से 1947 तक
( क ) देश की सत्ता का स्त्रोत ब्रिटिश सम्राट हो गया ।
( ख ) वायसराव व गर्वनर जनरल देश में ब्रिटिश सम्राट का प्रतिनिधि था ।
( ग ) भारत ब्रिटिश सम्राज्य व शासन का भाग हो गया । सम्राट > ब्रिटिश संसद > ब्रिटिश PM > ब्रिटिश मंत्रिमण्डल > भारत सचिव ( भारत सरकार ) > वायसराय व गवर्नर जनरल > गवर्नर > कलेक्टर
★ रेग्यूलेटिंग एक्ट 1773 :-
मुख्य प्रावधान –
● बंगाल के गवर्नर का पद नाम ‘ गर्वनर जनरल ऑफ बंगाल किया गया ।
● शासन का प्राधिकार सपरिषद् – गवर्नर जनरल में निहित हो गया । सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया । निर्णय बहुमत से होगा ।
● पहले चार सदस्यों का नाम कानून में ही कर दिया गया लेकिन आगे गवर्नर – जनरल व सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार कोर्ट ऑफ डॉयरेक्टर्स को दिया गया ।
● बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसी के गवर्नर युद्ध व संधि के विषयों में सपरिषद् गवर्नर जनरल के अधीन किये गये ।
● फोर्ट विलियम कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई मुख्य न्यायाधीश + 3 न्यायाधीश का प्रावधान तथा अपील प्रिवी कांउसिल में होगी ।
● जज का कार्यकाल 5 वर्ष सदस्यों का कार्यकाल – 5 वर्ष लेकिन कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स की सलाह पर सम्राट हटा सकता था । (Indian Constitutional History)
● कम्पनी को 20 वर्ष शासन करने का अधिकार दिया गया ।
प्रश्न – कंपनी को नियंत्रित करने हेतु सर्वप्रथम ब्रिटिश संसद ने कदम उठाया ?
उत्तर – 1773
प्रश्न – किस अधिनियम द्वारा भारत में केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गई ?
उत्तर – रेग्यूरेटिंग एक्ट 1773
प्रश्न – प्रथम गवर्नर जनरल
उत्तर – वारेन हेरिन्टंगस 1994
प्रश्न – परिषद् के प्रथम चार सदस्य –
उत्तर – फ्रांसिस, क्लैवरिंग, मानसन, बरवैल
प्रश्न – सर्वोच्च न्यायालय का प्रथम मुख्य न्यायाधीश –
उत्तर – सर एलिजा इम्पे 1774
प्रश्न – कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स –
उत्तर – कुल – 24, कार्यकाल – 4 वर्ष, 6 सदस्य प्रति वर्ष अवकाश ग्रहण करेंगे ।
★ पिट्स इण्डिया एक्ट 1784 :-
● बोर्ड ऑफ कंट्रोल की स्थापना की गई और कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को इसके प्रति उत्तरदायी बनाया गया । इस प्रकार अरतीय मामलों पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण हो गया ।
● बोर्ड ऑफ कंट्रोल में कुल 6 सदस्य, जिनमें से 2 ब्रिटिश मंत्रिमण्डल के सदस्य (वित्त और विदेश सचिव) और 4 प्रिवी काउंसिल में से ब्रिटिश सम्राट द्वारा नियुक्ति किये जाते थे ।
दौहरी सरकार की अवधि – 1784 से 1858 – अभिप्राय – भारतीय प्रशासन का कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स और बोर्ड ऑफ कंट्रोल द्वारा नियंत्रित होना ।
– बम्बई और मदास प्रेसीडेन्सियाँ बंगाल के अधीन कर दी गई।
– परिषद् के सदस्यों की संख्या 3 कर दी गई ।
– कम्पनी ने भारतीय प्रदेशों को पहली बार ब्रिटिश अधिकृत प्रदेश कहा गया ।
– गवर्नर जनरल और गवर्नर की नियुक्ति का अधिकार कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को था परन्तु वापस बुलाने का अधिकार बोर्ड ऑफ कंट्रोल व सम्राट को मिल गया ।
– सपरिषद गवर्नर जनरल भारतीय प्रशासन के लिए कानून बना सकता था ।
★ चार्टर एक्ट 1793 :-
1. कम्पनी के शासनाधिकार को 20 वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया ।
2. भारत में लिखित कानून द्वारा शासन यानि विधि के शासन की नींव रखी गई । इन लिखित विधियों एवं नियमों की व्याख्या न्यायालय द्वारा किया जाना निर्धारित किया गया ।
3. गवर्नर जनरल और गवर्नर को परिषद् में सदस्यता हेतु 12 वर्ष तक भारत में रहने का अनुभव आवश्यक कर दिया गया । 4. बोर्ड ऑफ कंट्रोल के सदस्यों का वेतन अब भारतीय राजकोष से दिया जायेगा ।
5. एक सदस्य को बोर्ड ऑफ कंट्रोल का अध्यक्ष बनाया गया। 6. गवर्नर जनरल को परिषद् के निर्णयों को अस्वीकृत करने का अधिकार दिया गया ।
7. अब गवर्नर – जनरल , प्रातीय गवर्नरों और सेनापति की नियुक्ति को सम्राट की अनुमति आवश्यक होगी ।
★ चार्टर एक्ट 1813 :-
1. कम्पनी के भारतीय व्यापार पर एकाधिकार समाप्त कर दिया गया किन्तु कम्पनी का चाय व चीनी से व्यापार पर एकाधिकार बना रहा ।
2. एक लाख रूपया वार्षिक भारत में साहित्य तथा शिक्षा पर व्यय करने का प्रावधान किया गया ।
3. कम्पनी के शासनाधिकार को ओर 20 वर्ष बढ़ा दिया गया।
4. ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुमति दी गयी ।
5. बोर्ड ऑफ कंट्रोल की शक्ति को परिभाषित किया गया व विस्तारित किया गया । (Indian Constitutional History)
★ चार्टर एक्ट 1833 :-
1. कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया । अब कम्पनी को केवल राजनीतिक कार्य ही करना था । 2. ‘गवर्नर – जनरल ऑफ बंगाल’ की पदवी को बदलकर गवर्नर – जनरल ऑफ इण्डिया कर दिया गया और सभी शक्तियां उसमें समाविष्ट कर दी गयी । अब गवर्नर जनरल द्वारा पारित कानून ‘विनियम’ के स्थान पर ‘अधिनियम’ कहलायेंगे ।
3. सभी भारतीयों को सरकारी पदों पर नियुक्ति हेतु योग्य माना गया । ‘योग्यता का सिद्धान्त’ स्वीकार किया गया । केवल धर्म, वंश, रंग या जन्म स्थान के आधार पर वंचित नहीं किया जायेगा ।
4. गवर्नर जनरल की परिषद् में विधिक सदस्य का आंशिक रूप से समावेश किया गया । विधि आयोग के गठन का प्रावधान किया गया ।
– दास – प्रथा गैर – कानूनी घोषित कर दी गई ।
– मद्रास – बम्बई की परिषदों की कानून बनाने की शक्तियां समाप्त यानि पूर्ण केन्द्रीकरण कर दिया गया ।
प्रश्न – प्रथम गवर्नर – गवर्नर जनरल ऑफ इण्डिया –
उतर – लार्ड विलियम बैंटिंग 1835
प्रश्न – प्रथम विधिक सदस्य –
उतर – लार्ड मैकाले 1835
प्रश्न – चाय और चीन के साथ व्यापार पर कम्पनी का एकाधिकार कब समाप्त किया गया –
उत्तर – 1835 ( चार्टर एक्ट 1833 )
★ चार्टर एक्ट 1853 :-
1. गवर्नर – जनरल की परिषद् के विधायी और कार्यकारी प्रकार्यों में विभेद किया गया । विधायी कार्यों हेतु 6 अतिरिक्त सदस्यों को जोड़ा गया । (SC का मुख्य न्यायाधीश + एक अन्य न्यायाधीश + तीनों प्रेसीडेंसी और उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत का असैनिक प्रतिनिधि शामिल किए गये)
2. सिविल सेवा में नियुक्ति हेतु प्रतियोगी परीक्षा का प्रावधान किया गया । नार्थ ट्रेवलियन प्रतिवेदन – 1853 के आधार पर लार्ड मैकाले समिति का 1854 सिफारिशों के अनुसार लागू किया गया ।
1855 में लंदन में प्रथम प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन किया गया ।
1921 में इलाहाबाद में भी परीक्षा आयोजित की गई और पश्चात् दिल्ली में ।
3. गवर्नर जनरल को बंगाल के शासन के दायित्वों से मुक्त कर दिया गया । बंगाल के प्रशासन हेतु एक लेफ्टीनेंट गवर्नर के पद का सृजन किया गया ।
4. कम्पनी के शासन अधिकार को ‘संसद की इच्छानुसार’ पर हो गया ।
5. विधि सदस्य को परिषद् का पूर्ण सदस्य बनाया गया ।
6. परिषद् के उपाध्यक्ष पद की व्यवस्था की गई जो गवर्नर जनरल द्वारा नियुक्त ।
7. कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स में संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गई 6 की नियुक्ति क्राउन द्वारा होगी ।
★ भारत सरकार अधिनियम 1858 :-
1. भारतीय क्षेत्र और राजस्व कम्पनी से ब्रिटिश राज को हस्तांतरित हो गया । भारतीय शासन ब्रिटिश महारानी के नाम से किया जायेगा ।
2. भारतीय शासन की जिम्मेदारी ‘भारत सचिव’ को सौंपी गई और उसकी सहायता हेतु 15 सदस्यीय परिषद् बनाई गई ( 7 सम्राट + 8 कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स के द्वारा नियुक्त ) जिसमें आधे सदस्यों को 10 वर्ष का भारतीय अनुभव हो । भारत सचिव ही भारत सरकार या गृह सरकार कहलाया तथा वायसराय उसके प्रति जिम्मेदार बनाया गया । भारत सचिव ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य होता था और ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था ।
ब्रिटिश PM लार्ड पामर्स्टन ने बिल रखा परन्तु त्याग पत्र दिया । पुन : एडवार्ड हेनरी स्टेनल दुसरा बिल रखा “An Act for the Better Govt of India” प्रथम भारत सचिव ‘एडवर्ड हेनरी स्टेनले’ बना और उसके पश्चात् स्वतंत्र रूप से ‘ चार्ल्स वुड को 1859 में जिम्मेदारी दी गई ।
3. भारतीय सिविल सेवा भारत सचिव के अधीन रखी गई । महारानी की घोषणा – 1Nov 1858 को लार्ड कैनिंग द्वारा इलाहाबाद में आयोजित दरबार में की गई ।
★ भारत परिषद् अधिनियम 1861 :-
1. पहली बार भारत में प्रतिनिधित्व के तत्व का समावेश किया गया । यानि विधायी कार्यों के समय गवर्नर – जनरल की कार्यकारी परिषद् के साथ 6 – 17 अतिरिक्त सदस्य जौड़े गये कार्यकाल – 2 वर्ष , शक्ति – सलाह देना , (1/4 गैर सरकारी)
महाराजा दिग्विजय सिंह – बलरामपुर ( U . P . } प्रथम सदस्य नियुक्त हुए ।
2. बॉम्बे और मद्रास को पुन : विधायी शक्तियां दी गई Pace and good Govt के संदर्भ में ।
3. पोर्टफोलियों व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता दी गई 1859 में लार्ड कैनिंग में व्यवस्था बनाई थी । यह व्यवस्था आगे चल कर मंत्रिमण्डल व्यवस्था का आधार बनी । गृह, राजस्व, सैन्य, विधि, वित्त विभाग ।
4 . वायसराय को परिषद् में सुचारू से कार्य संचालन हेतु नियम बनाने की शक्ति दी गई ।
5. वायसराय को 6 माह के लिए अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया ।
6. उच्च न्यायालयों की स्थापना, बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास 1862 ।
7. अन्य प्रेसीडेन्सी में भी विधायी परिषदें बनाई जाये । विधायी कार्य हेतु गवर्नर जनरल अन्य प्रेसिडेंसी बना सकता था ।Indian Constitutional History
★ भारत परिषद अधिनियम – 1892 :-
1. केन्द्रीय परिषद में अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 10 – 16 कर दी गई जिनमें से 10 सदस्य गैर सरकारी हो और 5 सदस्यों के लिए सिफारिश अनिवार्य की गई । बंगाल कॉमर्स ऑफ चेम्बर्स + 4 प्रान्तीय विधान परिषदों द्वारा हो ।
प्रांतीय परिषदों में भी सदस्य संख्या बढ़ाकर 20 कर दी गई ।
2. परिषद् को बजट पर वाद – विवाद और कार्यपालिका से प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया ।
★ भारत परिषद् अधिनियम 1909 (मार्ले – मिण्टो सुधार) :-
1. केन्द्रीय परिषद् की सदस्य संख्या बढ़ा दी गई ।
चार प्रकार के सदस्य थे – 69
1. पदेन सदस्य 9
2. निर्वाचित सदस्य – 27
3. सरकारी मनोनित सदस्य – 23
4. गैर सरकारी मनोनित सदस्य – 5
Q. सरकारी सदस्यों का बहुमत रखा गया लेकिन प्रांतो में गैर – सरकारी सदस्यों के बहुमत किया गया । प्रांतों में गवर्नरों को विधायी परिषदों में सदस्य संख्या 5 सदस्य – बंगाल , मुम्बई , मद्रास , संयुक्त प्रांत ; 43 सदस्य – पूर्वी बंगाल ? आसाम : 30 – पंजाब और बर्मा ।
2. अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली की शुरूआत की गई
आय के आधार पर चार वर्ग बनाये गये –
1. सामान्य निर्वाचक
2. विशेष निर्वाचक
3. श्रेणी निर्वाचक
4. मुस्लिम ( धर्म आधारित निर्वाचन )
सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली
मुस्लिम – 1909
सिख – 1919
भारतीय ईसाई, आंग्ल – भारतीय, हरिजन, महिला, श्रमिक – 1935
3. परिषद् के सदस्यों को पूरक प्रश्न पूछने व सार्वजनिक विषयों पर प्रस्ताव रखने का व बजट पर मत विभाजन का अधिकार दिया गया ।
Indian Constitutional History
★ भारत शासन अधिनियम – 1919 :-
सम्राट की अनुमति 25 दिसम्बर 1919 को मिली थी तथा इसे 1976 में समाप्त किया गया ।
An act to make further provision with respect to the Govt of India इसका पूर्ण नाम था।
– यह अधिनियम एडविन सेम्यूअल ‘ मांटेग्यू – चेम्सफोर्ड घोषणा ‘ ( प्रकाशित : 1918 में ) 20 अगस्त , 1917 के आधार पर बनाया गया जिसमें ‘उत्तरदायी शासन’ का वादा किया गया ।
– 1 अप्रैल , 1921 से लागू किया गया ।
– इसकी पृथक ‘उद्देशिका’ थी, जो धीरे – धीरे उत्तरदायी सरकार लाने का वाद करती थी ।
1. द्वैध शासन प्रणाली –
द्वैध शासन प्रणाली के जन्मदाता – सर लियोनिल कॉटिश विषय केन्द्रीय और प्रांतीय दो भागों में विभाजित किए गए । पुन : प्रांतीय विषय आरक्षित तथा हस्तांतरित में बाँटे गये । इस प्रकार यह व्यवस्था द्वैध का द्वैध था लेकिन प्रसिद्ध प्रांतीय द्वैध शासन प्रणाली के नाम से हुई । 9 प्रांतों में ला हुई ।
केन्द्रीय विषय : 47 – रक्षा, विदेश और राजनितिक संबंध, करेंसी संचार आयकर, लोक ऋण, वाणिज्य व जहाज रानी मुख्य रूप से थे । (Indian Constitutional History)
50 प्रांतीय विषय – आरक्षित विषय : कानून, पुलिस व न्याय व्यवस्थ वित्त, भू – राजस्व, सिंचाई व नहरें, खनिज संसाधन, समाचार पत्रों पर, वाहन आदि प्रांतीय
हस्तांतरित विषय : शिक्षा, स्वास्थ्य, स्थानीय प्रशासन, उद्योग, आबकारी, लोक निर्माण, स्वच्छता, व मेडिकल प्रशासन, मत्स्य पालन नकनीक शिक्षा, नाप तौल, मनोरंजन, पुस्तकालय आदि ।
– अपने – अपने विषयों पर केन्द्रीय और प्रांतीय विधान मण्डल कानून बना सक थे ।
– गवर्नर अब भी G. G. व भारत सचिव के माध्यम से ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी बना रहा ।
◆ 1861 , 1892 , 1909 , 1919 के अधिनियमों में सताका आधार / केन्द्र वायसरा ही था जो भारतीय शासन – प्रशासन के लिए भारत सचिव के प्रति उत्तरदायी बन रहा ।
◆ 1919 के अधिनियम द्वारा प्रांतों पर भारत सचिव और गवर्नर – जनरल के नियंत्रण में छूट दी गई । वे हस्तांतरित विषयों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते थे ।
◆ प्रांतीय आरक्षित विषयों का शासन पावर्नर को अपनी कार्यकारी परिषद् वे सहयोग से करना था जो विधानमरत के प्रति उत्तरदायी नहीं थी ।
◆ प्रांतीय हस्तांतरित विषयों का शासन गवर्नर को मंत्रियों के सहयोग से करना, जो प्रांतीय विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी थे ।
◆ मंत्री की नियुक्ति गवर्नर करता था और मंत्री उसके प्रति उत्तरदायी था यानि वह कभी भी हटा सकता था ।
◆ मंत्री प्रांतीय विधानमण्डल का सदस्य होता था और विधानमण्डल कभी प्रस्ताव पारित करके उसे पद छोड़ने के लिए बाध्य कर सकता था । ‘संयुक उत्तरदायित्व नहीं था ।’ अपवाद – 6 माह तक मंत्री पद बिना सदस्यता के धारण कर सकता था ।
Indian Constitutional History
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