Gupt Kal, Gupt Samrajy, Gupt Vansh, Guptkalin Bharat Notes, गुप्तकाल, गुप्त वंश, गुप्तकालीन भारत, गुप्त साम्राज्य नोट्स, Indian History Notes PDF
गुप्तकाल (Gupt Kal), गुप्त वंश, गुप्तकालीन भारत –
● साम्राज्य के पतन के बाद भारत मे शुंग, सातवाहन एवं कुषाण वंशो का शासन रहा था।
● मौर्य वंश के अंतिम शासक वृहदथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग के द्वारा की गई, भारत मे शुंग वंश की स्थापना हुई।
● शुंग वंश के बाद कण्व व सातवाहन वंश के शासकों ने शासन किया।
● गुप्त साम्राज्य (Gupt Kal) का उदय तीसरी सदी के अंत में कौसाम्बी में हुआ। गुप्त वंश ने 280 से 550 ई. तक शासन किया।
● गुप्तों की उत्पति से सम्बंधित मत :-
1. काशीप्रसाद जायसवाल के अनुसार – पंजाब के निवासी माना
2. गौरीशंकर ओझा के अनुसार – क्षत्रिय
3. हेमचन्द्र राय चौधरी के अनुसार – ब्राम्हण
● प्रभावती गुप्त के पूना ताम्र-पत्र में गुप्त शासकों को ब्राम्हण वंशीय माना गया है।
◆ जानकारी के स्त्रोत-
अभिलेख :- चन्द्रगुप्त का इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख, उदयगिरि गुफा अभिलेख, सांची शिलालेख तथा महरौली के लौह स्तम्भ अभिलेख । भूमि संबंधी दस्तावेज और सिक्के उस समय की आर्थिक दशा की जानकारी देते है ।
साहित्यिक स्त्रोत :- चीन के यात्री फाह्यान की पुस्तक और कालीदास द्वारा लिखित ऋतु संहार, मेघदूत, अभिज्ञान, शाकुन्तलम् इन सब की सहायता से ही गुप्त साम्राज्य काल के इतिहास की कड़ियों को जोड़ना सम्भव हुआ है ।
★ संस्थापक :- श्रीगुप्त, उपाधि – महाराज
● इनका शासन काल 240 से 280 ई. तक रहा।
● इत्सिंग के अनुसार श्रीगुप्त ने मगध में एक मंदिर का निर्माण करवाया तथा मंदिर के लिए 24 गांव दान में दिए थे।
★ घटोत्कच गुप्त :-
उपाधि – महाराज
● शासन 319 ई. तक किया।
★ चंद्रगुप्त I :- 319 – 335 ई.
● गुप्त वंश का प्रथम वास्तविक संस्थापक
● राजधानी – पाटलिपुत्र
● गुप्त साम्राज्य का प्रथम स्वतंत्र शासक जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
● चन्द्रगुप्त प्रथम ने 319 ई. में गुप्त संवत चलाया जिसका उल्लेख मथुरा अभिलेख में मिलता है।
● चंद्रगुप्त प्रथम ने अपने साम्राज्य विस्तार हेतु लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया और चांदी के सिक्कों का प्रचलन करवाया इन सिक्कों पर स्वयं तथा अपनी पत्नी की आकृति उत्कीर्ण करवाई गई। (Gupt Kal)
★ समुद्रगुप्त :- 335 – 375 ई.
● उपाधि –
- व्याघ्र पराक्रमांक
- धरणि बंध (सम्पूर्ण पृथ्वी का विजेता)
- सर्वराजोच्छेता
- भारत का नेपोलियन (विंसेंट स्मिथ ने कहा)
● प्रयाग प्रशस्ति – हरिषेण के द्वारा संस्कृत भाषा मे चम्पू शैली (गद्य व पद्य) में इस प्रशस्ति की रचना की गई। प्रयाग प्रशस्ति से समुद्रगुप्त के विजय अभियान व आर्यभट्ट के दशमलव सिद्धान्त की जानकारी मिलती है।
● हरिषेण समुद्रगुप्त के काल मे सन्धि विग्रहक के पद पर था।
◆ समुद्रगुप्त की विजय नीति :-
1. आत्मनिवेदन कन्योपायन गरूत्वमंदक :- पश्चमी व विदेशी राज्यो के प्रति इस नीति का पालन किया गया।
- आत्मनिवेदन – राजा स्वयं गुप्त शासकों की अधीनता स्वीकार करें।
- कन्योपायन – राजा अपनी कन्याओं का विवाह गुप्त शासकों के साथ करें।
- गरूत्वमंदक – शासन चलाने के लिए गुप्त शासकों से शासनादेश प्राप्त करें।
2. ग्रहणमोक्षानुग्रह :- दक्षिण के 12 राज्यो के प्रति इस नीति का पालन किया। इस नीति के तहत दक्षिण के राजाओं पर अधिकार करके उन्हें छोड़ दिया।
3. सर्वकर दानाज्ञाकरण प्रणामागमन :- उत्तर पर पूर्वी सीमा पर स्थित राज्यों के प्रति इस नीति का पालन किया।
● हेमचन्द्र राय चौधरी ने समुद्रगुप्त की दक्षिण विजय को उसकी धर्म विजय की संज्ञा दी थी।
● समुद्रगुप्त के सिक्कों पर उसे विणा बजाते हुए दिखाया गया है।
◆ समुद्रगुप्त के द्वारा प्रचलित सिक्के :-
- गरुड़ प्रकार के सिक्के :- राजा की आकृति, गरुड़ ध्वज, उपाधि (पराक्रमः) उत्कीर्ण
- धनुर्धारी प्रकार के सिक्के :- राजा की आकृति, धनुष बाण, उपाधि (अप्रतिरथः) उत्कीर्ण
- परशु प्रकार के सिक्के :- राजा की आकृति, परशु, उपाधि (कृतांत परशु) उत्कीर्ण
- अश्वमेघ प्रकार
- वीणा प्रकार
- व्याघ्र हनन प्रकार
★ चंद्रगुप्त- II (विक्रमादित्य) :- 375 – 415 ई.
● उपाधि – देवगुप्त, देवश्री, परमभागवत, विक्रमादित्य, विक्रमांक।
● चंद्रगुप्त द्वितीय के शांसनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हो गया था। चंद्रगुप्त का साम्राज्य पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में बंगाल तक तथा उत्तर में हिमालय की तलहटी से दक्षिण में नर्मदा नदी तक विस्तृत था।
● चंद्रगुप्त द्वितीय का काल साहित्य और कला का स्वर्ण युग कहा जाता है।
● चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में 9 रत्न थे। – कालिदास, धन्वंतरि, अमरसिंह, वराहमिहिर, वररुचि, बेताल भट्ट, क्षुपणक, शंकु, घटपर्कर।
● चन्द्रगुप्त द्वितीय ने नागवंश की राजकुमारी कुबेरनागा से विवाह किया था। और कुबेरनागा की पुत्री प्रभावती गुप्त थी।
● शकों को पराजित करने के उपलक्ष्य में चन्द्रगुप्त द्वितीय के द्वारा व्याघ्र शैली के सिक्कों का प्रचलन किया।
◆ फाह्यान :- 399 – 414 ई.
● पुस्तक – फू-को-की,
● फाह्यान का अर्थ – धर्माचार्य
● फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय के काल मे भारत आया।
● फाह्यान ने चांडाल नामक जाति का उल्लेख किया है। जिससे पता चलता है कि गुप्त काल मे छुआ-छूत का प्रचलन था।
■ मन्दिर निर्माण शैली :-
1. नागर शैली :- इसे आर्य शैली भी कहते है। उत्तरभारत के मंदिरों का निर्माण नागर शेली में कराया गया। झांसी (UP), देवगढ़ का दशावतार मन्दिर में पहली बार शिखर का प्रयोग किया गया।
2. द्रविड़ शैली :- दक्षिण भारत के मंदिरों का निर्माण इस शेली में किया गया। इन मंदिरों की प्रमुख विशेषता इनके विशाल प्रवेश द्वार है जिन्हें गोपुरम कहा जाता है।
3. वेसर/चालुक्य शैली :- इस शैली में नागर व द्रविड़ शैलियों का मिश्रण होता है। चालुक्य शासकों के द्वारा वेसर शैली में मंदिरों का निर्माण कराया गया।
4. एकायतन शैली :- ऐसे मन्दिर जिनके गर्भ गृह में एक प्रतिमा हो।
5. पंचायतन शैली :- पंचायतन शैली में मुख्य रूप से भगवान विष्णु के मंदिर का निर्माण किया जाता है। तथा विष्णु के साथ सूर्य, शिव, शक्ति, गणेश की भी मूर्ति होती है।
6. महामारू शैली :- एक स्थान पर एक से अधिक मंदिरों के निर्माण की शेली को महामारू शैली कहते है। इस शैली में गुर्जर प्रतिहार शासकों ने मंदिरों का निर्माण करवाया।
■ गुप्तकालीन प्रमुख मन्दिर :-
- तिगवा का विष्णु मंदिर – मध्यप्रदेश
- भूमरा का शिव मंदिर – मध्यप्रदेश
- नचना कुठार का पार्वती मन्दिर – मध्यप्रदेश
- देवगढ़ का दशावतार मन्दिर – उत्तरप्रदेश
- भीतर गांव का लक्ष्मण मन्दिर – उत्तरप्रदेश
- सिरपुर का लक्षमण मन्दिर – छत्तीसगढ़
■ चन्द्रगुप्त द्वितीय के द्वारा चलाये गए सिक्के :-
- धनुर्धारी सिक्के
- छत्रधारी सिक्के
- पर्यंक सिक्के
- सिंह-निहन्ता सिक्के
- अश्वारोही प्रकार के सिक्के
★ कुमारगुप्त- I / महेन्द्रादित्य :- 415 – 455 ई.
● उसके स्वर्ण सिक्कों पर उसे गुप्तकुलामल चन्द्र व गुप्तकुल (Gupt Kal) व्योमशाशि कहा गया है।
● कुमारगुप्त की मुद्राओं में गरुड़ के स्थान पर मयूर की आकृति अंकित की गयी।
● कुमारगुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ किया तथा अश्वमेघ प्रकार की मुद्रा चलाई।
● कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी। यह विश्वविद्यालय “ऑक्सफोर्ड ऑफ महायान बौद्ध” के नाम से भी जाना जाता है। इस विश्वविद्यालय में धर्मगंज पुस्तकालय था जो तीन भागों में बंटा हुआ था – रत्नोदधि, रत्नरजंक, रत्न सागर।
● इसके काल मे सर्वाधिक अभिलेखों की रचना हुई। (18 अभिलेख)
■ कुमारगुप्त के अभिलेख :-
- विलसड़ अभिलेख :- उत्तरप्रदेश से प्राप्त। इसमे गुप्त शासकों की वंशावली प्राप्त होती है।
- गढ़वा अभिलेख :- उत्तरप्रदेश से प्राप्त। इस पर परमभागवत शब्द उत्कीर्ण किया गया।
- करमन्दा अभिलेख :- उत्तरप्रदेश से प्राप्त। इस अभिलेख में शिव की प्रतिमा बनी हुई है।
- बेग्राम, धनदेह, दामोदरपुर अभिलेख :- ये तीनों अभिलेख बंगाल से प्राप्त। इनमे गुप्त काल मे भूमि दान में देने की जानकारी प्राप्त होती है।
★ स्कंदगुप्त :- 455 – 467 ई.
● स्कंदगुप्त गुप्त वंश का अंतिम प्रतापी शासक था।
● स्कन्दगुप्त के भीतरी अभिलेख से हूण आक्रमण की जानकारी मिलती है। हूण मध्य एशिया की लड़ाकू जाति थी जिसे भारत मे मलेच्छ कहा गया।
● स्कन्दगुप्त के द्वारा वृषभ शैली के सिक्कों का प्रचलन कराया गया।
■ कहोम अभिलेख :- उत्तरप्रदेश से प्राप्त। इस अभिलेख में स्कन्दगुप्त को शक्रादित्य कहा गया। इस अभिलेख के अनुसार भद्र नामक व्यक्ति ने पांच जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं स्थापित कराई – ऋषभदेव, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी, शांतिनाथ।
★ गुप्त साम्राज्य का पतन :-
स्कन्द गुप्त के उत्तराधिकारी विशाल गुप्त साम्राज्य को अक्षुण नहीं रख सके । शक्तिशाली हूणों के आक्रमण और विघटनकारी शक्तियों के आगे वे निर्बल सिद्ध हुयें इस प्रकार गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया ।
1. अयोग्य उत्तराधिकारी- स्कन्द गुप्त के उपरान्त कोई ऐसा प्रतापी शासक नहीं हुआ जो साम्राज्य को सुसंगठित रख सके । समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा स्थापित तथा स्कन्दगुप्त द्वारा रक्षित विशाल गुप्त साम्राज्य को राजनीतिक एकता के सूत्र में आबद्ध रखने में परवर्ती गुप्त शासक असमर्थ रहें ।
2. वंशानुगत राजतंत्र – गुप्त राज्य व्यवस्था वंशानुगत राजतंत्र की व्यवस्था थी इसके कारण भी पतन हुआ ।
3. विदेशी आक्रमण – बाहरी आक्रमणों के कारण गुप्त साम्राज्य खोखला हो गया था । शक और हूणों के आक्रमण से साम्राज्य का रक्षा करने में केवल स्कन्दगुप्त ही सफल रहा। स्कन्दगुप्त की मृत्यु के पश्चात हूणों का पुन: आक्रमण प्रारम्भ हो गया । फलस्वरूप गुप्त साम्राज्य नष्ट हो गया ।
★ गुप्तकालीन प्रशासन :-
● गुप्तकाल में प्रशासनिक पद वंशानुगत हो गए थे। गुप्तकाल में अधिकारियों के एक विशिष्ट वर्ग को “कुमारामात्य” कहा गया।
● प्रशासनिक इकाई :- केंद्र (राजा) > देश/अवनि/भुक्ति (उपरिक) > विषय/जिला (विषयपति) > वीथी = तहसील > पेठ = गाँवो का समूह > गांव
◆ केंद्र के प्रमुख अधिकारी :-
- महाबलाधिकृत – सैन्य विभाग से सम्बंधित अधिकारी
- दण्ड नायक – न्याय विभाग से सम्बंधित अधिकारी
- दण्डपाशिक – पुलिस विभाग का सर्वोच्च अधिकारी (साधारण पुलिस वालों को चाट-भाट कहा जाता था)
- महाक्षपटलिक – राजकीय दस्तावेजो को सुरक्षित रखने वाला अधिकरी
- सांधि विग्रहक – युद्ध व सन्धि से सम्बंधित अधिकारी
- अग्रहारिक – दान विभाग से सम्बंधित अधिकारी
★ भू-राजस्व व्यवस्था :-
● गुप्तकाल में भूमि दो भागों में बंटी हुई थी –
- देवमातृक भूमि – अच्छी वर्षा वाली भूमि
- अदेवमातृक भूमि – बंजर भूमि
● अमरसिंह की पुस्तक अमरकोष में 12 प्रकार की भूमि का उल्लेख मिलता है।
● गुप्तकाल में भूराजस्व 1/6 भाग से लेकर 1/4 भाग तक वसूल किया जाता था।
- भाग – राजा को भूमि के उत्पादन से प्राप्त होने वाला छठां हिस्सा।
- भोग – सम्भवतः राजा को हर दिन फल-फूल एवं सब्जियों के रूप में दिया जाने वाला कर।
- उद्रंग – स्थाई किसानों से लिया जाने वाला कर
- उपरिकर – अस्थाई किसानों से लिया जाने वाला कर
- विष्टि – निःशुल्क श्रम / बेगार
- बलि – धार्मिक कर
- भूतोपांत प्रत्याय – राज्य में उत्पादित व आयात की गई वस्तुओं पर लगने वाला कर।
● गुप्तकाल (Gupt Kal) में भूमि की माप की इकाई :- कुल्यावाप, द्रोणवाप, आदवाप।
★ सामाजिक जीवन :-
● पितृसत्तात्मक समाज था।
● इस समय चार वर्ण थे – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र
● शुद्र के अतिरिक्त अन्य तीनों वर्णों को उपनयन संस्कार का अधिकार था।
● भानुगुप्त के ऐरण अभिलेख से सतीप्रथा की जानकारी मिलती है।
● समाज मे अनुलोम व प्रतिलोम विवाह का प्रचलन था।
- अनुलोम विवाह – महिला निम्न कुल व पुरुष उच्च कुल का
- प्रतिलोम विवाह – महिला उच्च कुल की व पुरुष निम्न कुल का
★ गुप्तकालीन चित्रकला :-
● गुप्तकालीन चित्रकला के साक्ष्य अजन्ता व बाघ की गुफाओं से प्राप्त हुए है।
◆ अजन्ता की गुफाएं :- औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
● इन गुफाओं की खोज 1819 में जेम्स अलेक्जेंडर के द्वारा की गई।
● यहाँ 29 गुफाओं में चित्र बनाये गए है। गुफा संख्या 1,2 चालुक्य काल की, गुफा संख्या 9,10 सातवाहन काल की तथा गुफा संख्या 16,17,19 गुप्त काल की मानी जाती है।
● गुफा संख्या 16 से मरणासन्न राजकुमारी का चित्र मिला है।
● गुफा संख्या 17 को चित्रशाला कहा जाता है। यहाँ से महात्मा बुद्ध से सम्बंधित चित्र मीले है।
◆ बाघ की गुफाएं :- बाघ (ग्वालियर)
● इनकी खोज 1818 में डेंजर फील्ड के द्वारा की गई।
● यहाँ कुल 9 गुफाएं थी। इन गुफाओं के चित्रों को हल्लीसक कहा गया।
★ धार्मिक जीवन :-
● राजकीय धर्म – वैष्णव धर्म
● राजकीय चिन्ह – गरुड़
● गुप्तकाल काल मे उच्च वर्ग के लोग संस्कृत भाषा का प्रयोग करते थे। जबकि महिलाएं व निम्न वर्ग के लोग प्राकृत भाषा का प्रयोग करते थे।
● गुप्तकाल में पाशुपत सम्प्रदाय लोकप्रिय सम्प्रदाय था।
● गुप्तकाल (Gupt Kal) में सूर्य पूजा का भी प्रचलन था जिसकी जानकारी कुमार गुप्त I के मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होती है।
★ गुप्तकालीन साहित्य :-
◆ कालिदास :- कालिदास को भारत का शेक्सपियर कहा जाता है। इनके ग्रन्थों को तीन भागों में बांटा गया है –
1. महाकाव्य :- कालिदास के द्वारा रचित महाकाव्य –
- रघुवंश :- 19 सर्गों (भाग) में
- कुमारसम्भव :- 17 सर्गों (भाग) में
2. खण्डकाव्य :-
- मेघदूत
- ऋतुसंहार
3. नाटक :-
- अभिज्ञान शाकुंतलम
- विक्रमोवर्शियम
- मालविकाग्निमित्रम
■ अन्य पुस्तकें एवं उनके लेखक :-
- मृच्छकटिकम – शूद्रक
- मुद्राराक्षस – विशाखदत्त (मुद्राराक्षस भारत का पहला जासूसी ग्रन्थ माना जाता है।)
- कामसूत्र – वात्स्यायन
- नीतिसार – कामदक
- पंचतंत्र – विष्णु शर्मा
- सांख्यकारिका – ईश्वर कृष्ण
- अमरकोष – अमर सिंह
★ गुप्तकालीन अन्य विद्वान :-
◆ आर्यभट्ट :-
● इन्होंने दशमलव व जीरो की जानकारी दी।
● आर्यभट्ट ने पाई का मान 22/7 बताया।
● आर्यभट्ट ने बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है।
● इन्होंने आर्यभट्टीय ग्रन्थ की रचना की जिसके निम्न भाग है –
- दस गीतिका
- गणित पाद
- गोल पाद
- काल क्रिया पाद
◆ वराहमिहिर :-
● इन्होंने वर्गमूल व घनमूल निकालने की विधि बताई।
● इन्होंने निम्न पुस्तकों की रचना की –
- वृहत् संहिता
- वृहत् जातक
- लघु संहिता
- पंच सिद्धान्तिका :- इसके पांच भाग है। – पैतामह, वशिष्ट, सूर्य, रोमक, पोलिस।
◆ भास्कर – I :-
● भास्कर द्वारा लिखित पुस्तके –
- महाभास्कर
- लघुभास्कर
- भाष्य
Gupt Kal
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