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गुप्तकाल (Gupt Kal) | गुप्त साम्राज्य | गुप्त वंश | गुप्तकालीन भारत

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गुप्तकाल (Gupt Kal): भारतीय इतिहास की इस पोस्ट में गुप्त काल से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी जैसे – गुप्तों की उत्पति, गुप्त काल के इतिहास के प्रमुख स्त्रोत, गुप्तकालीन प्रमुख शासक, गुप्त साम्राज्य के पतन के कारण, गुप्तकालीन साहित्य, सामाजिक संगठन, स्त्रियों की दशा, गुप्त प्रशासन, भू-राजस्व व्यवस्था, व्यापार-वाणिज्य, सिंचाई व्यवस्था, गुप्तकालीन स्थापत्यकला आदि से संबंधित नोट्स एवं महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई गई है जो सभी परीक्षाओं के लिए बेहद ही उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है Gupt Kal गुप्तकाल

Table of Contents

गुप्तकाल (Gupt Kal), गुप्त वंश, गुप्तकालीन भारत

👉🏻 गुप्त साम्राज्य का आदि पुरूष श्रीगुप्त था जिसने 275 ई के आसपास गुप्त वंश की नीव स्थापित की।
👉🏻 गुप्त काल को भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है
👉🏻 गुप्त वंश का प्रारम्भिक राज्य उत्तरप्रदेश और बिहार में था
👉🏻 गुप्त साम्राज्य (Gupt Kal) का उदय तीसरी सदी के अंत में कौसाम्बी में हुआ। गुप्त वंश ने 280 से 550 ई. तक शासन किया।
👉🏻 गुप्त साम्राज्य की जानकारी हमें साहित्यिक तथा पुरातात्विक स्त्रोतों से प्राप्त होती है।

गुप्तों की उत्पति से सम्बंधित मत

1.काशीप्रसाद जायसवाल के अनुसार – पंजाब के निवासी माना
2.गौरीशंकर ओझा के अनुसार – क्षत्रिय
3.हेमचन्द्र राय चौधरी के अनुसार – ब्राम्हण
4.प्रभावती गुप्त के पूना ताम्र-पत्र में गुप्त शासकों को ब्राम्हण वंशीय माना गया है।

गुप्तकाल इतिहास के प्रमुख स्रोत

पुरातात्विक स्त्रोत

1.समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशत्ति :- इसके लेखक समुद्रगुप्त का सन्धि विग्राहक हरषेण था।, यह संस्कष्त भाषा में लिखा गया था तथा काव्य की चम्पू शैली में उल्लेख है।, इस प्रशस्ति में समुद्रगुप्त को श्रीगुप्त का प्रपौत्र, घटोत्कच का पौत्र तथा चन्द्रगुप्त का पुत्र कहा गया है।
2.महरौली स्मम्भ :- यह चन्द्रगुप्त से सम्बन्धित है।
3.सांची अभिलेख :- यह अभिलेख चंद्रगुप्त द्वितीय के मंत्री आम्रकादेव ने गुप्त संवत 93 में खुदवाया था।
4.स्कंदगुप्त का जुनागढ़ अभिलेख :-इस अभिलेख में बताया गया है कि सौराष्ट्र झील का पुनः निर्माण स्कन्दगुप्त के मंत्री पर्णदत्त से करवाया।
5.ऐरण अभिलेख (मध्य प्रदेश) :- यह मानगुप्त के समय का है तथा इसमें उसके करद राजा गोपाल की पत्नी के सती होने का उल्लेख है।

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साहित्यिक स्रोत

1.नाटक :- विशाखदत्त रचित देवीचन्द्रगुप्तम तथा मुद्राराक्षस, शूद्रक रचित मृच्छकटिकम, वात्स्यायन का कामसूत्र, कालिदास रचित मालविकाग्निमित्रम, अभिज्ञान-शाकुन्तलम
2.महाकाव्य :- कालिदास रचित कुमारसम्भवम्, रघुवंशम, मेघदूत व ऋतुसन्हारम
3.स्मृतियाँ :- बृहस्पति स्मृति, नारद स्मृति
4.पुराण :- वायु पुराण, स्मृति पुराण, विष्णु पुराण, ब्रह्म पुराण
5.जैन साहित्य :- जिनसेन रचित हरिवंश पुराण
6.विदेशी साहित्य :- फाह्यान का ‘फा-को-की’ तथा ह्वेनसांग का ‘सि-यू-की’ नामक ग्रंथ

श्रीगुप्त

👉🏻 शासन काल 240 से 280 ई. तक रहा।
👉🏻 गुप्तवंश का प्रथम राजा व संस्थापक
👉🏻 इत्सिंग ने श्रीगुप्त के लिए ‘चेलिकेतो’ नाम का उल्लेख किया है
👉🏻 उपाधि – महाराज
👉🏻 इत्सिंग के अनुसार श्रीगुप्त ने मगध में एक मंदिर का निर्माण करवाया तथा मंदिर के लिए 24 गांव दान में दिए थे।

घटोत्कच गुप्त

👉🏻 उपाधि – महाराजा
👉🏻 शासन – 319 ई. तक किया

चन्द्रगुप्त प्रथम

👉🏻 शासनकाल – 319 से 355 ई
👉🏻 गुप्तवंश का वास्तविक संस्थापक
👉🏻 राजधानी – पाटलीपुत्र
👉🏻 गुप्त साम्राज्य का प्रथम स्वतंत्र शासक जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की
👉🏻 इसके सिंहासन रूढ होने के उपलब्ध में ही गुप्तसंवत चलाया गया था।
👉🏻 इसकी पुष्टि अलबरूनी के विवरण से भी होती है जिसके शक संवत तथा गुप्त संवत के मध्य 241 वर्षो का अंतर बताया था।
👉🏻 गुप्त साम्राज्य का विस्तार करने के लिए चंद्रगुप्त ने वैवाहिक संबंधों का प्रयोग किया।
👉🏻 इसने लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया तथा इस शादी के उपलक्ष्य में कुमारी देवी सिक्के चलाये गये।
👉🏻 इस शादी का महत्व इतना ज्यादा था कि समुद्रगुप्त ने स्वय को ‘लिच्छवी दोहित्र‘ कहा है।
👉🏻 इसने अपने पुत्र समुद्रगुप्त को अपने शासनकाल में ही राजा घोषित कर दिया।

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समुद्रगुप्त

👉🏻 शासनकाल – 335 – 375 ई.
👉🏻 उपाधि – व्याघ्र पराक्रमांक, धरणि बंध (सम्पूर्ण पृथ्वी का विजेता), सर्वराजोच्छेता, भारत का नेपोलियन
👉🏻 हरिषेण समुद्रगुप्त का मंत्री व दरबारी कवि था
👉🏻 समुद्रगुप्त से पहले काच नामक राजा के स्वर्णधारी सिक्के प्राप्त हुए है जिनमें ‘‘सर्वराजोच्छेता” अंकित है। परन्तु यह उपधि केवल गुप्त वंश में समुद्रगुप्त को ही प्राप्त थी। (Gupt Kal गुप्तकाल)
👉🏻 एलन महोदय के अनुसार काच समुद्रगुप्त का ही उपनाम था।
👉🏻 इसकी दिग्विजय को देखते हुए विसेंट आर्थर स्मिथ ने इसे भारत का नेपोलियन कहा है।
👉🏻 समुद्रगुप्त ने सर्वप्रथम आर्यावर्त के 8 राजाओं को हराया इसका उल्लेख प्रयाग प्रशास्ति की रावी पंक्ति में है।
👉🏻 इसके पश्चात समुद्र गुप्त दक्षिणी भारत गया तथा उसने 12 राजाओं के संघ को हराया इस संघ का नेतृत्व पल्लव नरेश गोप द्वारा किया गया था।

समुद्रगुप्त की विजय नीति

1.आत्मनिवेदन कन्योपायन गरूत्वमंदक – पश्चमी व विदेशी राज्यो के प्रति इस नीति का पालन किया गया।
आत्मनिवेदन – राजा स्वयं गुप्त शासकों की अधीनता स्वीकार करें।
कन्योपायन – राजा अपनी कन्याओं का विवाह गुप्त शासकों के साथ करें।
गरूत्वमंदक – शासन चलाने के लिए गुप्त शासकों से शासनादेश प्राप्त करें।
2.ग्रहणमोक्षानुग्रह :- दक्षिण के 12 राज्यो के प्रति इस नीति का पालन किया। इस नीति के तहत दक्षिण के राजाओं पर अधिकार करके उन्हें छोड़ दिया।
3.सर्वकर दानाज्ञाकरण प्रणामागमन :- उत्तर पर पूर्वी सीमा पर स्थित राज्यों के प्रति इस नीति का पालन किया।

👉🏻 हेमचन्द्र राय चौधरी ने समुद्रगुप्त की दक्षिण विजय को उसकी धर्म विजय की संज्ञा दी थी।
👉🏻 समुद्रगुप्त जब दक्षिण में व्यस्त था तब आर्यावर्त में कुछ राजाओं ने स्वतंत्र होने का प्रयत्न किया।
👉🏻 समुद्र गुप्त की चौथी विजय विदेशी राज्यों के प्रति थी।
👉🏻 समुद्रगुप्त का समकालीन शक शासक रूद्र सिंह तृतीय था।
👉🏻 इसका समकालीन कुषाण शासक केदार था
👉🏻 समुद्रगुप्त ने इन दोनों को भी परास्त किया था।
👉🏻 विदेशी शासकों के प्रति इसमें आत्मनिवेदन कन्योपायन तथा गरूत्मदिक प्रकार क नीति का पालन किया था।
👉🏻 इसने खाटविर्को (बर्बर जातियां) का समूल नाश किया क्योंकि ये व्यापार तथा वाणिज्य के मार्ग में बाधक थी।
👉🏻 समुद्रगगुप्त के समय श्रीलंका के शासक मेधवर्मन ने अपना दूत समुद्रगुप्त के पास भेजा था तथा गया में बोद्ध मठ बनाने की अनुमति मांगी।
👉🏻 रामगुप्त प्रथम जैन मतानुयायी था। (गुप्त वंश)
👉🏻 अनुमति मिलने पर मेधवर्मन ने ‘महाबोद्धि संघाराम‘ नामक बोद्ध मठ बनवाया।
👉🏻 हाल ही में जावा (इंण्डोनेशिया) से प्राप्त ‘तंत्रकामंदक‘ ग्रंथ से यहाँ के राजा ऐश्वर्यपाल के बारे में पता चला है जो समुद्रगुप्त के वंशक था।

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समुद्रगुप्त के द्वारा प्रचलित सिक्के

1.गरुड़ प्रकार के सिक्के :- राजा की आकृति, गरुड़ ध्वज, उपाधि (पराक्रमः) उत्कीर्ण
2.धनुर्धारी प्रकार के सिक्के :- राजा की आकृति, धनुष बाण, उपाधि (अप्रतिरथः) उत्कीर्ण
3.परशु प्रकार के सिक्के :- राजा की आकृति, परशु, उपाधि (कृतांत परशु) उत्कीर्ण
4.अश्वमेघ प्रकार
5.वीणा प्रकार
6.व्याघ्र हनन प्रकार

चन्द्रगुप्त द्वितीय

👉🏻 शासनकाल – 380 – 412 ई.
👉🏻 उपाधि – देवगुप्त, देवश्री, परमभागवत, विक्रमादित्य, विक्रमांक
👉🏻 चंद्रगुप्त द्वितीय का काल साहित्य और कला का स्वर्ण युग कहा जाता है।
👉🏻 विशाखदत्त के ‘देवीचन्द्रगुप्तम‘ नामक नाटक में यह उल्लेखित है कि समुद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात रामगुप्त नामक शासक हुआ।
👉🏻 इसके समय शकों ने गुप्तों पर आक्रमण किया।
👉🏻 रामगुप्त शक अधिपति को अपनी पत्नी धु्रव देवी को सौपनें के लिए विवश होना पड़ा तब चन्द्रगुप्त द्वितीय ने धु्रव देवी का वेष धारण कर शक राजा को मार गिराया तथा इस प्रकार चन्द्रगुप्त गुप्त साम्राज्य का शासक बन बैठा।
👉🏻 इस मत को प्रकाश में लाने का श्रेय राखलदास बनर्जी को है।
👉🏻 इसने नागराज कुमारी कुबेरनागा से विवाह किया।
👉🏻 प्रभावती गुप्त कुबेरनागा की ही संतान थी।
👉🏻 प्रभावती गुप्त का विवाह नरेश रूद्रसेन द्वितीय से किया।
👉🏻 अपने पुत्र कुमार गुप्त का विवाह कदम्ब वंश में किया।
👉🏻 दिल्ली के महरौली से प्राप्त लौहस्तम्भ में चन्द्र नामक शासक का उल्लेख है जिसने बाहलिक (बल्ख) तथा बंग (बंगाल) प्रदेश जीता।
👉🏻 शकों को पराजित करने के उपलक्ष्य में चन्द्रगुप्त द्वितीय के द्वारा व्याघ्र शैली के सिक्कों का प्रचलन किया।
👉🏻 इसने कालीदास को दूत बनाकर कुंतल नरेश काकुत्सवर्मन के दरबार में भेजा था।
👉🏻 इसके समय चीनी यात्री फाहयन भारत आया था परन्तु इसने चंद्रगुप्त या इसके वंशजों के बारे में न लिखकर केवल गुप्तयूगीन संस्कृति के बारे में लिखा है।
👉🏻 चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में 9 रत्न थे। – कालिदास, धन्वंतरि, अमरसिंह, वराहमिहिर, वररुचि, बेताल भट्ट, क्षुपणक, शंकु, घटपर्कर। परन्तु नवरत्न की संकल्पना मध्यकालीन भारत में जाकर स्थापित हुइ है।

मन्दिर निर्माण शैली

1.नागर शैली :- इसे आर्य शैली भी कहते है। उत्तरभारत के मंदिरों का निर्माण नागर शेली में कराया गया। झांसी (UP), देवगढ़ का दशावतार मन्दिर में पहली बार शिखर का प्रयोग किया गया।
2.द्रविड़ शैली :- दक्षिण भारत के मंदिरों का निर्माण इस शेली में किया गया। इन मंदिरों की प्रमुख विशेषता इनके विशाल प्रवेश द्वार है जिन्हें गोपुरम कहा जाता है।
3.वेसर/चालुक्य शैली :- इस शैली में नागर व द्रविड़ शैलियों का मिश्रण होता है। चालुक्य शासकों के द्वारा वेसर शैली में मंदिरों का निर्माण कराया गया।
4.एकायतन शैली :- ऐसे मन्दिर जिनके गर्भ गृह में एक प्रतिमा हो।
5.पंचायतन शैली :- पंचायतन शैली में मुख्य रूप से भगवान विष्णु के मंदिर का निर्माण किया जाता है। तथा विष्णु के साथ सूर्य, शिव, शक्ति, गणेश की भी मूर्ति होती है। (Gupt Kal गुप्तकाल)
6.महामारू शैली :- एक स्थान पर एक से अधिक मंदिरों के निर्माण की शेली को महामारू शैली कहते है। इस शैली में गुर्जर प्रतिहार शासकों ने मंदिरों का निर्माण करवाया।

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गुप्तकालीन प्रमुख मन्दिर

1.तिगवा का विष्णु मंदिर – मध्यप्रदेश
2.भूमरा का शिव मंदिर – मध्यप्रदेश
3.नचना कुठार का पार्वती मन्दिर – मध्यप्रदेश
4.देवगढ़ का दशावतार मन्दिर – उत्तरप्रदेश
5.भीतर गांव का लक्ष्मण मन्दिर – उत्तरप्रदेश
6.सिरपुर का लक्षमण मन्दिर – छत्तीसगढ़

चन्द्रगुप्त द्वारा चलाए गये सिक्के

1.धनुर्धारी सिक्के
2.छत्रधारी सिक्के
3.पर्यंक सिक्के
4.सिंह-निहन्ता सिक्के
5.अश्वारोही प्रकार के सिक्के

फाह्यान

👉🏻 काल – 399 – 414 ई.
👉🏻 फाह्यान का अर्थ – धर्माचार्य
👉🏻 पुस्तक – फू-को-की
👉🏻 फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय के काल में भारत आया
👉🏻 फाह्यान ने चांडाल नामक जाति का उल्लेख किया है। जिससे पता चलता है कि गुप्त काल मे छुआ-छूत का प्रचलन था।
👉🏻 फाह्यान ने पाटलीपुत्र का वर्णन किया
👉🏻 फाह्यान भारत में स्थल मार्ग से होते हुए गोबी मरुदेश, खोतान, पामीर, एवं स्वात को पार करता हुआ गांधार आया था, परन्तु वापस वह समुद्री मार्ग से लौटा था

कुमार गुप्त

👉🏻 शासनकाल – 412-454 ई.
👉🏻 उपाधि – श्रीमहेन्द्र, महेन्द्रादित्य, शक्रादित्य, अश्वमेघ महेन्द्र
👉🏻 सर्वाधिक गुप्त अभिलेख कुमार गुप्त के ही प्राप्त हुए है
👉🏻 इसने महेन्द्रादित्य की उपाधि धारण की थी।
👉🏻 कुमारगुप्त की मुद्राओं में गरुड़ के स्थान पर मयूर की आकृति अंकित की गयी।
👉🏻 कुमारगुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ किया तथा अश्वमेघ प्रकार की मुद्रा चलाई।
👉🏻 इसके अभिलेखों में सर्वाधिक प्रसिद्ध मन्दसौर का है। जिसकी रचना वत्सभट्टि नामक संस्कृत विद्वान ने की थी।
👉🏻 उसके स्वर्ण सिक्कों पर उसे गुप्तकुलामल चन्द्र व गुप्तकुल (Gupt Kal) व्योमशाशि कहा गया है।
👉🏻 इसी के समय पुष्यमित्रों का प्रथम आक्रमण हुआ जिसे दबाने के लिए इसने अपने पुत्र स्कंद गुप्त को भेजा। इसकी जानकारी स्कंदगुप्त के भितरी अभिलेख से मिलती है
👉🏻 कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी। यह विश्वविद्यालय “ऑक्सफोर्ड ऑफ महायान बौद्ध” के नाम से भी जाना जाता है। इस विश्वविद्यालय में धर्मगंज पुस्तकालय था जो तीन भागों में बंटा हुआ था – रत्नोदधि, रत्नरजंक, रत्न सागर।
👉🏻 इसके काल मे सर्वाधिक अभिलेखों की रचना हुई। (18 अभिलेख)

👉🏻 कुमारगुप्त के अभिलेख
1.विलसड़ अभिलेख :- उत्तरप्रदेश से प्राप्त। इसमे गुप्त शासकों की वंशावली प्राप्त होती है।
2.गढ़वा अभिलेख :- उत्तरप्रदेश से प्राप्त। इस पर परमभागवत शब्द उत्कीर्ण किया गया।
3.करमन्दा अभिलेख :- उत्तरप्रदेश से प्राप्त। इस अभिलेख में शिव की प्रतिमा बनी हुई है।
4.बेग्राम, धनदेह, दामोदरपुर अभिलेख :- ये तीनों अभिलेख बंगाल से प्राप्त। इनमे गुप्त काल मे भूमि दान में देने की जानकारी प्राप्त होती है।

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स्कन्दगुप्त

👉🏻 शासनकाल – 454 – 467 ई.
👉🏻 स्कंदगुप्त ने शक्रादित्य की उपाधि धारण की थी।
👉🏻 स्कंदगुप्त गुप्त वंश का अंतिम प्रतापी शासक था।
👉🏻 हूणों का प्रथम आक्रमण स्कंदगुप्त के समय ही हुआ था।
👉🏻 हूणों का नेतृत्व खुश्नेवाज नामक आक्रमणकारी ने किया था इसमें स्कंदगुप्त विजयी रहा।
👉🏻 स्कंद गुप्त के जुनागढ़ अभिलेख में हुणों को मलेच्छ का गया है।
👉🏻 स्कंदगुप्त के समय सौराष्ट्र प्रांत का गवर्नर पर्णदत्त था तथा सौराष्ट्र की राजधानी गिरनोर का प्रशासक पर्णदत्त का पुत्र चक्रपालिक था, जिसने सुदर्शन का पुनर्निमाण करवाया। (Gupt Kal गुप्तकाल)
👉🏻 सुदर्शन झील का निर्माण पुष्यगुप्त ने चंद्रगुप्त मौर्य के समय कराया।
👉🏻 स्कंदगुप्त के समय पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालि ने इस झील का पुननिर्माण करवाया।
👉🏻 स्कंद गुप्त के पश्चात गुप्त साम्राज्य का विघटन होना शुरू हुआ।
👉🏻 467 से 477 के मध्य दो गुप्त शासकों का विवरण मिलता है पुरूगुप्त और बुद्धगुप्त।
👉🏻 बुद्धगुप्त बौद्ध अनुयायी था (प्रथम गुप्तकालीन बौद्ध अनुयायी शासक)
👉🏻 बुद्ध गुप्त के पश्चात नरसिंह गुप्त बालादित्य शासक बना, इसने हुण आक्रमणकारी मिहिर कुल को परास्त किया।
👉🏻 हुणों के आक्रमण के फलस्वरूप गुप्तों ने अपनी राजधानी पाटलीपुत्र से अयोध्या स्थानातंरित कर दी।
👉🏻 इसके पश्चात विघटन हो गया। (गुप्त साम्राज्य का विघटन हो गया)
👉🏻 स्कन्दगुप्त की मुद्राएं – धनुर्धर प्रकार, बुल प्रकार, राजा व लक्ष्मी प्रकार, छत्र प्रकार, गरुड प्रकार, अश्वारोही प्रकार
👉🏻 कहोम अभिलेख :- उत्तरप्रदेश से प्राप्त। इस अभिलेख में स्कन्दगुप्त को शक्रादित्य कहा गया। इस अभिलेख के अनुसार भद्र नामक व्यक्ति ने पांच जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं स्थापित कराई – ऋषभदेव, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी, शांतिनाथ।

गुप्त साम्राज्य के पतन के कारण

👉🏻 गुप्त साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार, विदेशी आक्रमण तथा आंतरिक विद्रोह इस पतन की ओर ले गया
👉🏻 स्कन्द गुप्त के उत्तराधिकारी विशाल गुप्त साम्राज्य को अक्षुण नहीं रख सके । शक्तिशाली हूणों के आक्रमण और विघटनकारी शक्तियों के आगे वे निर्बल सिद्ध हुयें इस प्रकार गुप्त साम्राज्य का पतन हो गया ।
👉🏻 अयोग्य उत्तराधिकारी- स्कन्द गुप्त के उपरान्त कोई ऐसा प्रतापी शासक नहीं हुआ जो साम्राज्य को सुसंगठित रख सके । समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा स्थापित तथा स्कन्दगुप्त द्वारा रक्षित विशाल गुप्त साम्राज्य को राजनीतिक एकता के सूत्र में आबद्ध रखने में परवर्ती गुप्त शासक असमर्थ रहें ।
👉🏻 वंशानुगत राजतंत्र – गुप्त राज्य व्यवस्था वंशानुगत राजतंत्र की व्यवस्था थी इसके कारण भी पतन हुआ ।
👉🏻 विदेशी आक्रमण – बाहरी आक्रमणों के कारण गुप्त साम्राज्य खोखला हो गया था । शक और हूणों के आक्रमण से साम्राज्य का रक्षा करने में केवल स्कन्दगुप्त ही सफल रहा। स्कन्दगुप्त की मृत्यु के पश्चात हूणों का पुन: आक्रमण प्रारम्भ हो गया । फलस्वरूप गुप्त साम्राज्य नष्ट हो गया ।
👉🏻 आर्थिक हास ने भी गुप्त वंश के पतन में योगदान दिया
👉🏻 मौखरी वंश के शासक यशोधमर्न ने मालवा व उसके आसपास के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया जिससे गुप्त साम्राज्य की प्रतिष्ठा पर काफी प्रभाव पड़ा
👉🏻 केन्द्रीय सत्ता के कमजोर होते ही अधीनस्थ सामंतों ने पृथकतावादी रुख अपनाकर साम्राज्य की शक्ति को कम कर दिया

गुप्तकालीन साहित्य

👉🏻 इस समय महाकाव्यों तथा पुराणों को अन्तिम रूप दिया गया।
👉🏻 अधिकतर पुराणों का अंकन ऋषि लोमहर्ष तथा इनके पुत्र उग्रसर्व द्वारा किया गया है।
👉🏻 गुप्तकालीन साहित्य की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि नाटकों के पात्रों में स्त्रियों व शुद्ध भाषा बोलते थे तथा भद्र पुरूष संस्कृत भाषा बोलते थे।
👉🏻 दूसरी विशेषता यह है कि अधिकारी साहित्य प्रेम प्रधान होता था उसका अंत सुखांत होता था।
👉🏻 एकमात्र ऐसा नाटक जिसका अंत दुखांत था वह शुद्रक कृत मच्छकटिकम था। इसमें ब्राह्मण सार्थवाह चारूदत्त तथा गणिका वसन्त सेना की प्रेम कथा व विरह कथा का वर्णन है।

कालिदास

कालिदास को भारत का शेक्सपियर कहा जाता है। इनके ग्रन्थों को तीन भागों में बांटा गया है –
1.महाकाव्य :- कालिदास के द्वारा रचित महाकाव्य –
I.रघुवंश :- 19 सर्गों (भाग) में
II.कुमारसम्भव :- 17 सर्गों (भाग) में

2.खण्डकाव्य :-
I.मेघदूत
II.ऋतुसंहार

3.नाटक :-
I.अभिज्ञान शाकुंतलम
II.विक्रमोवर्शियम
III.मालविकाग्निमित्रम
👉🏻 मालविकाग्निमित्रम में मालविका तथा अग्निमित्रम की प्रेमकथा का वर्णन है इसी नाटक में उल्लेखित है कि जब यवनों ने मध्यमिका (चितौड़) को घेर लिया तब अग्निमित्रम के पुत्र वसुमित्रम् ने मध्यमिका को मुक्त कराया। (Gupt Kal गुप्तकाल)

👉🏻 अन्य पुस्तकें एवं उनके लेखक –
1.मृच्छकटिकम – शूद्रक
2.मुद्राराक्षस – विशाखदत्त (मुद्राराक्षस भारत का पहला जासूसी ग्रन्थ माना जाता है।)
3.कामसूत्र – वात्स्यायन
4.नीतिसार – कामदक
5.पंचतंत्र – विष्णु शर्मा
6.सांख्यकारिका – ईश्वर कृष्ण
7.अमरकोष – अमर सिंह

गुप्तकालीन अन्य विद्वान –

आर्यभट्ट

👉🏻 इन्होंने दशमलव जीरो की जानकारी दी।
👉🏻 आर्यभट्ट ने पाई का मान 22/7 बताया।
👉🏻 आर्यभट्ट ने बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है।
👉🏻 इन्होंने आर्यभट्टीय ग्रन्थ की रचना की जिसके निम्न भाग है – दस गीतिका, गणित पाद, गोल पाद, काल क्रिया पाद
👉🏻 आर्यभट्टीय उस युग की एकमात्र कृति है जिस पर उसके लेखक का नाम अंकित है।

वराहमिहिर

👉🏻 इन्होंने वर्गमूल घनमूल निकालने की विधि बताई।
👉🏻 इन्होंने निम्न पुस्तकों की रचना की – वृहत संहिता, वृहत जातक, लघु संहिता, पंच सिद्धांतिका
👉🏻 पंच सिद्धांतिका के पाँच भाग है – पैतामह, वशिष्ठ, सूर्य, रोमक, पोलिस

भास्कर – I

👉🏻 भास्कर द्वारा लिखित पुस्तके – महाभास्कर, लघुभास्कर, भाष्य
👉🏻 अमर सिंह ने ‘अमरकोष‘ नामक ग्रन्थ लिखा जिसका मूलनाम ‘लिंगानुशासन‘ था।
👉🏻 इस समय चन्द्रगोधिन ने हिन्दी की चान्द्र पद्धति पर आधारित व्याकरण लिखी।
👉🏻 ब्रह्मगुप्त ने ‘बह्म सिंद्धात‘ की रचना की तथा गुरूत्वाकर्षण के नियम का प्रतिपादन भी इसी के द्वारा ही किया गया।

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गुप्तकालीन सामाजिक संगठन

👉🏻 पितृसत्तात्मक समाज था।
👉🏻 इस समय वर्ण व्यवस्था अपने सर्वाधिक कुण्ठित रूप में थी।
👉🏻 इस समय चार वर्ण थे – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र
👉🏻 इस समय तक ब्राह्मणों की दशा में भी गिरावट आई क्योंकि ब्राह्मणों के भी वर्ग बनने लगे। जैसे:- उत्तरी भारत में चतुर्वेदी ब्राह्मण, राजस्थान में श्रीमाली ब्राह्मण तथ गुजरात में नागर ब्राह्मण।
👉🏻 अपने आप को अन्य ब्राह्माणों की तुलना में ये स्वयं को श्रेष्ठ मानते थे।
👉🏻 न्याय में भी वर्ण व्यवस्था दिखने लगी।
👉🏻 न्याय व्यवस्था में वर्ण व्यवस्था को प्रथम बार शामिल किया गया।
👉🏻 शुद्र की परीक्षा विष से ली जाती थी।
👉🏻 इस समय शुद्रों में कई उपजातियाँ बनने लगी।
👉🏻 जब वैश्यों ने कृषि से नाता तोड़ना शुरू किया तब शुद्रों ने कृषि को अपना लिया।
👉🏻 इस काल में ‘चण्डाल‘ एक अछूत जाति समझी जाती थी।
👉🏻 शुद्र के अतिरिक्त अन्य तीनों वर्णों को उपनयन संस्कार का अधिकार था।
👉🏻 भानुगुप्त के ऐरण अभिलेख से सतीप्रथा की जानकारी मिलती है।
👉🏻 समाज मे अनुलोम व प्रतिलोम विवाह का प्रचलन था।
👉🏻 अनुलोम विवाह – महिला निम्न कुल व पुरुष उच्च कुल का
👉🏻 प्रतिलोम विवाह – महिला उच्च कुल की व पुरुष निम्न कुल का

स्त्रियों की दशा

👉🏻 इस समस स्त्रियों की दशा दयनीय थी।
👉🏻 फाह्यान तथा ह्वेनसांग प्रर्दा-प्रथा का वर्णन नहीं किया है
👉🏻 उच्च वर्ण की स्त्रियाँ शिक्षा भी प्राप्त करती थी तथा शिक्षिकाओं को उपाध्याया तथा आचार्य कहा जाता था।
👉🏻 इस समय देवदासी प्रथा का प्रचलन हो गया था, मेघदूत में कालका (उज्जेन) के शैव मन्दिर में देवदासियों के होने का जिक्र हुआ है।
👉🏻 इस समय मनुस्मृति में स्त्रियों को केवल घर की चारदीवारी में रहने के लिए बाघ्य किया गया है फिर भी इस काल में अनुसुया को इतिहास का ज्ञाता कहा गया है। (Gupt Kal गुप्तकाल)

गुप्त प्रशासन

👉🏻 मौर्य प्रशासन में जहाँ शासन का केन्द्रीकरण था वहीं गुप्त साम्राज्य में विकेन्द्रीकरण होना शुरू हो गया। गुप्त साम्राज्य सामंतीय व्यवस्था में विभक्त था

👉🏻 गुप्तकालीन अधिकारी :-
1.महासेनापती – सेना का सर्वोच्च अधिकारी
2.कुमारामात्य – प्रशासनिक अधिकारी
3.रणभांडागारिक – सैनिक आवशकताओं की पूर्ति करने वाला
4.महादण्डनायक – युद्ध व न्याय विभाग का कार्य देखने वाला
5.महाबलाधिकृत – सैनिकों की नियुक्ति करने वाला अधिकारी
6.महासन्धिविग्रहिक – युद्ध एवं शांति या वैदेशिक नीति का प्रधान
7.महाअक्षपटलिक – अभिलेखा विभाग का प्रधान
8.अग्रहारिक – दान विभाग का प्रधान
9.महाप्रतिहार – राजप्रसाद का मुख्य सुरक्षा अधिकारी
10.दण्डपाशीक – पुलिस विभाग का सर्वोच्च अधिकारी
11.विनयस्थितिस्थापक – धर्म संबंधी मामलों का प्रधान जो सार्वजनिक मंदिरों का प्रबंध करता था
12.महापिलुपती – हाथी सेना का प्रधान
13.भटाश्वपति – पैदल सेना और घुड़सवारों का अध्यक्ष
14.टिकिन – मार्गपती या सड़कों की देखरेख करने वाला

👉🏻 सेना का कार्यालय बलाधिकरण कहलाता था
👉🏻 गुप्त साम्राज्य के सबसे बड़े अधिकारी कुमारामात्य होते थे
👉🏻 राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूमिकर उपज का 1/6 भाग था

प्रान्तीय प्रशासन

👉🏻 गुप्तकाल की एक अनोखी व्यवस्था रही है कि यहाँ पद भी वंशानुगत होने लगे।
👉🏻 प्रान्तों को देश अवनी या ‘भूक्ति‘ कहा जाता था तथा इसके संचालक को ‘उपरिक‘ कहते है।
👉🏻 प्रान्तों का विभाजन जिलों (विषय) में होता था तथा इसका प्रधान अधिकारी विषयपति होता था।
👉🏻 विषयपति की नियुक्ति उपरीक द्वारा की जाती थी तथा उपरीक के पद पर सामान्यतः शाही युवराज ही बैठते थे।
👉🏻 विषयपति का अपना कार्यालय होता था तथा उसमें अभिलेखों को सुरक्षित रखने वाला अधिकारी ‘पुस्तपाल‘ कहलाता था।
👉🏻 जिलों का विभाजन गाँवों में होता था यद्यपि कुछ क्षेत्रों में विषय का विभाजन गाँवों के समूहों में होता था जिन्हें ‘पैठ‘ कहते थे।
👉🏻 गाँव का प्रधान अधिकारी ग्रामिक कहलाता था।
👉🏻 कुछ प्रांत ऐसे भे थी जिन्हें देश का दर्जा प्राप्त था तथा इनका शासनकर्ता उपरीक न कहलाकर गोपा कहलाता था।

नगर प्रसाशन

👉🏻 गुप्तकाल में कई बडे-बडे नगरों का विकास हुआ। इन नगरों का प्रशासन भी कुछ अधिकारियों द्वारा चलाया जाता था।
👉🏻 नगर का प्रधान अधिकारी पुरपाल कहलाता था।
👉🏻 नगरों मे नगर पालिकाएँ भी होती थी।
👉🏻 नगर परिषद् को स्थानाधिकरण कहते थे।

स्थानीय शासन

👉🏻 सबसे छोटी इकाई गाँव थी गाँव की व्यवस्था ग्रामपति या ग्रामिक महत्तर देखता था

न्याय प्रशासन

👉🏻 राजा सर्वोच्च न्यायाधीश होता था
👉🏻 राजा के न्यायालय को सभा, धर्मस्थान या धर्माधिकरण कहा जाता था (Gupt Kal गुप्तकाल)
👉🏻 नारद स्मृति में गुप्तकाल में चार प्रकार के न्यायालय थे – कुल, श्रेणी, गण, राजकीय न्यायालय

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भू-राजस्व व्यवस्था

👉🏻 गुप्तकाल में राजस्व व्यवस्था के अन्तर्गत भाग तथा भोग नामक दो कर लिये जाते थे।
👉🏻 भोग के अन्तर्गत राजा के दैनिक जीवन से सम्बंधित वस्तुएँ होती थी।
👉🏻 भाग के अन्तर्गत भू राजस्व का 1/6 भाग लिया जाता था।
👉🏻 गुप्तकालीन साहित्य में भाग को उद्रंग कहा जाता था।
👉🏻 भाग दो रूपों में वसूला जाता था।
i.नगद (हिरण्य):- नगर वसूलने वाला अधिकारी औदंगिक कहलाता था।
ii.अनाज (जिंस या मेय):- मेय को वसूलने वाला अधिकारी औद्रांगिक कहलाता था।
👉🏻 ‘भूतोवात प्रत्यय‘ विदेशी नशीली वस्तुओं पर लगने वाला कर था।
👉🏻 शुल्क वसूलने वाला अधिकारी ‘शैल्किक‘ कहलाता था। तथा सीमांत क्षेत्रों से कर वसूलने वाला अधिकारी द्रांगिक कहलाता था।

👉🏻 गुप्तकाल में भूमि दो भागों में बंटी हुई थी –
1.देवमातृक भूमि – अच्छी वर्षा वाली भूमि
2.अदेवमातृक भूमि – बंजर भूमि
👉🏻 अमरसिंह की पुस्तक अमरकोष में 12 प्रकार की भूमि का उल्लेख मिलता है।
👉🏻 गुप्तकाल में भूराजस्व 1/6 भाग से लेकर 1/4 भाग तक वसूल किया जाता था।

👉🏻 प्रमुख कार –
i.भाग – राजा को भूमि के उत्पादन से प्राप्त होने वाला छठां हिस्सा।
ii.भोग – सम्भवतः राजा को हर दिन फल-फूल एवं सब्जियों के रूप में दिया जाने वाला कर।
iii.उद्रंग – स्थाई किसानों से लिया जाने वाला कर
iv.उपरिकर – अस्थाई किसानों से लिया जाने वाला कर
v.विष्टि – निःशुल्क श्रम / बेगार
vi.बलि – धार्मिक कर
vii.भूतोपांत प्रत्याय – राज्य में उत्पादित व आयात की गई वस्तुओं पर लगने वाला कर।

👉🏻 भूमि का पैमाना
👉🏻 भूमि की सबसे बडी माप निवर्तन कहलाती थी।
👉🏻 कुल्यावाप – 8
👉🏻 द्रौणमुख – 32 आदवाप

सिंचाई व्यवस्था

👉🏻 उत्तर भारत में सिंचाई के लिए प्रमुखता से उपयोगी यंत्र अरघट (घटीयंत्र) था।
👉🏻 दक्षिणी भारत में तालाब के द्वारा सिंचाई होती थी।
👉🏻 राज्य द्वारा सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाये जाने पर ‘शुर्प‘ नामक कर लिया जाता था।

गुप्तकाल में सांस्कृतिक विकास

धर्म

👉🏻 राजकीय धर्म – वैष्णव धर्म
👉🏻 राजकीय चिन्ह – गरुड़
👉🏻 गुप्तकाल काल मे उच्च वर्ग के लोग संस्कृत भाषा का प्रयोग करते थे। जबकि महिलाएं व निम्न वर्ग के लोग प्राकृत भाषा का प्रयोग करते थे।
👉🏻 गुप्तकाल में पाशुपत सम्प्रदाय लोकप्रिय सम्प्रदाय था।
👉🏻 गुप्तकाल (Gupt Kal) में सूर्य पूजा का भी प्रचलन था जिसकी जानकारी कुमार गुप्त I के मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होती है।
👉🏻 इस काल में शैव मंदिरों का निर्माण हुआ शिव की मूर्तियाँ मानव आकार में तथा लिंग के रूप में बनी
👉🏻 गुप्तकाल में कश्मीर, अफगानिस्तान और पंजाब बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद थे

गुप्तकालीन स्थापत्य कला

मंदिर निर्माण

👉🏻 अधिकांश मन्दिर चबूतरे के बने होते थे तथा मूर्तियाँ गर्भ गृह में रखी जाती थी।
👉🏻 गुप्तकाल की मुख्य विशेषता तोरणद्वार पर गंगा तथा यमुना का देवियों के रूप में चित्रण है।
👉🏻 सांची का मन्दिर गुप्तकाल का प्रारम्भिक मन्दिर है।
👉🏻 देवगढ़ के मंदिर में प्रथम बार शिखर का इस्तेमाल किया गया तथा भीतरी गाँव के मंदिर में प्रथम बार मेहराब का इस्तेमाल किया गया।
👉🏻 नचना कुठार का पार्वती मंदिर – पन्ना, मध्यप्रदेश में स्थित है यह शिव तथा पर्वती का मंदिर है।
👉🏻 तिगवा का विष्णु मंदिर – मध्यप्रदेश
👉🏻 भूमरा का मन्दिर – भूमरा, मध्यप्रदेश (वर्तमान – सतना जिले में)
👉🏻 देवगढ़ का दशावतर मन्दिर – देवगढ़, ललितपुर (उत्तरप्रदेश) यह मन्दिर पंचायतन शैली में बना हुआ है
👉🏻 भितर गाँव का शिव मन्दिर – कानपुर, उत्तरप्रदेश में इसका निर्माण चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में हुआ
👉🏻 इस समय वैष्ण्णव सम्पद्राय से सम्बंधित मंदिर बनने लगे थे तथा इस धर्म में भी ‘पांचरात्र‘ प्रथा का विकास हो गया।
👉🏻 गुप्तकालीन साहित्य में वासुदेव को विष्णु का अवतार माना गया। (Gupt Kal गुप्तकाल)

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मूर्तिकला

👉🏻 गुप्तकालीन मूर्तिकला का सबसे सुन्दर उदाहरण दशावतार मंदिर में स्थित विष्णु की प्रतिमा है।
👉🏻 काशी से श्रीकृष्ण की प्रतिमा प्राप्त हुई है जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा रखा है।
👉🏻 सारनाथ से बुद्ध की प्रतिमा मिली हैं

चित्रकला

👉🏻 कामसूत्र के अनुसार चित्रकला 64 कलाओं में से एक थी।
👉🏻 इस समय अजन्ता औरंगाबाद (महाराष्ट्र) तथा बाघ (मध्यप्रदेश) में चित्रकला का सर्वोत्तम उदाहरण मिलता है।
👉🏻 गुप्तकालीन चित्रकला के साक्ष्य अजन्ता व बाघ की गुफाओं से प्राप्त हुए है।

अजन्ता की गुफाएं

👉🏻 स्थान – औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
👉🏻 इन गुफाओं की खोज 1819 में जेम्स अलेक्जेंडर के द्वारा की गई।
👉🏻 यहाँ 29 गुफाओं में चित्र बनाये गए है। गुफा संख्या 1,2 चालुक्य काल की, गुफा संख्या 9,10 सातवाहन काल की तथा गुफा संख्या 16,17,19 गुप्त काल की मानी जाती है।
👉🏻 गुफा संख्या 16 से मरणासन्न राजकुमारी का चित्र मिला है।
👉🏻 गुफा संख्या 17 को चित्रशाला कहा जाता है। यहाँ से महात्मा बुद्ध से सम्बंधित चित्र मीले है।

बाघ की गुफाएं

👉🏻 इनकी खोज 1818 में डेंजर फील्ड के द्वारा की गई।
👉🏻 यहाँ कुल 9 गुफाएं थी। इन गुफाओं के चित्रों को हल्लीसक कहा गया

व्यापार तथा वाणिज्य

👉🏻 कुषाणों के समय रेशम मार्ग विद्यमान था परन्तु यूरोपियों ने जब रेशम बनाने की कला स्वयं ही सीख ली, तब भारत में व्यापार में हास हुआ। परन्तु इस समय भारत का व्यापार यूरोप से होता था।
👉🏻 गुप्तकाल में ऐसे जहाज बनाये जाते थे जिनमें 500-600 यात्री बैठ सकते थे।
👉🏻 चंद्रगुप्त प्रथम तथा समुद्रगुप्त के समय सोने के सिक्के विशुद्ध सोने के सिक्के बनाए जाते थे।
👉🏻 चंद्रगुप्त गुप्तों में सर्वप्रथम चांदी का सिक्का चलाया जिसका वजन 32 ग्रेन था, परन्तु बाद में गुप्त शासकों ने जो सिक्के चलाये उनमें सोने की मात्रा कम थी।
👉🏻 इस समय भारत का सर्वप्रमुख बदंरगाह ताम्रलिप्ति (प.बंगाल) था।

History Topic Wise Notes & Question
Gupt Kal गुप्तकाल

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