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राजस्थान में वन एवं वन्य जीव अभयारण्य | Forest and Wildlife Sanctuaries in Rajasthan Notes PDF
राजस्थान में वन | Forest in Rajasthan
1.ब्रिटिश भारत में सर्वप्रथम 1894 में वन नीति लागू की गई ।
उद्धेश्य : – राजस्व प्राप्ति हेतु वृक्षारोपण के कार्यों पर विशेष बल दिया गया ।
2.स्वतंत्र भारत में सर्वप्रथम वन नीति 1952 में लागू की गई ।
उद्धेश्य : – देश के कुल क्षेत्रफल पर कम से कम 1 / 3 ( 33 प्र . ) भू – भाग पर वन होने चाहिए ।
3.नवीन संशोधित ( भारत ) वन नीति की घोषणा 1988 में की गई ।
उद्देश्य : – वृक्षारोपण के साथ – साथ वन्य जीवों की , सुरक्षा पर विशेष बल देना।
4.राजस्थान में सर्वप्रथम 2010 में पर्यावरण वन नीति की घोषणा की गई ।
उद्धेश्य : – वृक्षारोपण के साथ – साथ पर्यावरण संरक्षण पर बल दिया गया ।
● पर्यावरण के संबंध में इस प्रकार की नीति जारी करने वाला राजस्थान भारत का पहला राज्य है ।
● इसी वन नीति के अन्तर्गत 1 अगस्त , 2010 को प्लास्टिक के कैरी बैग्स ( थैलियां आदि ) पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध लगाया गया ।
● राजस्थान में वन विभाग की स्थापना 1949 – 50 में ।
● राजस्थान में सर्वप्रथम वन संरक्षण अधिनियम 1953 में पारित किया गया।
● भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान – देहरादून (उत्तराखंड)
● भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण संस्थान – कोलकाता
● राजस्थान में सर्वप्रथम 1910 में जोधपुर रियासत में वन संरक्षण अधिनियम पारित किया गया।
(1) प्रशासनिक वर्गीकरण के आधार पर
1. आरक्षित वन क्षेत्र :
● कुल वन क्षेत्रों के 38.16 प्रतिशत भू – भाग पर हैं ।
● ऐसे वन क्षेत्र जहां पर पशु चराई तथा लकड़ी काटने पर पूर्ण प्रतिबन्ध हो ।
2. सुरक्षित वन क्षेत्र
● कुल वन क्षेत्र के 53.36 प्रतिशत भू – भाग पर हैं ।
● ऐसे वन जहां पर राज्य सरकार की अनुमती के बिना पशु चराई तथा लकड़ी काटने पर प्रतिबन्ध ।
3. अवर्गीकृत वन क्षेत्र
● कुल वन क्षेत्र के 8.48 प्रतिशत भू – भाग पर हैं ।
● ऐसे वन जहां पर पशु चराई तथा लकड़ी काटने पर आंशिक प्रतिबन्ध हो ।
(2) भौगोलिक वर्गीकरण के आधार पर
1. उष्ण कटिबन्धीय कांटेदार वन
● मरूस्थलीय प्रदेशों में पाये जाते है ।
● इन वृक्षों में रोहिड़ा , खेर , बबूल , खेजड़ी तथा कंटीले झाड़ीदार वृक्ष मुख्य रूप से होते है ।
● राजस्थान का मरू शोभा तथा राजस्थान का सागवान – रोहिड़ा
● रोहिड़ा को नष्ट करने वाला कीड़ा / चूहा – जुलीयर
● थार के मरूस्थल में पाई जाने वाली वनस्पतियों पर लिखी गई पुस्तक – फलोरा ऑफ द इण्डियन डेजर्ट – एम . एम . भण्डारी
2. उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती / पतझड़ वन
● ये गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाये जाते है ।
3. अर्द्ध उष्ण सदाबहार वन
● सिरोही का माउंट आबू क्षेत्र, बांसवाड़ा का दक्षिणी भाग तथा झालावाड़ के क्षेत्रों में।
4. शुष्क सागवान के वन
● राजस्थान के दक्षिणी भागो में पाए जाते है।
● इन व्रक्षो मे सागवान तथा महुआ के व्रक्ष सर्वाधिक पाए जाते है।
● महुआ व्रक्ष को आदिवासियों का कल्प वृक्ष कहा गया है।
5. ढाक या पलास के वृक्ष
● राजसमन्द व उदयपुर के क्षेत्रों में
● इस वक्ष / वृक्षों को जंगल की ज्वाला / आग भी कहा जाता है ।
6. सालर वन
● राजस्थान के अजमेर , भीलवाड़ा , टोंक , जयपुर , दौसा तथा सवाई माधोपुर में पाये जाते है ।
● इन वृक्षों में साल तथा तेन्दू के वृक्षों की प्रधानता सर्वाधिक है ।
● साल वृक्ष की लकड़ी – पैकिंग उद्योग में प्रयोग करते है ।
● तेंदु वृक्ष की पत्तियों से बीड़ीयां बनाई जाती है । राजस्थान में मुख्य बीड़ी उद्योग – टोंक ( मयूर बीड़ी उद्योग )
● सर्वाधिक तेन्दु वृक्ष – मध्यप्रदेश ।
7. मिश्रित पतझड़ वन
● डांग क्षेत्र तथा हाड़ौती क्षेत्र में पाये जाते है ।
● इन वृक्षों में सर्वाधिक धौंकड़ा के वृक्ष पाये जाते है ।
राजस्थान में वन्य जीव अभ्यारण्य Wildlife Sanctuaries in Rajasthan
● ब्रिटिश भारत मे सर्वप्रथम वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1886-87 में पारित किया गया।
● स्वतंत्र भारत मे सर्वप्रथम वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में लागू किया गया। जबकि इस कानून को राजस्थान में 1973 में लागू किया।
● वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत 1985 में भारतीय वन्य जीव बोर्ड की स्थापना की गई।
● राजस्थान वन्य जीव बोर्ड की स्थापना – 1955
● सर्वप्रथम शिकार पर रोक लगाने वाली रियासत – टोंक रियासत 1901 में
● 1 अप्रैल 1901 को कैलाश सांखला के प्रयासों से भारत मे टाइगर प्रोजेक्ट की स्थापना की गई। (टाइगर मेन – कैलाश सांखला)
राजस्थान में टाइगर प्रोजेक्ट
1.रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान – 1973-74
2.सरिस्का अभ्यारण्य – 1978-79
3.मुकन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान – 12 अप्रैल 2013
राजस्थान में राष्ट्रीय उद्यान
1.रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान – 1980-81
2.केवला देव राष्ट्रीय उद्यान – 1980-81
3.मुकन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान – 9 जनवरी 2012
राजस्थान में आखेट निषेध क्षेत्र – 33
● सबसे बड़ा आखेट निषेध क्षेत्र – संवत्सर कोटसर (बीकानेर)
● सबसे छोटा आखेट निषेध क्षेत्र – कनक सागर (बूंदी)
राजस्थान में जन्तुआलय – 5
1.जयपुर जन्तुआलय – 1876 – घड़ियालों की प्रजनन स्थली।
2.उदयपुर जन्तुआलय – 1878
3.बीकानेर जन्तुआलय – 1922 – वर्तमान में बंद
4.जोधपुर जन्तुआलय -1936 – गोडावण की प्रजनन स्थली
5.कोटा जन्तुआलय – 1954
राजस्थान में मृगवन
1.अशोक विहार -जयपुर
2.संजय उद्यान – जयपुर
3.माचिया सफारी पार्क – जोधपुर
4.अमृता देवी – जोधपुर
5.सज्जनगढ़ मृगवन – उदयपुर
6.चितौड़गढ़ मृगवन – चितौड़गढ़
7.पुष्कर मृगवन – अजमेर
राजस्थान में वन्य जीव अभ्यारण्य – 25
● राजस्थान के वे जिले जहाँ कोई वन्य जीव अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, आखेट निषेध क्षेत्र, मृगवन या जन्तुआलय नही है – श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, झुंझुनूं, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, भीलवाड़ा, सीकर, दौसा।
राजस्थान के राष्ट्रीय उद्यान (National Parks of Rajasthan)
1. रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान :- सवाई माधोपुर
● स्थापना – 1955
● राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा – 1 नवम्बर 1980
● बाघ परियोजना में शामिल – 1973-74
● रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान जुलाई से सितम्बर माह तक पर्यटकों के लिए बन्द रहता है।
● रणथम्भौर अभ्यारण्य को बाघों की शरण स्थली कहा जाता है।
● भारत का सबसे छोटा बाघ अभ्यारण्य है लेकिन इसे भारतीय बाघों का घर कहा जाता है।
● रणथंभौर बाघ परियोजना के अंतर्गत विश्व बैंक एवं वैश्विक पर्यावरण सुविधा की सहायता से वर्ष 1996-97 से इंडिया इको डेवलपमेंट प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है।
2. केवलादेव घना पक्षी विहार :- भरतपुर
● स्थापना – 1956
● राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा – 1981
● यूनेस्को की प्राकृतिक सूची में शामिल – 1985
● यह सफेद साईबेरियाई सारस के प्रवास का मुख्य आकर्षण स्थान है।
● इस अभ्यारण्य में कुट्टु घास साईबेरियाई सारस का मुख्य खाद्य है।
● पक्षियों के स्वर्ग के नाम से प्रसिद्ध यह एशिया की सबसे बड़ी प्रजनन स्थली है।
● इसमे 300 से अधिक पक्षियों की जातियां है जिसमे से 200 जातियां विदेशी है।
3. मुकन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान
● विस्तार – कोटा, बूंदी, झालावाड़, चितौड़गढ़
● पूर्व नाम – दर्रा वन्य जीव अभ्यारण्य (2005 में वसुन्धरा राजे सरकार द्वारा परिवर्तित किया गया)
● स्थापना – 1955
● राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा – 9 जनवरी 2012
● बाघ परियोजना में शामिल – 12 अप्रैल 2013
● यह गगरोनी तोते के लिए प्रसिद्ध है।
● क्षेत्रफल – 274.41 वर्ग km
अभ्यारण्य (Sanctuary)
1. सरिस्का अभ्यारण्य :- अलवर
● स्थापना – 1900
● अभ्यरण्य का दर्जा – 1955
● टाइगर प्रोजेक्ट में शामिल राजस्थान का दूसरा अभ्यारण्य।
● इस अभ्यारण्य में कासना तथा कोकवाड़ी नामक पठार स्थित है।
● दर्शनीय स्थल :- नारायणी माता का मंदिर, पांडुपोल हनुमानजी का मंदिर, भृतहरि की गुफा, नील कंठेश्वर महादेव मंदिर आदि।
2. राष्ट्रीय मरु उद्यान
● स्थापना – 8 मई 1981
● विस्तार – जैसलमेर एवं बाड़मेर
● क्षेत्रफल – 3162 वर्ग km
● राजस्थान का सबसे बड़ा वन्य जीव अभ्यारण्य।
● गोडावण पक्षी की शरण स्थली।
● पीवणा व कोबरा सांप की प्रजातियां पाई जाती है।
● गोडावण पक्षी के संरक्षण के लिए ग्रेट इंडियन बस्टर्ड परियोजना 5 जून 2013 में प्रारम्भ (गहलोत सरकार)
● जैसलमेर के आकल गांव में समुद्रीय जीव जंतु व पादपों के अवरोध के रूप में आकल वुड फॉसिल पार्क स्थापित किये गए।
3. ताल छापर अभ्यारण्य :- चुरू
● काले हिरण व कुरजां पक्षी के लिए प्रसिद्ध
● इस अभ्यारण्य को गुरु द्रोणाचार्य की शरणस्थली भी कहा जाता है।
● क्षेत्रफल – 7.9 वर्ग km
● इस अभ्यारण्य में एक विशेष नर्म घास पाई जाती है जिसे मोबिया साइप्रस रोटण्डस कहते है।
● इस अभ्यारण्य में भैसोलाव व डूगोलाव प्राचीन तालाब स्थित है।
4. रामगढ़ विषधारी अभ्यारण्य :- बूंदी
● क्षेत्रफल – 307 वर्ग km
● यह जहरीले सांपो के लिए प्रसिद्ध है।
● यहाँ पर बाघ, बघेरे, रीछ, जरख, गीदड़, चीतल, चिंकारा, नीलगाय, नेवला, मोर, भेड़िया आदि पाए जाते है।
5. कुम्भलगढ़ अभ्यारण्य
● विस्तार – राजसमन्द, पाली
● रीछ, भेड़िये, जंगली सुवरो के लिए प्रसिद्ध
● भेड़िये प्रजनन के लिए प्रसिद्ध अभ्यारण्य
● इस अभयारण्य में रणकपुर का जैन मंदिर स्थित है।
● इस अभ्यारण्य में पाए जाने वाले चौसिंघा को घटेल कहा जाता है जो मथाई नदी के किनारे स्थित है।
6. सीतामाता अभ्यारण्य :- प्रतापगढ़
● क्षेत्रफल – 423 वर्ग km
● इसमे एंटीलोप प्रजाति का दुर्लभ जीव चौसिंगा एवं उड़न गिलहरी पाई जाती है।
● इसमे सागवान एवं बांस सर्वाधिक पाए जाते है।
● यह चीतलों की मातृभूमि कहलाता है।
● जाखम नदी इसी अभ्यारण्य से होकर गुजरती है।
7. सज्जनगढ़ अभ्यारण्य :- उदयपुर
● क्षेत्रफल – 5.2 वर्ग km
● राजस्थान का सबसे छोटा अभ्यारण्य
● इसे 1987 में अभ्यारण्य घोषित किया गया।
8. माउंट आबू अभ्यारण्य :- सिरोही
● क्षेत्रफल – 328 वर्ग km
● इसे 1960 में अभ्यारण्य घोषित किया गया।
● जंगली मुर्गे एवं औषधीय पादपों के लिए प्रसिद्ध।
9. फुलवारी की नाल अभ्यारण्य :- उदयपुर
● इस अभ्यारण्य से मानसी व वाकल नदी का उद्गम होता है।
● महाराणा प्रताप की कर्मस्थली के रूप में जाना जाता है।
10. भैंसरोड़गढ़ अभ्यारण्य :- चितौड़गढ़
● स्थापना – 5 फरवरी 1983
● घड़ियालों के लिए प्रसिद्ध
● इसे घड़ियालों की शरणस्थली कहते है।
● चम्बल एवं बामनी नदियां इसी अभ्यारण्य से होकर गुजरती है।
11. वन विहार अभ्यारण्य :- धौलपुर
● निर्माण – 1935-36 में धौलपुर के महाराजा उदयमान सिंह ने
● इसे प्रवासी पक्षियों की तीसरी आश्रय स्थली कहा जाता है।
● इसमे रामसागर व तालाब-ए-शाही झील स्थित है।
12. चम्बल घड़ियाल अभ्यारण्य :- कोटा
● कोटा में चम्बल नदी पर स्थित है।
● भारत का सबसे बड़ा घड़ियाल अभ्यारण्य है।
● इसकी स्थापना 1978 में राजस्थान, मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश में सयुंक्त रूप से की गई।
● इसमे घड़ियाल, मगरमच्छ, ऊदबिलाव, चीतल, नीलगाय, जरख, रीछ, जंगली सुवर, गोह आदि पाए जाते है। Forest and Wildlife Sanctuaries in Rajasthan, राजस्थान में वन एवं वन्यजीव अभयारण्य
● यह अभ्यारण्य अरावली पर्वतमाला व विंध्याचल पर्वत श्रंखला में ग्रेट बाउंड्री फाल्ट का निर्माण करता है।
13. जवाहर सागर अभ्यारण्य :- कोटा
● स्थापना – 1975
● क्षेत्रफल – 100 वर्ग km
● इसे 9 जनवरी 2012 को मुकन्दरा हिल्स नेशनल पार्क में मिला दिया गया।
14. शेरगढ़ अभ्यारण्य :- बांरा
● क्षेत्रफल – 98 वर्ग km
● सर्पों की शरणस्थली कहा जाता है।
● यहाँ सर्वाधिक धौंक के व्रक्ष पाए जाते है।
● इससे परवन नदी गुजरती है।
15. बंध बारेठा अभ्यारण्य :- भरतपुर
● इसे परिंदों का घर कहा जाता है।
● राजस्थान में सर्वाधिक जरख इसी क्षेत्र में पाए जाते है।
16. गजनेर अभ्यारण्य :- बीकानेर
● बटबड़ पक्षी के लिए प्रसिद्ध। इसे रेत का तीतर भी कहा जाता है। (वैज्ञानिक नाम – इम्पीरियल सेन्डगाऊज)
● गजनेर झील (शुद्ध पानी का दर्पण) व मीठे शाह की दरगाह स्थित।
17. डोला धावा अभ्यारण्य :- जोधपुर
● यहाँ के कृष्ण मृग प्रसिद्ध है।
18. कैलादेवी अभ्यारण्य :- करौली
● 1983 में अभ्यारण्य धोषित
● क्षेत्रफल- 676 वर्ग km
● इसमे बघेरा, रीछ, जरख, साम्भर, चीतल पाए जाते है।
● इस अभ्यारण्य को डांग अभ्यारण्य भी कहा जाता है।
19. बस्सी अभ्यारण्य :- चितौड़गढ़
● इससे गम्भीरी व बेड़च नदियां गुजरती है।
20. मछिया सफारी पार्क :- जोधपुर
● यहाँ राज्य का प्रथम वानस्पतिक उद्यान स्थापित किया जा रहा है।
21. रावली टाडगढ़ अभ्यारण्य
● विस्तार – अजमेर, पाली, राजसमन्द
● क्षेत्रफल – 495 वर्ग km
● राजस्थान का एकमात्र अभ्यारण्य जिसका विस्तार तीन संभागों में है। (अजमेर, उदयपुर एवं जोधपुर सम्भाग)
22. नाहरगढ़ अभ्यारण्य ;- जयपुर
● यहाँ राजस्थान के प्रथम जैविक पार्क की स्थापना की गई है।
● राजस्थान का पहला टाइगर सफारी पार्क – रणथम्भौर
● वर्ष 2010 में इको ट्यूरिज्म पॉलिसी के अंतर्गत यहां पर टाइगर सफारी पार्क विकसित किया गया है।
23. अम्रतादेवी कृष्णमृग पार्क :- जोधपुर
24. जयसमन्द वन्यजीव अभ्यारण्य :- उदयपुर
राजस्थान में वानिकी से सम्बंधित पुरस्कार
★ अमृता देवी विश्नोई पुरस्कार
★ वानिकी पण्डित पुरस्कार
★ वानिकी लेखन व अनुसंधान पुरस्कार
★ वृक्ष मित्र पुरस्कार
★ मेदिनी पुरस्कार
★ वन प्रहरी पुरस्कार
★ वन पालक पुरस्कार
★ वन प्रसारक पुरस्कार
★ वन्य जीव सूचना पुरस्कार
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