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प्राचीन भारत के प्रमुख शिक्षण संस्थाएं | Educational Institutions of Ancient India

प्राचीन भारत के प्रमुख शिक्षण संस्थाएं: भारतीय इतिहास की इस पोस्ट में प्राचीन भारत के शिक्षण संस्थाओं से संबंधित नोट्स एवं जानकारी उपलब्ध करवाई गई है जो सभी परीक्षाओं के लिए बेहद ही उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है Educational Institutions of Ancient India, प्राचीन शिक्षा पद्धति

प्राचीन भारत के प्रमुख शिक्षण संस्थाएं

तक्षशिला विश्वविद्यालय

◆ तक्षशिला प्राचीन भारत का प्रमुख शिक्षा का केन्द्र था।
◆ यह विश्व का पहला विश्वविद्यालय है।
◆ यह गांधार प्रदेश की राजधानी तक्षशिला में स्थित था।
◆ तक्षशिला हिन्दू व बौद्ध दोनो का प्रमुख केंद्र था।
◆ तक्षशिला में धर्मराज स्तूप भी बना हुआ है।
◆ गांधार प्रदेश का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। मगर तक्षशिला विश्वविद्यालय का उल्लेख सर्वप्रथम रामायण में हुआ था।
◆ तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना 1000 ई.पू. राम के भाई भरत ने की थी मगर इसके प्रशासक अपने पुत्र तक्ष को सौंपा गया था। अतः तक्ष के नाम से ही इसका नाम तक्षशिला पड़ा।
◆ तक्षशिला वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के रावलपिंडी जिले में स्थित है।
◆ तक्षशिला को सबसे पहले जनरल कनिंघम ने खोजा था तथा यहां उत्खनन 1912 में सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में किया गया था।
◆ जातक ग्रन्थों में भी तक्षशिला का उल्लेख मिलता है तथा इसकी जानकारी त्रिपिटकों से भी प्राप्त होती है।
◆ तक्षशिला विश्वविद्यालय को 1980 में यूनेस्को के विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है।

तक्षशिला की शैक्षिक व्यवस्था

◆ तक्षशिला विश्वविद्यालय में कुल 10500 विद्यार्थी पढ़ते थे इसमें एक आचार्य के पास सामान्यतः 100 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे कभी – कभी इनकी संख्या 500 तक पहुंच जाती थी।
◆ तक्षशिला में केवल द्विज वर्ग के विद्यार्थी ही शिक्षा ग्रहण करते थे धोनसाख जातक के अनुसार सम्पूर्ण देश से ब्राह्मण व क्षत्रियों के लड़के तक्षशिला में पढ़ने आते थे।
◆ तक्षशिला में शिक्षा प्रारम्भ करने की आयु सामान्यतः 16 वर्ष थी।

◆ तक्षशिला में विद्यार्थी आचार्यों के घर पर ही रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। ये विद्यार्थी तीन प्रकार के थे –
(1) आचारिय भागदायिक :- वे विद्यार्थी जो आचार्य को शुल्क देकर शिक्षा प्राप्त करते थे आचार्य को भाग (शुल्क) देने वाले शिष्य आचार्य के घर में ज्येष्ठ पुत्र की तरह रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। यह शुल्क 1000 कार्षापण बताया जाता था।
(2) धम्मंतेवासिक :- वे विद्यार्थी जो आचार्य को शुल्क देने में असमर्थ होते थे इन विद्यार्थियों की स्थिति धर्म शिष्य की होती थी ये आचार्य की सेवा करते हुए विद्या प्रारम्भ करते थे ये दिन में गुरु की सेवा करते थे तथा रात्रि में शिक्षा ग्रहण करते थे।
(3) बाद में शुल्क देने वाले विद्यार्थी :- ऐसे शिष्य जो प्रतिज्ञा करते थे कि वे पढ़ाई समाप्त होने के बाद आवश्यक शुल्क चुका देंगे।
नोट – तक्षशिला में ऐसे भी आचार्य थे जिन्हें निर्वाह के लिए राज्य की ओर से भूमि प्रदान की जाती थी वे उस भूमि की आय से विद्यापीठ चलाते थे ऐसी भूमि को ब्रह्यदेय कहा जाता था।

◆ कौटिल्य ने ऐसे अध्यापकों का उल्लेख किया है जिन्होंने राज्य की ओर से वेतन दिया जाता था उसे पूजा वेतन की संज्ञा दी गयी है।
◆ तक्षशिला में शिक्षा का माध्यम संस्कृत था और लेखन में ब्राही और खरोष्ठी दोनो लिपियों का प्रयोग किया जाता था।
◆ तक्षशिला अपने धर्मनिरपेक्ष अध्ययन के लिए प्रसिद्ध था।
◆ शिक्षा का उद्देश्य स्वांत सुख न कि उपाधि प्राप्त करना था।
◆ तक्षशिला विश्वविद्यालय में 60 से अधिक विषयों की शिक्षा दी जाती थी जैसे – भाषा विज्ञान, कृषि विज्ञान, योग विज्ञान, व्याकरण, खगोलशास्त्र, गणित, दर्शन शास्त्र, नक्षत्र, राजनीति, चिकित्सा, धर्मशास्त्र, इतिहास, शल्य चिकित्सा, मनोविज्ञान, भूगोल।
नोट – तक्षशिला में शिक्षा प्राप्त करने की अवधि 8 वर्ष होती थी।
◆ तक्षशिला विश्वविद्यालय धनुर्विद्या तथा वैद्यक की शिक्षा के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध था अश्वघोष के अनुसार तक्षशिला में नेत्र चिकित्सा भी होती थी।
◆ तक्षशिला के विद्यार्थियों को भोजन में मुख्य रूप से चावल दिया जाता था इसके अलावा प्रतिमाह घी, तेल और अन्य खाद्य प्रदार्थ भी दिया जाता था।

तक्षशिला विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने वाले प्रमुख व्यक्ति :- अश्वघोष, कौटिल्य, जीवक, चन्द्रगुप्त मौर्य, कौशल नरेश प्रसेनजित, चरक, काशी का राजकुमार ब्रह्मदत्त, वसुबन्धु, पाणिनि, कश्यप मातंग, कुमार जीव, विष्णु शर्मा।

◆ तक्षशिला विश्वविद्यालय के बनने वाले आचार्य :- कौटिल्य, चरक, विष्णु शर्मा

◆ कुमार जीव ने तक्षशिला विश्वविद्यालय से शल्य-चिकित्सा (सर्जन) की शिक्षा प्राप्त की थी।
◆ मगध के सम्राट बिम्बसार के राजवैद्य व गौतम बुद्ध के चिकित्सक जीवक ने भी तक्षशिला से चिकित्सा शास्त्र और शल्यशास्त्र कि शिक्षा ग्रहण की थी जीवक बाल रोग विशेषज्ञ भी था।
◆ अश्वघोष के अनुसार तक्षशिला में नेत्र चिकित्सा भी दी जाती थी।
◆ पांचवी शताब्दी में हूण आक्रमण ने तक्षशिला को नष्ट कर दिया मगर विद्या केंद्र को हानि शकों ने पहुंचाई थी।

नालन्दा विश्वविद्यालय

◆ नालन्दा विश्वविद्यालय राजगृह के निकट आधुनिक बड़गांव में है जो वर्तमान के बिहार राज्य में आती है।
◆ नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम (शक्रादित्य) ने 450 ई. में की थी।
◆ नालंदा पहले एक छोटा सा बौद्ध विहार था गुप्त वंश के शासकों ने इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था इसमें कुमारगुप्त प्रथम, नरसिंह गुप्त, बालादित्य तथा बहुगुप्त के नाम उल्लेखनीय है।
◆ हर्षवर्धन के काल में ह्वेनसांग ने नालंदा का वर्णन किया है।
◆ यह 14 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है जो 6 विहारों का समूह है।

(1) नालंदा का भवन

◆ नालंदा विश्वविद्यालय के समस्त क्षेत्र के चारों ओर ईटों की ऊंची दीवार थी।
◆ इसमें भव्य प्रवेश द्वार थे इसके भीतर विश्वविद्यालय के भव्य भवन थे।
◆ इस महाविद्यालय के आठ भवन थे इसके अलावा महाविद्यालय में 300 छोटे कमरे थे जहां प्रतिदिन व्याख्यान दिया जाता था।
◆ इसमें आचार्यों, पुरोहितों और प्रचारकों के निवास के लिए चार मंजिला भवन था, विद्यार्थियों के निवास के लिए अलग भवन थे जहां उनके अध्ययन की भी व्यवस्था थी।
◆ इस महाविद्यालय में लगभग 12 मीटर ऊंचा एक भव्य बौद्ध मंदिर भी था ह्वेनसांग ने इसे स्वयं देखा था।
◆ नालंदा विश्वविद्यालय में एक विशाल पुस्तकालय भी था इसको धर्मगंग कहते थे पुस्तकालय का भवन तीन मंजिला था इसके नाम – रत्नसागर, रत्नोदधि, रत्नरंजक।
◆ रत्नोदधि भवन 9 मंजिला था जिसमें धार्मिक और तांत्रिक ग्रंथों का संग्रह था।
◆ नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध भिक्षुओं के निवास व अध्ययन के लिए पृथक भवन और कक्ष थे।

(2) नालंदा विश्वविद्यालय के निर्वाह का भार

◆ नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने वाले छात्रों को शिक्षा नि:शुल्क दी जाती है। उनके निवास, वस्त्र, चिकित्सा सभी नि:शुल्क था।
◆ नालंदा विश्वविद्यालय में 10,000 विद्यार्थी निवास करते थे और शिक्षा ग्रहण करते थे इसके अलावा 1500 से अधिक शिक्षक, आचार्य और विद्वान भी वहां रहते थे।
◆ ह्वेनसांग के अनुसार विश्वविद्यालय का खर्च शासकों एवं अन्य याताओं द्वारा किए गए राजस्व ग्राम से चलता था, उसके अनुसार 100 गांव का राजस्व मिलता था। इत्सिंग के अनुसार यहां 300 बौद्ध भिक्षु (विद्यार्थी) और 200 गांव का राजस्व मिलता था।
◆ ह्वेनसांग के अनुसार यहां शिक्षकों की संख्या 1510थी शिक्षक व छात्र अनुपात 1:10 था जो कालांतर में 1:6 हो गया ह्वेनसांग के अनुसार छात्रों की संख्या 10,000 थी।
◆ हर्षवर्धन के समय नालंदा पर पूर्ण राजकीय नियंत्रण स्थापित हो गया इसने इस विश्वविद्यालय को 100 ग्राम राजस्व के लिए दान दिए थे।

(3) प्रवेश प्रक्रिया

◆ नालंदा में प्रवेश पाने के लिए व्याकरण हेतु विद्या (न्याय) और अभिधर्म कोश का ज्ञान आवश्यक है।
◆ प्रवेश के लिए कठिन परीक्षा होती थी द्वार पंडित के द्वारा कठिन प्रश्न पूछा जाता था 10 में से दो या तीन छात्र मुश्किल से सफल होते थे।
◆ नालंदा विश्वविद्यालय में चीन, मंगोलिया, तिब्बत, कोरिया, मध्य एशिया आदि के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे।

4. व्यवस्था

◆ यह विश्वविद्यालय एक सम्बद्ध संस्था थी इसमें सभी महाविद्यालय और विहार भी संघ के समान कार्य करते थे प्रत्येक का संचालन एक परिषद के द्वारा किया जाता था।
◆ महाविद्यालय के अधिकारियों में द्वार पंडित (प्रवेश परीक्षा लेने वाला) धर्मकोश (कुलपति), कर्मज्ञान (उपकुलपति) आदि अधिकारी थे।
◆ प्रत्येक महाविद्यालय और विहार की अपनी मुद्रा या सील होती थी जिस पर प्रायः धर्म चक्र उत्कीर्ण था।
◆ ह्वेनसांग के समय नालंदा का कुलपति शीलभद्र था।

(5) नालंदा के विद्वान और आचार्य

◆ नालंदा के विद्वान और आचार्य अपने चरित्र से आचरण-विचार से नैतिकता, आदर्श, विद्वता और गुणों से देव तुल्य थे वे ज्ञान और पाण्डित्य के लिए सर्वत्र प्रसिद्ध था उनका चरित्र उज्जवल व निर्दोष था।
◆ नालंदा के प्रसिद्ध आचार्य – नागार्जुन, आर्यदेव, धर्मपाल, चंद्रपाल, गणमूर्ति, प्रभाकर मित्र, अंग, शीलभद्र, वसुबंधु, जिनमित्र, भद्रसेन, शांतिरक्षित आदि।
◆ ह्वेनसांग के समय नालंदा का कुलपति शीलभद्र था जो बंगाल का निवासी था वह सभी संग्रहों का ज्ञाता था ह्वेनसांग ने उन से योगशास्त्र का अध्ययन किया था ह्वेनसांग ने शीलभद्र को सत्य और धर्म का भंडार कहा है। ह्वेनसांग ने कहा जब शीलभद्र मरे तब में चीन में था और उनकी मृत्यु की खबर सुनकर मेरे मुख से यही निकला “आज ज्ञान का नेत्र बंद हो गया, संसार-सागर से उतरने वाली नौका जाती रही”
◆ इत्सिंग के समय यहां का कुलपति राहुलमित्र था धर्मपाल, वीरमदेव, चंद्रकीर्ति भी कुलपति रहे है।

नालंदा से जुड़े हुए शासक

◆ नरसिंह बालादित्य ने नालंदा में 80 फीट ऊंची बौद्ध प्रतिमा बनवाई।
◆ नालंदा में कम से कम 8 कॉलेज थे।
◆ यशोवर्मा ने नालंदा में लेख लिखवाया था।
◆ हर्ष ने नालंदा के चारों तरफ चार दीवारी का निर्माण करवाया था और यहां एक ताम्र विहार भी बनवाया।
◆ धर्मपाल ने नालंदा का पुनरुद्धार करवाया और धर्मपाल ने यह भी व्यवस्था की कि विक्रमशिला विश्वविद्यालय की परिषद ही नालंदा विश्वविद्यालय का कार्य देखें।
◆ देवपाल के समय जावा और सुमात्रा के शासक बालपुत्रदेव ने यहां पर एक मठ का निर्माण करवाया।

नालंदा से बाह्य देशों को गए विद्वान

◆ आठवीं शताब्दी में चंद्रगोमिन, शांतिरक्षित एवं कश्मीर के पदमसंभव तिब्बत में धर्म प्रचार के लिए नालंदा से गए थे।
◆ देवपाल के समय ज्ञानपाल व रत्नश्री बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए तिब्बत गए थे।
◆ तिब्बत व चीन जाने वाले विद्वान कमलशील, कुमारजीव, धर्मदेव एवं गुणवर्मा थे।

(6) पाठ्यक्रम

◆ नालंदा महायान बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र था इसमें बौद्ध धर्म के 18 मतों के अलावा न्याय, चिकित्सा, योग, वेद, और सांख्य दर्शन का अध्ययन कराया जाता था।
नोट – 12 वीं शताब्दी 1193 ई. में कुतुबुद्दीन बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर नालंदा को जलाकर नष्ट कर दिया था।
◆ नालंदा के अंतिम प्रशासक शीलभद्र था। जो 1204 में तिब्बत चला गया था।
◆ इत्सिंग ने इस विश्वविद्यालय में 10 वर्ष तक ज्ञान अर्जित किया और चीन जाते समय अपने साथ 400 संस्कृत के ग्रंथ लेकर चला गया।
◆ तिब्बत के राजा गम्पो ने अपने मंत्री थानवी को शिक्षा ग्रहण करने के लिए इस विश्वविद्यालय में भेजा था।

विक्रमशीला विश्वविद्यालय

◆ यह बिहार के पथरघाट पहाड़ी पर अन्तिचक में स्थित है।
◆ इसकी स्थापना पालवंश के शासक धर्मपाल ने की थी।
◆ धर्मपाल की उपाधि विक्रमशिहा थी इस कारण इसका नाम विक्रमशिला पड़ा।
◆ यह कोशी व गंगा नदियों के संगम पर स्थित है इस कारण यह विश्वविद्यालय शीला संगम भी कहलाता है।
◆ इस विश्वविद्यालय की प्रमुख विशेषता – पाल शासक यहां के विद्यार्थियों को तरकालंकार व तर्कचक्रवर्ती की उपाधि प्रदान करते थे।
◆ इस विश्वविद्यालय में छह महाविद्यालय थे केंद्रीय कक्ष को विज्ञान भवन के नाम से जाना जाता था।
◆ यह विश्वविद्यालय तन्त्रज्ञान की शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था।
◆ यह बोध शिक्षा का भी प्रमुख केंद्र था इसमें न्याय, व्याकरण, तत्वज्ञान आदि विषयों की भी शिक्षा दी जाती थी।
◆ सभी धर्मों में तेजवाद का अध्ययन इस विश्वविद्यालय का लोकप्रिय विषय था।
◆ विक्रमशिला विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों के आचार्यों को द्वार पंडित कहा जाता था।
◆ तिब्बत लेखक तारानाथ के अनुसार दक्षिण द्वार का द्वार पंडित प्रज्ञाकरमति, पूर्वी द्वार का द्वार पंडित रत्नाकर शांति, पश्चिमी द्वार का द्वार पंडित वगीश्वर कीर्ति, उतरी द्वार का नारोपन्त था।
◆ तारानाथ के अनुसार प्रथम केंद्रीय द्वार का रत्नवज्र और द्वितीय केन्द्रीय द्वार का द्वार पंडित ज्ञानश्री मिश्र था।
◆ 11 वीं शताब्दी में यहां के कुलपति दीपंकर अतीश तिब्बत गए थे इन्होंने वहां राजनीतिक मामलों में भी हस्तक्षेप किया जिसने विग्रहपाल III व कलचुरी कर्ण के मध्य कपाल की संधि करवाई थी।
◆ 1203 में यहां के कुलपति शाक्यश्रीभद्र थे इसी के समय बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया और शाक्यश्रीभद्र तिब्बत चले गए

वल्लभी

◆ इसकी स्थापना धुव्रसेन प्रथम की बहिन के पुत्र ददा ने करवाया था।
◆ यह विश्वविद्यालय वल्लभी गुजरात में स्थित है।
◆ यह बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा का प्रमुख शिक्षा का केंद्र था।
◆ वल्लभी में गणित, विधि, साहित्य की भी शिक्षा दी जाती थी।
◆ वल्लभी विद्या के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार का प्रमुख केंद्र भी था।
◆ यहां के प्रसिद्ध आचार्य रुथिरमती व गुणमति थे।
◆ अरब आक्रमणकारियों ने वल्लभी को नष्ट कर दिया।

काशी (बनारस)

◆ यह वर्तमान में बनारस के नाम से प्रसिद्ध है जो UP में स्थित है।
◆ बनारस वैदिक काल में हिन्दू धर्म की शिक्षा का प्रमुख केंद्र था।
◆ काशी में वेद, वेदांग, इतिहास, पुराण, ज्योतिष आदि की शिक्षा दी जाती थी।
◆ काशी का उल्लेख भविष्य पुराण में किया गया है।
◆ अलबरूनी ने काशी में हिन्दू शास्त्रों का अध्ययन किया था।
◆ प्रसिद्ध कश्मीरी कवि श्री हर्ष ने नैषध चरित की रचना काशी में ही कि थी।

उदयन्तपुरी

◆ इस विश्वविद्यालय की स्थापना पालवंश के शासक धर्मपाल ने 8 वीं शताब्दी में कई थी।
◆ यह विश्वविद्यालय हिरण्य प्रभात व पंचानन नदी तट पर बिहार में स्थित है।
◆ यहां बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध विद्वान थे।
◆ इस विश्वविद्यालय ने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया था।

कांची

◆ इसकी स्थापना पल्लव वंश के शासकों ने की थी यह पल्लवों की राजधानी भी थी।
◆ कांची के प्रसिद्ध आचार्य महाकवि दण्डिन, वात्स्यायन और दिड्नाग थे।
◆ कांची दक्षिण भारत में शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था।

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