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सामाजिक अध्ययन की संकल्पना एवं प्रकृति | Concept and Nature of Social Studies

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सामाजिक अध्ययन की संकल्पना एवं प्रकृति | Concept and Nature of Social Studies

सामाजिक अध्ययन की उत्पति (Origin of Social Studies) –

  • पहली बार 19वीं सदी में ब्रिटेन से एक विचारधारा आई जिसमें भूगोल, इतिहास, नागरिक शास्त्र व अर्थशास्त्र को सम्मिलित करते हुए सामाजिक अध्ययन नाम दिया गया।
  • पहली बार 1892 में अमेरिका ने इसकी विषय वस्तु को विद्यालयों में पढ़ाना शुरू किया।
  • 1911 ई. में ब्रिटेन की कमेटी ऑफ टेन की सिफारिशों के आधार पर सामाजिक अध्ययन में समाजशास्त्र की विषयवस्तु भी सम्मिलित की गई।
  • वर्तमान में सामाजिक अध्ययन में 6 मुल विषय है – भूगोल, इतिहास, नागरिकशास्त्र, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र।
  • भारत में सामाजिक अध्ययन की विषय-वस्तु 1916 में अंग्रेजों के जमाने में लाई गई जिसके विकास का प्रयास 1921 में किया गया और सबसे सफल प्रयास 1934 में Social Studies Commission के माध्यम से हुआ।
  • स्वतंत्रता के बाद 1952-53 में मुदालियर आयोग/लक्ष्मण स्वामी आयोग ने अपनी सिफारिशें दी इस आधार पर 1955 ई. से भारत के विद्यालयों में इसको अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाने लगा।

सामाजिक अध्ययन का अर्थ (Meaning of Social Studies) –

  • सामाजिक अध्ययन शब्द दो शब्दों सामाजिक$अध्ययन से बना है। इसमें सभी सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। अर्थात् ‘‘समाज का समाज के लिए, समाज के द्वारा अध्ययन।’’
  • सामाजिक अध्ययन का मानव सभी दृष्टिकोण से सम्पूर्ण अध्ययन प्रस्तुत करता है।

सामाजिक अध्ययन की विशेषताएँ (Social Studies Features) –

  1. सामाजिक अध्ययन मानव तथा उसके समुदायों का अध्ययन है।
  2. सामाजिक अध्ययन छात्र-छात्राओं को उस वातावरण को समझने तथा उसकी व्याख्या करने में सहायता करता है जिसमें वे पैदा व विकसित हुए है।
  3. सामाजिक अध्ययन में मानव के सामाजिक एवं भौतिक वातावरण के साथ स्थापित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
  4. सामाजिक अध्ययन में मानव की सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
  5. सामाजिक अध्ययन में विभिन्न सामाजिक विज्ञानों के आधारभूत सामाजिक तत्वों का मिश्रण किया जाता है।
  6. सामाजिक अध्ययन में व्यावहारिकता पर बल दिया जाता है।
  7. यह मानवीय संबंधों पर बल देता है।
  8. सामाजिक अध्ययन में विद्यार्थियों का सामाजिकरण किया जाता है।
  9. इसके द्वारा अतीत तथा वर्तमान में मानवता को प्रभावित करने वाले मामलों समस्याओं तथा ढ़ाँचों का अध्ययन सम्भव होता है।
  10. सामाजिक अध्ययन इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि हमारे दैनिक जीवन पर विश्व की घटनाओं का क्या प्रभाव पड़ा है।

सामाजिक अध्ययन की प्रकृति (Nature of social studies) –

  1. सामाजिक अध्ययन का क्षैत्र व्यापक है।
  2. सामाजिक अध्ययन का सम्बन्ध सभी विषयों से होता है।
  3. सामाजिक अध्ययन विषय के अध्ययन से बालकों में सामाजिकता का विकास होता है।
  4. इसके अध्ययन से बालकों में सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  5. इसके अध्ययन से बालकों में आत्म विश्वास एवं आत्मनिर्भरता का विकास होता है।
  6. इसके अध्ययन से प्रत्येक ज्ञान एवं सूचना स्पष्ट होती है।
  7. इसके अपने सिद्धान्त होते है।
  8. इसकी प्रकृति एकीकृत है।

सामाजिक अध्ययन का क्षैत्र (Area of Social Studies) –

  • सामाजिक अध्ययन में मानवीय समस्याओं, सम्बन्धों, तत्कालीन घटनाओं तथा समसामयिक मामलों का अध्ययन किया जाता है। इसमें मानव के आर्थिक, नागरिक, सामाजिक तथा धार्मिक आदि सभी पक्षों का अध्ययन किया जाता है। इसमें सम्पूर्ण मानव जीवन तथा उसके सामाजिक एवं भौतिक पर्यावरण के साथ स्थापित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
  • आधुनिक विचारधारा के अनुसार सामाजिक अध्ययन के अन्तर्गत सामाजिक विज्ञानों के सरलीकृत एवं पुनः संगठित सामग्री के साथ-साथ नागरिका की शिक्षा, अन्तर्राष्ट्रीय संबंध, विवादास्पद विषय आदि का भी समावेश हो गया है अर्थात् सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र विशाल एवं विस्तृत है।
  1. मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन – सामाजिक अध्ययन में समाज का अध्ययन किया जाता है। इसमें अध्ययन का केन्द्र बिन्दु मानव होता है। इसमें मनुष्य का मनुष्य, दुसरी संस्थाओं, विश्व के साथ सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन – सामाजिक अध्ययन किसी समाज नगर या देश तक सीमित नहीं है यह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक फैला हुआ है। इसमें मानव के अन्तर्राष्ट्रीय हितों का अध्ययन किया जाता है। जिससे विश्व-बन्धुत्व की भावना का विकास होता है।
  3. सामाजिक पर्यावरण का अध्ययन – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः इसे सामाजिक पर्यावरण का ज्ञान होना आवश्यक है। इसमें सामाजिक पर्यावरण को समझने वाले विषय जैसे- नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, आदि का अध्ययन करके मनुष्य के चरित्र व सामाजिक आदर्शो का ज्ञान होता है जिससे वह एक अच्छा नागरिक बन पाता है।
  4. सामाजिक गुणों का विकास – सामाजिक अध्ययन मानव के सामाजिक गुणों के विकास में अहम भूमिका अदा करता है। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों में उदारता, सहयोग, सहानुभूति, उचित आदतों, कुशलताओं का विकास करके उन्हें योग्य नागरिक बनाना है।
  5. तत्कालीन घटनाओं का अध्ययन – मानव जीवन से संबंधित तत्कालीन घटनाओं का अध्ययन सामाजिक अध्ययन में किया जाता है। इसके अध्ययन से भूतकाल व वर्तमान मो समझने में सहायता मिलती है।

सामाजिक अध्ययन की विषय-वस्तु एवं उद्देश्य (Content and Objectives of Social Studies) –

1 भूगोल – उच्च प्राथमिक स्तर तक की विषय वस्तु में मानव-भौतिक भूगोल की विषयवस्तु सम्मिलित की जाती है। इसमें मानव के जीवन तथा भौतिक भूगोल में से महाद्वीप, महासागर, पहाड़, नदियाँ, मरूस्थल जैसी संरचनाओं के साथ प्राकृतिक घटनाएँ (दिन-रात बनना, ऋतुएँ बनना, सूय-चन्द्रग्रहण, ज्वार भाटा) आदि का अध्ययन किया जाता है।

भूगोल की विषय वस्तु का उद्देश्य (Object of Geography) –

  1. बालक को भौतिक पर्यावरण की समझ प्रदान करना।
  2. बालक को पर्यावरण सुरक्षा के लिए तैयार करना।
  3. प्राकृतिक घटनाओं के महत्व को समझाना।
  4. राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं का ज्ञान करवाना।

2 इतिहास – इसमें सभ्यताओं के काल से लेकर आधुनिक काल के बीच के काल से जुड़ी हुई उन घटनाओं को सम्मिलित किया जाता है जो आदर्श घटनाएँ थी। साथ ही महान शासकों का जीवन व महापुरूषों का योगदान जैसी विषय वस्तु का समावेश है।

इतिहास की विषय वस्तु का उद्देश्य (Object of history) –

  1. विकास क्या और कैसे हुआ की अवधारणा को समझाना।
  2. हमारी परम्पराएँ एवं सांस्कृतिक धरोहर से संबंधित संरक्षण विचारों को पैदा करना।
  3. इतिहास काल की घटनाओं से सीख लेते हुए दुबारा ऐसी गलती न हो पाये के विचार पैदा करना।

3 नागरिकशास्त्र- उच्च प्राथमिक स्तर तक की विषय-वस्तु में नागरिक शास्त्र के नाम से राजनीति विज्ञान एवं लोक प्रशासन से संबंधित सामान्य विषय वस्तु सम्मिलित की जाती है।

नागरिकशास्त्र की विषय वस्तु के उद्देश्य (Objectives of Civics) –

  1. नागरिक शास्त्र की विषय-वस्तु बालक को सुनागरिक के रूप में स्थातिप करती है।
  2. बालक को उसके अधिकार और कर्तव्यों का ज्ञान करवाती है।
  3. बालक को राष्ट्र प्रेम सीखाने, राष्ट्र व राज्यों के संबंधों की जानकारी देती है।
  4. बालक को अनुशासित व नियंत्रित बनाती है।

4 अर्थशास्त्र – उच्च प्राथमिक स्तर तक अर्थशास्त्र की विषय वस्तु में विभिन्न प्रकार की आय के संसाधन एवं उसके स्त्रोत तथा राष्ट्रीय और व्यक्तिगत आय की जानकारियाँ देने वाली विषय वस्तु जोड़ी जाती है।

अर्थशास्त्र की विषय वस्तु के उद्देश्य (Objectives of Economics) –

  1. बालक को आय के संसाधनों का ज्ञान प्रदान करना।
  2. बालक को सामाजिक, आर्थिक सम्पन्नता प्रदान करना।
  3. धन के नियोजन को समझाना।
  4. बालक को राष्ट्रीय आय की समझ प्रदान करना।

5 समाजशास्त्र- समाजशास्त्र में परिवार व समाज से संबंधित जानकारियों को सम्मिलित किया जाता है, समाज की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए पारिवारक व सामाजिक संबंधों का उल्लेख किया जाता है।

समाजशास्त्र की विषय वस्तु के उद्देश्य (Objectives of Sociology) –

  1. बालक को सामाजिक प्राणी के रूप में स्थापित करना।
  2. सामाजिक संरचना का ज्ञान प्रदान करना।
  3. समाज में हमारे कर्तव्यों का क्या महत्व है, इसे स्पष्ट करना।

6 दर्शनशास्त्र- उच्च प्राथमिक स्तर तक सामान्य दर्शन की जानकारियाँ होती है, जैसे- जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, गाँधी दर्शन, सांख्य दर्शन आदि।

दर्शनशास्त्र का उद्देश्य – बालक को धार्मिक कट्टरवाढ़िता से ऊपर उठकर तर्कशील व चिन्तनशील बनाना।

सामाजिक अध्ययन की अवधारणाएँ (Social Studies Concept) –

  • एम.पी. मुफात के अनुसार – ‘‘जीवन जीना एक सुन्दर कला है जो सामाजिक अध्ययन की विषय वस्तु से ही आती है।’’
  • जेम्स हाॅमिंग के अनुसार – ‘‘सामाजिक अध्ययन ऐतिहासिक, भौगोलिक तथा सामाजिक सम्बन्धों तथा अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन है।’’
  • जारोलामिक के अनुसार – ‘‘सामाजिक अध्ययन मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन है।’’
  • पेस्ले के अनुसार – ‘‘सामाजिक अध्ययन सामाकि विज्ञान के आधारभूत तत्वों का आध्ययन है।’’
  • शब्दकोष के अनुसार – ‘‘सामाजिक अध्ययन भूगोल, इतिहास, नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र आदि का संकलन मात्र नहीं है बल्कि इनकी विषय वस्तु में से संग्रहित वह जानकारी है जो व्यक्ति को जीवन की दिशा देती है।’’

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