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राजपूत युग व राजपूतों की उत्पति | Rajput Period & Origin of Rajputs

राजपूत युग व राजपूतों की उत्पति: इतिहास की इस पोस्ट में राजपूत युग एवं राजपूतों की उत्पति से संबंधित नोट्स एवं महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई गई है जो सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बेहद ही उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है Rajput Period & Origin of Rajputs

राजपूत युग व राजपूतों की उत्पति

◆ हर्षवर्धन की मृत्यु (606-647) के बाद से लेकर 12 वीं शताब्दी तक के काल को राजपूत काल माना जाता है ।
◆ स्मिथ के अनुसार – हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद से तुर्कों के आधिपत्य तक राजपूत इतने प्रभावशाली हो गए थे की सातवीं शताब्दी से 12 वीं शताब्दी तक के काल को राजपूत काल कहा गया ।

राजपूतों की उत्पति

◆ राजपूत शब्द संस्कृत के राजपुत्र शब्द का विकृत रूप है ।
◆ वेद व उपनिषदों में राजन्य शब्द का प्रयोग किया गया है ।
◆ चंदरबरदाई कृत पृथ्वीराज रासो में राजपूत शब्द जाति विशेष के लिए नहीं, यह यौद्धा व क्षत्रिय राजकुमारों के लिए उपयुक्त किया गया है ।
◆ कालिदास, बाणभट्ट, और चाणक्य के ग्रंथों में राजपुत्र शब्द को ही मुसलमानों के द्वारा राजपूत शब्द में प्रणीत किया है।
◆ राजपूत स्वयं को वैदिक आर्यों से संबंधित सूर्य व चंद्रवंशी मानते है ।

राजपूतों की उत्पति के संबंध में मत

1. अग्निकुंड का सिद्धांत

◆ अग्निकुंड का आयोजन आबू पर्वत पर वशिष्ट मुनि के द्वारा किया गया था इस हवन कुंड से चार यौद्धा – प्रतिहार, परमार, चालुक्य व चाहमान की उत्पति हुई ।
◆ इनका जन्म अग्निकुंड से हुआ है इस कारण ये अपने आपको अग्निवंशीय कहते है।
◆ अग्नि कुंड का समर्थन सर्वप्रथम चंदरबरदाई ने किया है, इसने अपने ग्रंथ पृथ्वीराज रासो में किया था।
◆ मुहणोत नैणसी ने अग्नि कुंड का समर्थन ‘मारवाड़ रा परगना री विगत’ में किया है।
◆ सूर्यमल मिश्रण ने अभि अग्नि कुंड का समर्थन किया है, उन्होंने अपने ग्रंथ वंश भास्कर में यह उल्लेख किया है ।
◆ पद्मनाभ ने भी अग्नि कुंड का समर्थन अपने ग्रंथ नवसंहसाक चरित में किया है ।
◆ जोधराज ने भी अग्निकुंड के सिद्धांत का समर्थन अपने ग्रंथ हम्मीर रासौ में किया है
◆ अग्नि कुंड सिद्धांत का अभिलेखीय स्त्रोत सीसाण अभिलेख (अजमेर) में है।

अग्निकुंड सिद्धांत का खण्डन

◆ अग्नि कुंड के सिद्धांत का खण्डन निम्न लिखित इतिहासकार करते है –
◆ गौरी शंकर औझा ने इसका खण्डन अग्नि पुराण ग्रंथ के अनुसार करता है।
◆ दशरथ शर्मा – अग्निकुंड का सिद्धांत चारण व भाटों की मानसिक कल्पना बताया है।
◆ डॉ. गोपीनाथ शर्मा – गोपीनाथ शर्मा ने भी इस सिद्धांत का विरोध किया और चंद्रबरदाई की बात को काल्पनिक बताया।

2. विदेशी उत्पति का मत

राजपूतों को विदेशी मानने वाले प्रमुख इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड, ईश्वरी प्रसाद, विलियम कुक, वी.ए.स्मिथ, तथा डॉ. डी.आर.भंडारकर है।

1.  कर्नल जेम्स टॉड

◆ कर्नल टॉड राजपूतों को विदेशी सिथियन जाति की संतान मानता है ।
◆ टॉड ने बताया की दोनों जातियों (राजपूत व सिथियन) की सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति की समानता को आधार बताया गया है।
◆ कर्नल टॉड ने बताया की दोनों ही जातियों में सती प्रथा, अश्व पूजा, अश्वमेघ, शस्त्र पूजा, व सूर्य उपासना दोनों में समान थी।

2. वी.ए.स्मिथ

इतिहासकार वी. ए. स्मिथ ने राजपूतों को हूणों की संतान बताया है ।

3. डॉ. डी. आर. भंडारकर

◆ डॉ. भंडारकर चारों अग्नि वंशीय (प्रतिहार, परमार, चौहान, चालुक्य) को विदेशी सिद्ध करने का प्रयास किया है ।
◆ डॉ. भंडारकर का मानना है की हूण जाति के साथ भारत में खज जाति का भी आगमन हुआ था और गुर्जर इन्हीं खजो की संतान है ।
नोट – इतिहासकार विलियम कुक व कनिघमं ने भी टॉड का समर्थन करते हुए राजपूतों का उद्भव शक व कुषाणों से हुआ है ।

3. ब्राह्मणों से उत्पति

राजपूतों की उत्पति ब्राह्मणों से हुई है इसका समर्थन डॉ. डी.आर.भंडारकर, गोपीनाथ शर्मा करता है ।

डॉ. डी.आर.भंडारकर

◆ डॉ. डी.आर.भंडारकर के अनुसार राजपूतों की उत्पति किसी विदेशी ब्राह्मण से बताई है।
◆ मंडोर शिलालेख के अनुसार प्रतिहार ब्राह्मण वंशीय थे इस शिलालेख के अनुसार प्रतिहार ब्राह्मण हरीशचन्द्र व उसकी पत्नी भद्धा की संतान है ।

डॉ. गोपीनाथ शर्मा

◆ डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार मेवाड़ के गुहिल नागर जाति के ब्राह्मण थे ।
◆ बिजौलीया अभिलेख के अनुसार राजपूत वत्सगौत्रीय ब्राह्मण थे ।

4. सूर्यवंशी / चंद्रवंशी सिद्धांत

◆ राजपूतों को सूर्यवंशी व चंद्रवंशी मानने वाले प्रमुख इतिहासकार – डॉ. दशरथ शर्मा, जगदीश सिंह गहलोत व डॉ. गौरी शंकर औझा है।
◆ श्री जगदीश सिंह गहलोत :- श्री जगदीश सिंह गहलोत अपनी पुस्तक राजपूतों का इतिहास में राजपूतों को सूर्यवंशी व चंद्रवंशी मानता है।
◆ डॉ. दशरथ शर्मा :- डॉ. दशरथ शर्मा ने अपनी पुस्तक राजस्थान थ्रु द एजेज में राजपूतों को सूर्यवंशी व चंद्रवंशी मानता है।

◆ अग्नि पुराण के अनुसार चंद्रवंशी कृष्ण व अर्जुन सूर्यवंशी राम व लवकुश के वंश राजपूत है।
◆ हर्षनाथ अभिलेख में चौहानो को सूर्यवंशी बताया है।
◆ वैदिक आर्यों / क्षत्रियों का सिद्धांत :- डॉ. गौरीशंकर औझा, सी. वी. वैद्य

गुर्जर प्रतिहारों की उत्पति

गुर्जर प्रतिहारों की उत्पति के संबंध में मत

गुर्जर प्रतिहारों की उत्पति के संबंध में अलग – अलग इतिहासकारों का अलग – अलग मत है ।

 ऐहोल अभिलेख

◆ यह अभिलेख बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशीन द्वितीय का है।
◆ यह अभिलेख इस वंश की प्राचीनता को बताता है ।
◆ इसी अभिलेख में सर्वप्रथम गुर्जर जाति का उल्लेख मिलता है।

जोधपुर का बौक अभिलेख

◆ यह अभिलेख जोधपुर से मिला है।
◆ इसी अभिलेख में गुर्जर प्रतिहारों का अधिवास मारवाड़ में लगभग 6 वीं शताब्दी के दूसरे चरण में हुआ है।
◆ नील कुंड, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा है।
◆ स्कन्द पुराण में पाँच द्रविड़ों में प्रतिहारों का उल्लेख मिलता है।
◆ नोट – डॉ. आर.सी.मजूमदार के अनुसार प्रतिहारों ने 6 वीं शताब्दी से लेकर 11 वीं शताब्दी तक अरब आक्रमणकारीयों के लिए बांधक का कार्य किया।
◆ नोट – अग्नि कुंड से उत्पन्न राजपूतों में सबसे शक्तिशाली प्रतिहार ही थे।

डॉ. आर.सी. मजूमदार

◆ डॉ. आर.सी.मजूमदार के अनुसार प्रतिहार शब्द का प्रयोग मंडोर की प्रतिहार जाति के लिए हुआ है।
◆ इनके अनुसार प्रतिहार अपने आपको लक्ष्मण के वंशज मानते है।

ग्वालियर अभिलेख

◆ यह प्रतिहारों का सबसे महत्वपूर्ण अभिलेख है
◆ यह अभिलेख ग्वालियर से मिला है।
◆ यह अभिलेख मिहिरभोज का है।
◆ इस अभिलेख में नागभट्ट को राम का प्रतिहार व विशुद्ध क्षत्रिय कहा है।
◆ इसमें राजनीतिक उपलब्धियां व वंशावलियाँ मिलती है ।

प्रमुख इतिहासकारों का मत

राजशेखर

◆ यह संस्कृत का प्रसिद्ध विद्वान है।
◆ यह महेन्द्रपाल प्रथम व उसके पुत्र महिपाल प्रथम के दरबार में रहता था।
◆ राजशेखर महेन्द्रपाल का राजगुरु था।
◆ राजशेखर के द्वारा लिखी गई प्रमुख पुस्तकें – कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांशा, विद्वशाल भंजिका, बाल रामायण, भुवन कोश, हरविलास।

डॉ. गौरीशंकर औझा

◆ ये सिरोही के रहने वाले थे और इनका जन्म भी सिरोही में ही हुआ था।
◆ इनका जन्म 15 सितंबर 1863 को सिरोही राज्य के रोहेड़ा ग्राम में हुआ।
◆ इनकी उच्च शिक्षा बम्बई में हुई थी।
◆ ये सबसे अधिक कवि श्यामलदास से प्रभावित थे।
◆ इनको उदयपुर के विक्टोरिया हॉल के पुस्तकालय व म्यूजियम का अध्यक्ष बनाया।
◆ औझा ने प्राचीन लिपीमाला नामक ग्रंथ लिखा था।
◆ इन्होंने 1911 में सिरोही का इतिहास लिखा।
◆ इनको 1914 में रायबहादुर का खिताब मिला
◆ 1933 ई. में ओरियंटल कॉन्फ्रेंस बड़ौदा में इतिहास विभाग का अध्यक्ष बनाए गए।
◆ 1937 ई. में साहित्य वाचस्पति की पदवी व काशी विश्वविद्यालय से डी. लिट. की उपाधि प्रदान की।
◆ औझा के द्वारा लिखित प्रमुख राज्यों का इतिहास – सोलंकियों का प्राचीन इतिहास, सिरोही का इतिहास, राजपूताने का प्राचीन इतिहास, उदयपुर का इतिहास, डूंगरपुर का इतिहास, बीकानेर – जोधपुर – बांसवाड़ा का इतिहास
◆ गौरीशंकर औझा ने कर्नल जेम्स टॉड का जीवन चरित्र नामक ग्रंथ लिखा ।
◆ औझा प्रतिहारों को सूर्यवंशी बताता है।

कैनेडी का मत

◆ ये इंग्लैंड के रहने वाले थे।
◆ इन्होंने प्रतिहारों को ईरानी मूल का बताया
◆ प्रतिहारों के रीति-रिवाज व ईरानियों के रीति-रिवाज एक समान बताए।
◆ कैनेडी के अनुसार प्रतिहार व ईरानी दोनों ही सूर्य के उपासक थे।

दशरथ शर्मा

◆ इनका जन्म चुरू में 1930 में हुआ
◆ 1943 में इनको आगरा विश्वविद्यालय में डी.लिट की उपाधि प्रदान की।
◆ 1945 में सार्दुल राजस्थानी रिसर्च इन्सटीट्यूट की स्थापना की।
◆ इन्होंने अर्ली चौहान डायनेस्टी नामक एक शोध निबन्ध लिखा ।
◆ 1962 में राजस्थान थ्रु दी एजेज नामक ग्रंथ लिखा जिसमें गुर्जरों का क्षेत्र गुर्जरत्रा का उल्लेख किया है ।

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