Join WhatsApp GroupJoin Now
Join Telegram GroupJoin Now

जैन धर्म नोट्स | Jain Dharm Notes

जैन धर्म नोट्स (Jain Dharm Notes): भारतीय इतिहास की इस पोस्ट में जैन धर्म से संबंधित नोट्स एवं महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई गई है जो सभी परीक्षाओं जैसे – UPSC IAS/IPS, SSC, Bank, Railway, RPSC RAS, School Lecturer, 2nd Grade Teacher, RTET/REET, CTET, UPTET, HTET, Police, Patwar एवं अन्य सभी परीक्षाओं के लिए बेहद ही उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है महावीर स्वामी पार्श्वनाथ

जैन धर्म नोट्स | Jain Dharm Notes

👉🏻 छठी शताब्दी ई.पू. में जैन धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ।
👉🏻 इसके प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव (आदिनाथ) थे, तथा 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ हुए।
👉🏻 ऋग्वेद में ऋषभदेव व अरिष्टनेमि दो तीर्थकर का उल्लेख है।

पार्श्वनाथ

👉🏻 पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23 वें तीर्थकर थे
👉🏻 माता – वामा, पत्नी – प्रभावती
👉🏻 पार्श्वनाथ बनारस के राजा अश्वसैन के पुत्र थे
👉🏻 30 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग करने के पश्चात 83 दिनों की तपस्या के पश्चात् कैवल्य की प्राप्ति हुई।
👉🏻 100 वर्ष की आयु में बंगाल के सम्मेद शिखर पर्वत पर इन्होने शरीर त्याग किया।
👉🏻 चार उपदेश – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह
👉🏻 पार्श्वनाथ के अनुयायियों को ‘निर्ग्रंथ’ कहा जाता था
👉🏻 पार्श्वनाथ का प्रतीक चिन्ह सर्प था।

यह भी पढ़ें>> मौर्य वंश नोट्स पीडीएफ़

महावीर स्वामी

👉🏻 जैन धर्म के 24 वें व अंतिम तीर्थकर
👉🏻 जन्म 540/599 ई.पू. में वैशाली के निकट कुण्डग्राम में हुआ।
👉🏻 पिता का नाम सिद्धार्थ था जो ज्ञातृक क्षत्रियों के संघ के प्रधान थे।
👉🏻 माता का नाम त्रिशला अथवा विदेहदत्ता था। जो कि लिच्छिवी प्रमुख चेटक की बहन थी।
👉🏻 महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था।
👉🏻 महावीर का नाम कुण्डिन्य गौत्र की कन्या यशोदा से हुआ।
👉🏻 महावीर की पुत्री का नाम प्रियशर्दना (अणोज्जा) था। जिसका विवाह जामालि से हुआ।
👉🏻 जमालि महावीर का प्रथम शिष्य था। जिसने बाद में महावीर से मतभेद होने पर बहुरतवाद सम्प्रदाय चलाया।
👉🏻 30 वर्ष की आयु में अग्रज नंदिवर्धन से आज्ञा लेकर गृह त्याग किया। नालंदा में उनकी भेट मक्खिलपुत गौशाल से हुई तथा गौशाला ने ही बाद में आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना की थी।
👉🏻 12 वर्ष की तपस्या के पश्चात् महावीर स्वामी को जुम्भिक ग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे कैवल्य की प्राप्ति हुई। तत्पश्चात् इन्हे केवलिन, जिन, अर्हंत, निर्ग्रंथ व महावीर कहा गया।
👉🏻 आचराग सूत्र व कल्पसूग में महावीर की कठोर तपस्या का वर्णन है।
👉🏻 महावीर ने प्रथम उपदेश राजगृह के वितुलाचल पर्वत पर किया । बिबिसार व अजातशत्रु भी जैन धर्म के पोषक थे।
👉🏻 चन्द्रगुप्त मौर्य ने अंतिम दिनों मे जैन धर्म ग्रहण कर लिया था व श्रवणबेलगोला चले गये थे।
👉🏻 72 वर्ष की आयु में 468/527 ई.पू. में इनकी मृत्यू पावापुरी (कुशीनगर, यु.पी.) में हो गई। उनकी मृत्यु को जैनमत मे निर्वाण कहा गया है
👉🏻 महावीर स्वामी ने जीवन काल में ही धर्म के प्रचार के लिए जैन संघ की स्थापना कर दी थी। शिष्यों को गणों में विभाजित कर दिया था, तथा इन गणों का प्रधान गणधर कहलाता था। इनकी संख्या 11 थी। महावीर की मृत्यू के समय केवल सुधर्मन ही जीवित बचा था। जो महावीर के पश्चात् संघ का प्रथम अध्यक्ष बना।

यह भी पढ़ें>> मुगल साम्राज्य नोट्स पीडीएफ़

महावीर की शिक्षाएँ

👉🏻 पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं के लिए चार व्रतों का विधान किया था। अहिंसा, सत्य, अस्तेय तथा अपरिग्रह परन्तु महावीर ने इसमें पांचवा व्रत ब्रह्मचर्य भी जोड़ दिया।
👉🏻 पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं को वस्त्र पहनने की अनुमति दी परन्तु महावीर ने उन्हे नग्न रहने का उपदेश दिया।
👉🏻 जैन संघ में चार प्रकार के सदस्य होते थे-
1.भिक्षू 2.भिक्षुणी- सन्यासी जीवन 3.श्रावक 4.श्राविका – ग्रहस्थ जीवन
👉🏻 सन्यासियों के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रहमचर्य जैसे पांच महाव्रत का पालन किया जाना आवश्यक था।
👉🏻 गृहस्थियों के लिए उपर्युक्त ही व्रतों का पालन सरल ढंग से करने का विधान था, एवं इन्हे पांच अणुव्रत कहते थे।
👉🏻 जैन धर्म के अनुसार ईश्वर सृष्टि के निर्माण के लिए उत्तरदायी नहीं है। अतः सृष्टि शाश्वत कानूनों से परिचालित होती है। इस विश्व में अनेक चक्र होते है। इसका उत्थान्न काल ऊहसर्पिणी तथा पतन काल अवसर्पिणी कहलाता है। इस चक्र में 63 श्लाका (महान्) पुरूष, 24 तीर्थकर, 12 चक्रवती सम्राटों से मिलकर बनता है एवं कल्पवृक्ष इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
👉🏻 जैन धर्म नास्तिक है एवं सांख्य दर्शन के निकट है।
👉🏻 जैन धर्म के अनुसार सृष्टि का निर्माण जीव तथा अजीव के संयोग से होता है। जैन धर्म के अनुसार यह संसार 6 द्रव्यों से जीव, आकाश, धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल निर्मित होता है।
👉🏻 पुद्गल वह तत्व होताहै। जिसका संयोग तथा विभाजन हो सके, इसका सबसे छोटा भाग गणु कहलाता है। आत्मा पुद्गल कर्म से ढक जाती है, तथा आत्मा में बदलाव आ जाता है एवं एक रंग उत्पन्न होता है, जिसे ‘‘लैस्य’’ कहा जाता है।
👉🏻 जैन धर्म के दर्शन को अनेकांतवाद, स्यादवाद, सप्तभंगी सिद्धान्त के नाम से जाना जाताहै।
👉🏻 जैन धर्म के दर्शन में मोक्ष की प्राप्ति के लिए त्रिरत्न का अनुसरण आवश्यक माना जाता है।
1.सम्यक ज्ञान – संदेह रहित व वास्तविक ज्ञान जो की पूर्ण हो
2.सम्यक दर्शन – जैन तीर्थकरों एवं उनके उपदेशों में सत् के दर्शन करना एवं उनके प्रति श्रद्धा रखना
3.सम्यक चरित्र – पंच महाव्रत का पालन| अर्थात सुख एवं दुख के प्रति उदासीनता का भाव तथा नैतिक एवं सदाचारपूर्ण सरल एवं संयमी जीवन-यापन करना
उपर्युक्त त्रिरत्नों का अनुसरण करने से जीव की ओर कर्म का बहाव रूक जाता है। इसे सबंर कहा जाता है। तत्पश्चात् पहले से जीव में व्याप्त कर्म समाप्त होता है, इस अवस्था को निर्जरा कहते है। जब कर्म पूरी तरह से जीव से मुक्त हो जाता है, तो वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है, तथा जीव अनंत चतुष्टय में प्रवेश करता है।

यह भी पढ़ें>> वैदिक काल नोट्स पीडीएफ़

जैन धर्म में विभाजन

👉🏻 सुर्धमन के पश्चात् जम्भूस्वामी संघ के अध्यक्ष बने। ये अंतिम केवलिन थे। मगध में पड़े अकाल के समय कुछ भिक्षु स्थूलभ्रद के नेतृत्व में मगध में ही रह गये। दक्षिण से लौटकर भद्रबाहू ने स्थूलभ्रद का नेतृत्व मानने से इन्कार कर दिया तथा भद्रबाहु ने दिगम्बर सम्प्रदाय का गठन किया तथा स्थूलभ्रद ने दिगम्बर सम्प्रदाय का गठन किया तथा स्थूलभ्रद के शिष्य श्वेताम्बर कहलाये।
👉🏻 दिगम्बर व श्वेताम्बर सम्प्रदाय में निम्न भेद थे-
1.दिगम्बर – इस संप्रदाय के साधुओं के लिए सम्पति के पूर्ण बहिष्कार का प्रावधान था ये नग्न रहे थे एवं भद्रबाहु ने इनका नेतृत्व किया
2.श्वेताम्बर – इस संप्रदाय के साधु श्वेत वस्त्र धरण करते थे इनका नेतृत्व स्थूलबाहु ने किया
👉🏻 श्वेताम्बर 19वें तीर्थकर मल्लिनाथ को स्त्री मानते थे जबकि दिगम्बर पुरूष मानते थे।
👉🏻 जैन धर्म में महावीर की शिक्षाएं आगम में संकलित है।

जैन सभाएं

1.प्रथम जैन सभा – 322 – 298 ई.पू. – पाटलिपुत्र, अध्यक्ष स्थूलभद्र
2.द्वितीय जैन सभा -300 – 313ई.पू.- मथुरा, अध्यक्ष – आर्य स्कंदिल
3.तृतीय जैन सभा – 453 ई. – स्थान, वल्लभी (गुजरात), अध्यक्ष- देवर्धिगणि

जैन धर्म के सरंक्षक शासक

अजातशत्रु, उदयन (मगध), खारवेल (कलिंग), चन्द्रगुप्त मौर्य (मगध), बिम्बसार, बिन्दुसार

👉🏻 वर्धमान के तप का वर्णन ‘आचरांग सूत्र’ से ज्ञात होता है
👉🏻 जैन धार्मिक ग्रंथ आगम कहलाते है
👉🏻 बौद्ध साहित्य में महावीर को निगण्ठ नाथपुत्त कहा गया है
👉🏻 जैन धर्म के अनुसार ज्ञान के तीन स्रोत – प्रत्यक्ष, अनुमान तथा तीर्थकारों के वचन
👉🏻 स्यादवाद (अनेकांतवाद) अथवा सप्तभंगीनय को ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत कहा जाता है
👉🏻 सल्लेखना – उपवास द्वारा शरीर का त्याग
👉🏻 गन्धर्व – महावीर के 11 प्रमुख शिष्यों को गन्धर्व कहा जाता है गन्धर्व का शाब्दिक अर्थ होता है विद्यालयों के प्रधान
👉🏻 कन्थिन – बौद्ध भिक्षुओं को वस्त्र प्रदान करने का समारोह
👉🏻 परिवास – सदैव के लिए संघ से बहिस्कृत करना
👉🏻 चन्ना – सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) का सारथी
👉🏻 कांथक – सिद्धार्थ का घोडा

History Topic Wise Notes & Question
जैन धर्म नोट्स

Leave a Comment